
Delhi Police fraud: दिल्ली पुलिस में तैनात दो सब-इंस्पेक्टर — अंकुर मलिक और नेहा पूनिया — अदालत से फर्जी आदेश लेकर साइबर क्राइम में फ्रीज हुए बैंक खातों से पैसे निकालने के बाद फरार हो गए थे। लेकिन अब इन्हें चार महीने की लंबी तलाश के बाद मध्य प्रदेश के इंदौर से गिरफ्तार कर लिया गया है। इन दोनों की गिरफ्तारी के साथ ही दिल्ली पुलिस की छवि पर एक बार फिर सवाल उठे हैं, क्योंकि ये वही लोग थे जिन्हें अपराध रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन उन्होंने ही सिस्टम का दुरुपयोग किया।
क्या था पूरा मामला?
एसआई अंकुर मलिक और नेहा पूनिया पर आरोप है कि इन्होंने अदालत से फर्जी ऑर्डर बनवाकर साइबर अपराध से जुड़े उन बैंक खातों को डी-फ्रीज करवाया, जिन्हें पुलिस ने जांच के दौरान सीज़ किया था। जब खाते डी-फ्रीज हो गए, तो उन खातों से मोटी रकम ट्रांसफर करवाई गई और बाद में ये दोनों फरार हो गए।
ये मामला सामने तब आया जब नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के साइबर थाने में तैनात एसआई अंकुर मलिक और जीटीबी एनक्लेव थाने की एसआई नेहा पूनिया अचानक ड्यूटी से गायब हो गए। पुलिस ने जब जांच शुरू की तो एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया।
कैसे पकड़े गए दोनों अफसर?
एनबीटी ने 1 अप्रैल 2025 को एक रिपोर्ट प्रकाशित कर इस पूरे घोटाले का पर्दाफाश किया था। इसके बाद दिल्ली पुलिस की एक विशेष टीम बनाई गई जिसमें इंस्पेक्टर राहुल के नेतृत्व में एसआई नंदन सिंह, हे
ड कॉन्स्टेबल अमित, रोहन और सिपाही दीपक शामिल थे।
तकनीकी निगरानी (टेक्निकल सर्विलांस) और ईमेल अकाउंट्स की जांच से पता चला कि ये दोनों अफसर वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) के जरिए अपनी लोकेशन छिपा रहे थे। लेकिन पुलिस ने उनकी सटीक लोकेशन ट्रैक की और आखिरकार 18 जुलाई 2025 को इंदौर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
क्या-क्या मिला गिरफ्तारी के बाद?
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने इनके पास से भारी मात्रा में संपत्ति बरामद की है:
12 लाख रुपये कैश
820 ग्राम गोल्ड कॉइन और बार
200 ग्राम सोने के गहने
11 स्मार्टफोन, एक लैपटॉप, तीन एटीएम कार्ड
फर्जी दस्तावेज और कोर्ट के आदेश
और कौन-कौन है इस फर्जीवाड़े में शामिल?
गिरफ्तार सब-इंस्पेक्टर अंकुर मलिक की मदद करने वाले तीन और लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है:
मोहम्मद इलियास (40) — चांद बाग से
आरिफ उर्फ मोनू (35) — कबीर नगर से
शादाब (23) — न्यू कर्दमपुरी से
इन तीनों के नाम पर बैंक अकाउंट खुलवाए गए थे, लेकिन इनकी चेक बुक और डेबिट कार्ड एसआई अंकुर मलिक ने अपने पास रख लिए थे। फर्जी अदालत के आदेशों के जरिए इन खातों में पैसा ट्रांसफर करवाया गया, जिसे बाद में इन्होंने निकाल लिया।
क्यों भागे थे दोनों?
जांच में सामने आया है कि दोनों अफसर अपनी निजी जिंदगी से भी परेशान थे।
अंकुर मलिक बागपत का रहने वाला है और 2012 में पुलिस में भर्ती हुआ था। 2021 में सब-इंस्पेक्टर बना। उसकी पत्नी एक हादसे में लकवाग्रस्त हो गई थी और गांव में रह रही थी।
नेहा पूनिया मेरठ की रहने वाली है और अंकुर के ही बैच की है। 3 दिसंबर 2024 को नेहा ने जेल के असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट से शादी की थी, लेकिन जल्दी ही उसका पति से झगड़ा हो गया और वह अलग रहने लगी।
इसी दौरान दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और दोनों ने फरार होकर गोवा और मनाली में वक्त बिताया। फिर इंदौर में छिपकर रहने लगे और एक नया प्लान बना रहे थे।
गुमशुदगी से गिरफ्तारी तक
17 मार्च: अंकुर ने मेडिकल लीव ली और फिर लौटकर नहीं आया।
27 मार्च: उसके परिवार ने विवेक विहार थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई।
नेहा की गुमशुदगी जीटीबी एनक्लेव थाने में दर्ज कराई गई।
1 अप्रैल: मीडिया रिपोर्ट्स में दोनों के फरार होने की खबर सामने आई।
3 जुलाई: ईमेल और VPN की मदद से लोकेशन पता चली।
18 जुलाई: दोनों को इंदौर से गिरफ्तार कर लिया गया।
डीसीपी ने क्या कहा?
डीसीपी (नॉर्थ ईस्ट) आशीष मिश्रा के अनुसार, जांच में अब तक 75 लाख रुपये की ठगी का पता चला है। यह रकम उन खातों से निकाली गई जो साइबर क्राइम मामलों में फ्रीज किए गए थे।
दिल्ली पुलिस जैसे संस्था में तैनात अफसरों द्वारा इस तरह की धोखाधड़ी न केवल सिस्टम पर सवाल खड़े करती है, बल्कि आम जनता के भरोसे को भी चोट पहुंचाती है। इस मामले में अधिकारियों का निजी तनाव और सिस्टम का दुरुपयोग, दोनों सामने आया है। अब उम्मीद है कि अदालत इस केस में सख्त कदम उठाएगी ताकि आगे कोई पुलिसकर्मी ऐसी हरकत करने की हिम्मत न कर सके।
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