Aligarh Muslim University (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया हालिया निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 से जुड़ी एक पुरानी बहस को नए सिरे से उजागर करता है। अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार प्रदान करता है। इस फैसले ने 1967 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें यह कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं मिल सकता, क्योंकि यह एक संसदीय अधिनियम के माध्यम से स्थापित हुआ था। हालांकि, इस नए फैसले में AMU के विशेष अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय एक नियमित पीठ को सौंप दिया गया है, जिसके गठन की प्रक्रिया अभी बाकी है।
AMU का ऐतिहासिक महत्व और अल्पसंख्यक दर्जे का विवाद
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी। इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय में शिक्षा को बढ़ावा देना था। 1920 में ब्रिटिश शासन ने इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया, और इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया। इसके बावजूद, AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर कानूनी और राजनीतिक विवाद समय-समय पर उठते रहे हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार देता है, लेकिन AMU का मामला इसलिए जटिल था, क्योंकि यह एक संसदीय अधिनियम के तहत स्थापित हुआ था। 1951 में AMU अधिनियम में एक संशोधन किया गया था, जिससे धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य से हटा दिया गया, जो इसके अल्पसंख्यक चरित्र को प्रभावित करने के रूप में देखा गया। इसके बाद, 1981 में एक और संशोधन ने AMU के अल्पसंख्यक चरित्र के कुछ पहलुओं को बहाल करने का प्रयास किया, लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2006 में इसे असंवैधानिक करार दिया। इस फैसले के बाद, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
1967 का एस अजीज बाशा निर्णय और उसका प्रभाव
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में यह निर्णय दिया कि AMU, जो कि एक संसदीय अधिनियम द्वारा स्थापित हुआ था, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे संस्थान जो सरकारी या विधायी अधिनियम से स्थापित होते हैं, वे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकते, क्योंकि उनका उद्देश्य केवल एक विशेष समुदाय की सेवा नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की सेवा करना होता है। यह निर्णय AMU के लिए एक बड़ा झटका था और इससे इस विश्वविद्यालय को अनुच्छेद 30 के तहत सुरक्षा का दावा करने से रोक दिया गया था।
2023 में सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय
3 नवंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को पलटते हुए AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। यह निर्णय 4:3 के बहुमत से आया था, जिसमें कहा गया कि एक शैक्षिक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा केवल इसलिए समाप्त नहीं किया जा सकता कि इसे किसी विधायी अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया हो या इसका संचालन गैर-अल्पसंख्यक व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा हो। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बहुमत वाले निर्णय में यह स्पष्ट किया कि संस्थान की उत्पत्ति, अर्थात इसे किसने स्थापित किया, अल्पसंख्यक दर्जे को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण है। इस निर्णय में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय एक नियमित पीठ को सौंपा गया, जिसे बाद में गठित किया जाएगा।
निर्णय के मुख्य बिंदु
- संस्थान की उत्पत्ति
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी संस्थान की उत्पत्ति उसके अल्पसंख्यक दर्जे को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। AMU का मामला इस बात को स्पष्ट करता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई थी, और इस कारण इसे अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त होने का आधार बनता है, भले ही बाद में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया हो। - धर्मनिरपेक्ष शिक्षा और अल्पसंख्यक चरित्र
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक अल्पसंख्यक संस्थान का उद्देश्य केवल अल्पसंख्यक समुदाय की सेवा करना नहीं है। उसमें धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का होना इसके अल्पसंख्यक चरित्र के खिलाफ नहीं है, और यह इसे अल्पसंख्यक दर्जे से वंचित नहीं करता। - वैधानिक विनियमन
कोर्ट ने यह माना कि किसी संस्थान का वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से सरकारी विनियमन उसके अल्पसंख्यक चरित्र को समाप्त नहीं करता है, जब तक यह संस्थान के मूल उद्देश्यों में हस्तक्षेप नहीं करता। - असहमति और भविष्य की दिशा
तीन न्यायाधीशों ने इस फैसले से असहमति जताई। उन्होंने यह तर्क दिया कि AMU का संचालन और प्रशासन गैर-अल्पसंख्यक व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है, जिससे इसके अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कमजोर होता है। इसके बावजूद, यह मामला अब एक नियमित पीठ को सौंपा गया है, जो इस पर अंतिम निर्णय करेगी।
भविष्य में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय AMU के लिए महत्वपूर्ण मोड़ है, लेकिन यह अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय नहीं है। एक नियमित पीठ को यह निर्णय लेना होगा कि क्या AMU की स्थापना और इसके मूल सिद्धांतों को देखते हुए इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है। इस फैसले का प्रभाव न केवल AMU, बल्कि अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी पड़ेगा, जो समान परिस्थितियों में अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकते हैं।