
Maharashtra language politics: पटक-पटक’ से ‘डुबो-डुबो’ तक, नेताओं की जुबानी जंग में भाषा बना हथियार
Maharashtra language politics: महाराष्ट्र में इन दिनों “भाषा” एक बड़ा सियासी मुद्दा बन गई है। मराठी बनाम हिंदी की बहस ने तूल पकड़ लिया है। इसकी शुरुआत एक दुकान पर मराठी में बात न करने को लेकर हुई मारपीट से हुई, लेकिन अब यह मुद्दा दो बड़े नेताओं – एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे – के बीच जुबानी जंग में बदल चुका है।
कहां से शुरू हुआ विवाद?
कुछ दिन पहले मुंबई के मीरा-भायंदर इलाके में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं ने एक दुकानदार की इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि वह मराठी में बात नहीं कर रहा था। इस घटना की पूरे महाराष्ट्र में चर्चा हुई और यह मुद्दा धीरे-धीरे राजनीति की तरफ मुड़ गया।
इस मामले में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे, जो झारखंड के गोड्डा से सांसद हैं, ने एक तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा “अगर हिंदी बोलने पर मारोगे, तो तमिल और उर्दू बोलने वालों को क्यों नहीं मारते? अगर इतने ही बहादुर हो तो बिहार, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में जाकर देखो, पटक-पटक कर मारे जाओगे।”
राज ठाकरे का पलटवार: “डुबो-डुबो के मारेंगे”
निशिकांत दुबे के बयान का जवाब देते हुए राज ठाकरे ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने मुंबई में एक जनसभा के दौरान कहा “एक बीजेपी सांसद ने कहा कि मराठी लोगों को हम पटक-पटक के मारेंगे। मैं कहता हूं – आप मुंबई आइए, हम समंदर में डुबो-डुबो के मारेंगे।”
यह बयान उस समय दिया गया जब राज ठाकरे हिंदी में बोल रहे थे। इसी बात को लेकर निशिकांत दुबे ने तंज कसते हुए कहा “मैंने राज ठाकरे को हिंदी सिखा दी?”
थप्पड़ की चेतावनी भी दी
मीरा-भायंदर की रैली में राज ठाकरे ने एक और तीखा बयान देते हुए कहा “अगर कोई मराठी नहीं समझ सकता, चाहे सीधे कान में भी बोले, तो उसे नीचे एक थप्पड़ पड़ेगा। लोग बेवजह हंगामा करते हैं।”
इस बयान को लेकर एक बार फिर एमएनएस पर ‘भाषा के नाम पर डराने-धमकाने’ के आरोप लगने लगे हैं।
राजनीति के पीछे की राजनीति
इस पूरे मामले में दो पहलू हैं – एक सामाजिक और एक राजनीतिक।
सामाजिक पहलू:
महाराष्ट्र, खासकर मुंबई, एक बहुभाषी राज्य है। यहां मराठी के अलावा हिंदी, गुजराती, उर्दू, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ जैसी भाषाएं बोली जाती हैं। लेकिन MNS जैसे दल कई सालों से “मराठी अस्मिता” को लेकर आंदोलनों की अगुवाई करते रहे हैं। उनका मानना है कि मराठी भाषा और मराठी मानुष को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
राजनीतिक पहलू:
राज ठाकरे की MNS को पिछले कुछ सालों में राजनीतिक जमीन पर खास सफलता नहीं मिली है। ऐसे में “मराठी बनाम बाहरी” जैसे मुद्दे उठाकर वह अपना जनाधार फिर से मजबूत करना चाहते हैं। वहीं, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे जैसे नेता इस बयानबाज़ी को हिंदीभाषियों के अपमान के तौर पर उठा रहे हैं, ताकि उत्तर भारतीय वोटरों को साधा जा सके।
क्या भाषा पर राजनीति करना सही है?
भाषा हमारी पहचान का हिस्सा है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल नफरत और बंटवारे के लिए किया जाए तो यह चिंता का विषय बन जाता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में सभी भाषाओं को सम्मान देना जरूरी है।
मुंबई और महाराष्ट्र में हिंदी बोलने वालों की बड़ी संख्या है। वे दशकों से यहां रहते आए हैं और राज्य की तरक्की में उनका भी योगदान है। ऐसे में सिर्फ भाषा के आधार पर किसी से भेदभाव करना न तो संवैधानिक है और न ही मानवीय।
राज ठाकरे और निशिकांत दुबे के बीच चल रही ये जुबानी जंग एक बड़े सामाजिक मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही है। मराठी भाषा का सम्मान होना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी भाषाओं का अपमान किया जाए। नेताओं को चाहिए कि वे समावेशी भाषा नीति की बात करें, न कि भाषाई लड़ाई को हवा दें।
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