Up चुनाव के परिणाम साफ है ।इसमें BSP गायब होती नजर आ रही है। कभी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश में अपना शासन चलने वाली बसपा आज अपने अस्तित्व को खोज रही है। और निराधार होती नजर आ रही है। विशेषज्ञों का मानना है की लम्बे समय से जनता से दूरी बना के रहने के कारण बसपा की ये दशा हुई है। बहुत ही दयनीय दशा में दिखती बसपा ज़ीरो की ओर जाती हुई नज़र आ रही है।
अस्तित्व खोती BSP
शनिवार को उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की मतगणना की जा रही है। इसमें BSP अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही है। बसपा का प्रदर्शन इस चुनाव में बेहद निराशाजनक रहा है। कभी उपचुनाव के मैदान में न उतरने वाली BSP ने इस बार सभी नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। लेकिन, उन्हें हार का कड़वा घुट पीकर ही रहना होगा। BSP के उम्म्मीद्वारो ने कुछ ख़ास नहीं किया। दुसरे शब्दों में यूं कहें कि बसपा को उबारने में सहायक साबित नहीं हो सके तो गलत नहीं होगा। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से बसपा लगातार नीचे की ओर बढ़ती दिख रही है। जो BSP के लिए बहुत चिंता का विषय है।
निचले पायदान पर पहुंची BSP
उप उपचुनाव की सभी नौ सीटों की बात करें तो बसपा किसी में तीसरे या फिर उससे निचले पायदान पर नजर आ रही है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। इस दशा के कई कारण है लेकिन इनमें से एक प्रमुख कारण ये है की बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार से दूरी बनाना भी देखा जा रहा है। चुनाव प्रचार से दूरी BSP के लिए साफलता से से दूरी बन गई। लेकिन बसपा के प्रत्याशी लोगों के दिल में जगह नहीं बना पाए।
जनता से दूरी बनाने का भुगता पड़ा खामियाजा
पार्टी प्रमुख मायावती के साथ लगभग सभी बड़े नेताओं ने एक भी सीट पर एक भी रैली नहीं की। तब भी नहीं जब सत्तासीन भाजपा और सपा के साथ मुकाबला कड़ा था। तब भी मैदान फतह करने की जिम्मेदारी प्रत्याशियों के कंधों पर ही रही। इसका खामियाजा भी बसपा को भुगतना पड़ा।की BSP इस बार चुनाव निराधार नज़र आ रही है। इसका असर चुनाव परिणाम में साफ दिख रहा है। 2019 के बाद से बसपा लगातार नीचे की ओर खिसकती जा रही है।
2019 के बाद BSP का सफर
साल 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तब इसमें BSP ने सपा के साथ गठबंधन किया। इस चुनाव में BSP को 10 सीटें हासिल हुईं। इसके बाद वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में BSP ने सपा के साथ गठबंधन ख़त्म कर दिया और अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। जिसका भरी नुकसान देखने को मिला इस चुनाव में इसका असर भी दिखा। और इस चुनाव में BSP को मात्र 1 को लेकर संतुस्टी झेलना पढ़ा। जो कि BSPके लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था।
इसके बाद साल 2024 के आमचुनाव में भी बसपा ने अकेले लड़ने का निर्णय किया। सभी 80 सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे। मेहनत भी की गई। लेकिन, ना तो आलाकमान और ना ही पार्टी प्रत्याशी जनता के मन में जगह बना पाए। और जब नतीजे आए तो बसपा के साथ ही उसके समर्थकों के लिए भी ये चौंकाने वाले थे। बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था। साफ़ शब्दों में कहा जाए तो बसपा का बहुत ही ख़राब प्रदर्शन रहा और BSP खता तक नहीं खोल पायी।
उपचुनाव में वापसी की थी उम्मीद
इस बार BSP को ये उम्मीद थी की शायद यूपी के उप चुनाव में वापसी होगी। क्योकि कभी उपचुनाव न लड़ने वाली बसपा ने इस बार सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीद उतारे थे लेकिन जनता के बीच नहीं गए। BSP की ओर से एक भी आक्रामक प्रचार देखने को नहीं मिला। जिसका पूरा असर इस बार के चुनाव में देखने को मिला।