
Kabirdas Jayanti 2025: संत कबीर का जीवन और संदेश,आज भी क्यों हैं वो ज़रूरी?
Kabirdas Jayanti 2025: संत कबीर 15वीं शताब्दी के एक भारतीय समाज सुधारक और एक प्रसिद्ध कवि थे। कई सारे लोग उनको कबीर साहब और कबीर दास कहकर भी पुकारा करते थे। संत कबीर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन कबीर दास जयंती मनाई जाती है।
संत कबीर कौन थे?
संत कबीर का जन्म 1398 मे यानी 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनका परिवार एक बुनकर यानी जुलाहा का परिवार था, वो उसी परिवार में पले–बड़े पर बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर बढ़ गए।
उसके बाद उन्होंने शादी करी और उनके दो बच्चे भी हुए।
इतने महान कवि होने के बावजूद भी संत कवि आम आदमी की तरह अपना जीवन व्यतीत करते थे। वह हमेशा से धार्मिक परंपराओं और दिखावे के विरुद्ध आवाज उठाते थे, इसीलिए कई बार उनको हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों का गुस्सा भी झेलना पड़ता था। जहां कई सारे हिंदू और मुस्लिम लोग उनको पसंद नहीं करते थे, तो दूसरी ओर कई सारे हिंदू और मुस्लिम उनको सुनते थे और उनका आदर सत्कार करते थे।
सन 1495 में दिल्ली की एक बादशाह सिकंदर लोदी ने उन पर दैविक शक्ति का झूठा आरोप लगाया और उन्हें देश से बाहर निकाल दिया। इसके बाद 1518 में संत कबीर की उत्तर प्रदेश के मगहर नाम के जगह में मृत्यु हो गई।
मृत्यु के बाद एक अद्भुत चमत्कार!
1518 में कबीर दास जी की मृत्यु हो गई, इसके बाद हिंदू मुस्लिम के बीच विवाद हो गया उनके पार्थिक शरीर को लेकर। हिंदू समुदाय के लोग कहते थे कि उनके कार्तिक शरीर का अंतिम संस्कार हम करेंगे, तो वही मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना था कि वह मुस्लिम है तो उनका अंतिम संस्कार हम ही करेंगे। अंत में जब कुछ भी समाधान नहीं हुआ तो एक दिव्या रोशनी उनके पार्थिव शरीर की तरफ आती है और उनका पार्थिव शरीर फूलों में बदल जाता है, इसके बाद आधे फुल हिंदू समुदाय के लोग ले लेते हैं और आधा फुल मुस्लिम समुदाय के लोग ले लेते हैं। और अपने धर्म अनुसार उनके शरीर का अंतिम संस्कार करते हैं।
कबीर पंथ की स्थापना!
कबीर साहेब की कविताएं सरल हिंदी भाषा में होती थी। वे खुद को राम जी और अल्लाह का बेटा मानते थे। उनकी कविताओं में सच्चाई प्रेम और भक्ति झलकती थी, और वह हमेशा प्रेम सच्चाई और भक्ति का ही संदेश दिया करते थे। उनकी कई सारी कविताएं हैं जो लोगों को आज भी प्रेरित करती है और सही रास्ता दिखाती है।
कबीर साहिब के अनुयायियों ने “कबीर पंथ” नाम से एक धार्मिक समुदाय भी बनाया। 17वीं और 18 वीं सदी में उनका यह धार्मिक समुदाय काफी बड़ा बन गया जिसमें करोड़ों अनुयाई जुड़ गए।
संत कबीर के शब्दों को एक किताब में एकत्रित कर गया जिसको “कबीर बीजक” नाम दिया गया। कबीर बीजक पहले सिर्फ लोगों को जुबान से सुनाई जाती थी, लेकिन बाद में इसे लिखा भी गया।
1915 में रवींद्रनाथ टैगोर ने कबीर जी की किताबों का अंग्रेज़ी अनुवाद भी किया, इसके बाद दुनिया भर में उनके संदेश को पहुंचाया गया।
संत कबीर के मंदिर
आज भी बनारस में संत कबीर के दो मंदिर हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि संत कबीर को हिंदू समुदाय के लोग भी अपना मानते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग भी अपना मानते हैं।
बनारस में संत कबीर जी का एक मंदिर हिंदू समुदाय के लोग संभालते हैं तो वही दूसरा मंदिर मुस्लिम समुदाय के लोग संभालते हैं।
संत कबीर जयंती कैसे मनाई जाती है?
- कबीर साहेब जयंती भारत के कई हिस्सों में मनाई जाती है, खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में इसको धूमधाम से मनाया जाता है। इन राज्य में संत कबीर के कई मंदिर भी मौजूद है।
- इस दिन स्कूलों और कार्य स्थलों में कई सारे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जहां पर लोग कबीर जी की लिखी कविताओं और दोहों को गाते और सुनते हैं।
- कबीर साहिब के मंदिरों में लोग भजन गाते हैं और उनकी लिखी आध्यात्मिक कविताओं को याद करते हैं।
- इस दिन सभी साधु संत संत कबीर जी की बातों को याद करते हैं और चर्चाएं करते हैं।
- संत कबीर जी ने हमेशा सभी धर्म के लोगों को एक समान माना है। सभी गरीब व्यक्तियों की मदद की जाती है और भूख को खाना खिलाया जाता है।
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