
International Booker Prize
लंदन में International Booker Prize 2025 में कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक ने अपने लघु कहानी संग्रह ‘हार्ट लैंप’ के लिए यह प्रतिष्ठित सम्मान जीता है। बानू मुश्ताक की यह किताब मूल कन्नड़ भाषा में लिखी गई थी और इसे अंग्रेजी में अनुवादक दीपा भस्थी ने अनूदित किया। यह पुरस्कार अनुवादित साहित्य के क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है।
बानू मुश्ताक और ‘हार्ट लैंप’
‘हार्ट लैंप’ 12 कहानियों का संग्रह है, जो करीब 30 वर्षों (1990 से 2023) में लिखी गई हैं। ये कहानियां दक्षिण भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के संघर्ष, सहनशीलता और एक-दूसरे के प्रति अपनत्व को दर्शाती हैं। यह किताब मौखिक कथाओं की परंपरा से जुड़ी हुई है, जो कन्नड़ संस्कृति को गहराई से प्रभावित करती रही है।
इस पुरस्कार के साथ बानू मुश्ताक ने इतिहास रच दिया है क्योंकि यह पहली कन्नड़ भाषा की किताब है जिसे अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है।
International Booker Prize क्या है?
International Booker Prize उन पुस्तकों को सम्मानित करता है जो मूल रूप से किसी अन्य भाषा में लिखी गई हों और बाद में अंग्रेजी में अनुवादित हुई हों। इसे अनुवादित साहित्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है।
इस पुरस्कार की खास बात यह है कि पुरस्कार राशि (50,000 पाउंड, लगभग 57 लाख रुपये) लेखक और अनुवादक के बीच बराबर बांटी जाती है। इसके अलावा, जो लेखक और अनुवादक शॉर्टलिस्ट में आते हैं, उन्हें भी 2,500 पाउंड (लगभग 2.87 लाख रुपये) की रकम मिलती है।
मुख्य बुकर पुरस्कार और International Booker Prize में अंतर
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मुख्य बुकर पुरस्कार: यह पुरस्कार उन किताबों को दिया जाता है जो मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखी गई हों और ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित हुई हों। इसका उद्देश्य अंग्रेजी साहित्य को बढ़ावा देना है।
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International Booker Prize: यह पुरस्कार किसी भी भाषा में लिखे गए उपन्यासों को सम्मानित करता है, बशर्ते वे अंग्रेजी में अनूदित होकर ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित हुए हों। इसका उद्देश्य विश्व के बेहतरीन साहित्य को अंग्रेजी पाठकों तक पहुंचाना है।
इन दोनों पुरस्कारों का मकसद दुनिया भर की बेहतरीन रचनाओं को मान्यता देना और अंग्रेजी भाषी पाठकों तक पहुंचाना है।
इतिहास और विकास
International Booker Prize की शुरुआत 2005 में मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार के रूप में हुई थी, जो शुरुआत में हर दो साल में एक पुरस्कार दिया करता था। 2015 में इसके नियम बदल गए और अब यह हर साल दिया जाता है। यह पुरस्कार अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के साहित्य को भी सम्मानित करता है।
बानू मुश्ताक का यह पुरस्कार भारतीय साहित्य के लिए गर्व का विषय है, खासकर कन्नड़ भाषा के लिए। यह दर्शाता है कि अनुवाद की मदद से क्षेत्रीय भाषाओं का साहित्य विश्व स्तर पर पहचाना जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार अनुवादकों के काम को भी सराहता है और उन्हें लेखक के बराबर सम्मान देता है।
इस तरह के पुरस्कार साहित्यिक विविधता को बढ़ावा देते हैं और विभिन्न भाषाओं के सांस्कृतिक अनुभवों को एक मंच प्रदान करते हैं।
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