
3 Day Navratri: नवरात्रों के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है । मां दुर्गा का चंद्रकांता स्वरूप बहुत ही ममता में और शांत है। जो भी व्यक्ति मां चंद्रघंटा की पूजा रात ना करता है एवं तीसरे दिन में चंद्रघंटा का व्रत करता है तो मां उसे सुख समृद्धि का वरदान देती है। अगर आपकी जिंदगी में सुख शांति की कमी है, तो मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना करने से मन की आपकी कृपा होगी।आपको बता दे कि इस बार द्वितीय और तृतीय नवरात्र एक साथ ही किया जाएगा।
3 Day Navratri: तीसरा नवरात्र
1 अप्रैल यानी कल का दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। पुराणे के अनुसार मां चंद्रघंटा दुर्गा अत्यंत दयालु और ममता में है, जो अपने भक्तों को सुख समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देती है। जो भी व्यक्ति मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना करता है उसमें आत्मविश्वास की कमी नहीं रहती। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से न केवल भौतिक सुख में वृद्धि होती है बल्कि समाज में भी आपका मान सम्मान बढ़ता है। मां चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप है। मां चंद्रघंटा से ही संसार में न्याय और अनुशासन बना हुआ है। मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति रक्षा और दानव का नाश करने के लिए हुई थी।
3 Day Navratri: मां चंद्रघंटा का स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार मां चंद्रघंटा के मस्तक पर 1 घंटे के आकार का चंद्रमा स्थित है। घंटे के आकार के चंद्रमा के कारण उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। मां चंद्रघंटा का शरीर सोने के समान चमकीला है। मां चंद्रघंटा के 10 हाथ हैं। उन्होंने अपने दसों हाथों में हैं, खड्ग , कमंडल, तलवार, त्रिशूल, गधा, धनुष बाण, धारण किया है। माता के गले में सफेद फूलों की माला है और माथे पर रक्तजड़ित मुकुट है। मां चंद्रघंटा का वाहन सिंह है। मां को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार है। मां के सिर में जो घंटा है उस भयानक आवाज निकलती है, जिससे सारे दाना वोट देते कांपने लगते हैं। लेकिन भक्तों के लिए मां का रूप एकदम सौम्या और शांत है।
3 Day Navratri: पूजा विधि
- मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे। स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़े पर पहने।
- मां को पीले और लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- नाकु कुमकुम,रोली ,अक्षत, पुष्प, सिंदूर अर्पित करें।
- मां चंद्रघंटा को पीला रंग सबसे ज्यादा प्रिया है, इसीलिए उनको पीले रंग के वस्त्र और फूल जरूर अर्पित करें।
- मां चंद्रघंटा को मिठाई और दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।
- पूजा के दौरान मां का ध्यान करें और उनके मित्रों का जाप करें।
- दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें।
- अंत में मां चंद्रघंटा की आरती करें। और क्षमा याचना करें।
3 Day Navratri: मां चंद्रघण्टा का पूजा मंत्र
- पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता॥
- प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
- वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्॥
- सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
- सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
- मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
3 Day Navratri: माँ चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक महिषासुर नमक देते हुआ करता था। महिषासुर एक ऐसा राजा था जिसकी बराबरी ना ही कोई असुर कर पता था और ना ही कोई देवता करता था। “माही” का अर्थ है “भैंस”, और वह भेसे के आकार का है, इसीलिए उसे महिषासुर कहा जाता है। एक बार की बात है जब असुर गुरु शुक्राचार्य ने दानव महिषासुर को सलाह की, वह ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे अमर होने का वरदान ले ले। असुर गुरु की बात मानकर महिषासुर ने परमपिता ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करी और उनको प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्मा जी असुर के समक्ष आए तो उन्होंने उनसे मनमंचित फल मांगने की बात कही, महिषासुर ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान ना देते हुए कहा कि जो भी व्यक्ति पृथ्वी पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। उसके बाद महिषासुर ने चतुराई दिखाते हुए उनसे यह वरदान मांगा की कोई भी पुरुष उनकी हत्या न कर पाए। महिषासुर को यह लगता था कि कोई भी स्त्री उसका कभी वध नहीं कर पाएगी। यह बात सुनकर ब्रह्मा जी ने असुर महिषासुर को या आशीर्वाद दे दिया।
ब्रह्मा जी से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, महिषासुर ने पूरी पृथ्वी पर त्राहि त्राहि मचा दी। उसने स्वर्ग लोक पर भी हमला कर दिया, महिषासुर ने देवताओं से युद्ध कर जीत हासिल करली, पर देवराज इंद्र के स्थान पर खुद बैठ गया। परेशान होकर सभी देवी देवता एकत्रित हुए। सभी देवताओं ने त्रिदेवों को सारी घटना के बारे में बताया। यह सारी बात सुनने के बाद त्रिदेव अत्यंत ज्यादा क्रोधित हो गए और उनके मुख से त्रिवी ऊर्जा बाहर निकलने लगी जिससे एक देवी प्रकट हुई।
उन देवी की 10 भुजाएं थी और मस्तक में एक चंद्रघंटा था। सभी देवी देवताओं ने इस स्वरूप को देखकर प्रणाम किया महादेव ने अपना त्रिशूल भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र उसे देवी को प्रदान किया। इसके बाद देखते ही देखते देवराज इंद्र ने भी अपना वज्र देवी को प्रदान किया और बारी बारी सभी देवताओं ने अपने अस्त्र शस्त्र देवी को प्रदान किये। देखते ही देखते माता का स्वरूप विकराल बनाता गया और माता “महिसासुर” का वध करने निकल पड़ी। “महिसासुर” और माता के बीच एक घमासान युद्ध हुआ। आकाश और पाताल हर जगा त्राहि त्राहि मच गई थी। एक के बाद एक सारे बड़े असुर मारे गए और अतः माता चंद्रघंटा ने विकराल असुर “महिसासुर” का वध भी कर दिया।
इस तरह माता ने देवताओं और मनुष्यों की रक्षा की और उन्हें महिसासुर जैसे दानव से बचाया।
यह भी पढ़े :- Vinayaka Chaturthi 2025: बुध ग्रह मजबूत करने और बाधाओं को दूर करने का शुभ अवसर!
IDBI Bank Jobs 2024: आईडीबीआई बैंक में 1000 पदों पर भर्ती, जानें आवेदन प्रक्रिया, योग्यता और सैलरी