
Media ignores SSC student protest: क्या धार्मिक बहस युवाओं के भविष्य से बड़ी हो गई है? SSC छात्रों का आंदोलन और मीडिया की चुप्पी!
Media ignores SSC student protest: आज का भारत एक अजीब मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ लाखों छात्र सरकारी नौकरी की आस में सड़कों पर धरना दे रहे हैं, और दूसरी तरफ मीडिया में बहस हो रही है – एक धार्मिक व्यक्ति के बयान पर। हाल ही में वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी ने एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने आज के युवाओं की पवित्रता पर सवाल उठाए। यह बयान सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर इतनी तेजी से फैल गया कि हर तरफ बस इसी पर बहस होने लगी।
लेकिन वहीं दूसरी ओर SSC यानी स्टाफ सिलेक्शन कमीशन की परीक्षाओं में धांधली के खिलाफ देशभर से आए छात्र दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। वे लगातार न्याय की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस आंदोलन को वह कवरेज नहीं मिल रही, जिसकी वह हक़दार है।
तो सवाल उठता है – क्या धार्मिक बयानों की बहस, अब छात्रों के भविष्य से बड़ी हो गई है?
मीडिया की प्राथमिकता पर सवाल
आज टीवी चैनलों पर देखें तो हर डिबेट में प्रेमानंद जी के बयान पर चर्चा हो रही है। उनका बयान, उनका दृष्टिकोण, उनकी मंशा – सब पर बहस है। लेकिन जब आप देखना चाहें कि SSC घोटाले में क्या हो रहा है – तो चैनलों पर सन्नाटा है।
TRP यानी “टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट” अब मुद्दों को नहीं, बल्कि भावनाओं को बेचता है। धार्मिक बयान, विवाद, बहस – ये सब टीआरपी के लिए आसान टॉपिक हैं।
SSC घोटाले की हकीकत
SSC यानी कर्मचारी चयन आयोग, हर साल लाखों युवाओं को सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षा आयोजित करता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में पेपर लीक, भर्ती में धांधली, और लंबी देरी जैसी समस्याएं बार-बार सामने आई हैं।
2024-25 के दौरान कई छात्रों ने आरोप लगाए कि उनकी परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं बदली गईं, पेपर लीक हुआ और परिणामों में गड़बड़ी की गई। इन सभी मुद्दों पर सरकार और आयोग की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आया, जिसके चलते छात्रों ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन शुरू किया।
धरना और लाठीचार्ज – फिर भी मीडिया खामोश
जंतर मंतर पर छात्र कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ शिक्षक भी उनके समर्थन में खड़े हैं। पुलिस ने कई बार प्रदर्शनकारियों को रोका, उन पर लाठीचार्ज किया, यहां तक कि कुछ मीडिया रिपोर्टर्स को भी हिरासत में लिया गया। लेकिन इस सबके बावजूद, इस आंदोलन को मुख्यधारा मीडिया में वो जगह नहीं मिली, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश में मिलनी चाहिए।
प्रेमानंद जी का बयान और बहस
प्रेमानंद जी ने कहा कि “आज के समय में बहुत कम लड़के- लड़किया पवित्र हैं।”
यह एक धार्मिक विचार हो सकता है, एक व्यक्तिगत राय भी। इस पर सहमति या असहमति हो सकती है। लेकिन क्या यह बयान उन बच्चों के भविष्य से बड़ा है, जो धूप में बैठकर नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं?
मीडिया इस पर बहस करता है –
“क्या प्रेमानंद जी का बयान सही है या गलत?”
लेकिन यह नहीं पूछता – “SSC के छात्रों को न्याय कब मिलेगा?”
सोशल मीडिया बन रहा है नई आवाज़
जब मुख्यधारा मीडिया चुप रहता है, तो सोशल मीडिया पर युवा अपनी बात कह रहे हैं। अब X , इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक पर कई छात्र अपने वीडियो पोस्ट कर रहे हैं, अपनी आपबीती बता रहे हैं। कुछ स्वतंत्र पत्रकार भी इस आंदोलन की रिपोर्टिंग कर रहे हैं। लेकिन जरूरत है कि इस मुद्दे को राष्ट्रव्यापी चर्चा का विषय बनाया जाए।
संतुलन की ज़रूरत
यह ज़रूरी नहीं कि हम प्रेमानंद जी या किसी धार्मिक व्यक्ति के विचारों को दबाएं या अनदेखा करें।
हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। लेकिन जब देश का युवा सड़कों पर बैठा हो, जब शिक्षकों को खदेड़ा जा रहा हो, जब पेपर लीक हो रहे हों – तब इन मुद्दों को दबाना, न्याय से अन्याय की तरफ जाना है।
सवाल सबको खुद से पूछना होगा
आज का सबसे बड़ा सवाल यह है –क्या मीडिया का कैमरा अब वहां ही जाएगा, जहां विवाद हो, न कि वहां जहां सच्चाई हो? जब देश का भविष्य, यानी युवा, इंसाफ मांग रहा हो, तो क्या TRP के नाम पर उसकी आवाज़ को अनदेखा करना सही है?
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