
Asim Munir: अमेरिका में पाकिस्तानी जनरल असीम मुनीर की सक्रियता, ट्रंप का मास्टरस्ट्रोक या भारत के खिलाफ ‘पाकिस्तान कार्ड’?
Asim Munir: दक्षिण एशिया की राजनीति में इन दिनों एक नई हलचल देखी जा रही है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पिछले दो महीनों में दो बार अमेरिका का दौरा कर चुके हैं, और हर बार उनका स्वागत अमेरिकी सैन्य और राजनीतिक हलकों में बेहद गर्मजोशी से किया गया है। सवाल उठ रहा है — क्या असीम मुनीर, डोनाल्ड ट्रंप के रणनीतिक मोहरे हैं, या फिर यह भारत के खिलाफ ट्रंप का मास्टरस्ट्रोक है?
यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि हाल के महीनों में भारत और अमेरिका के रिश्ते अप्रत्याशित रूप से खराब हुए हैं। खासकर व्यापार और रणनीतिक सहयोग के मोर्चे पर जो विश्वास कायम हो रहा था, वह झटका खा चुका है। कई अमेरिकी रणनीतिकार आरोप लगा रहे हैं कि डोनाल्ड ट्रंप, भारत के साथ ट्रेड डील को पटरी से उतारने और स्ट्रैटजिक रिलेशन को कमजोर करने में जुटे हैं।
अमेरिका-पाकिस्तान की नजदीकी और भारत की चिंता
फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हडसन इंस्टीट्यूट के रिसर्च एनालिस्ट हुसैन हक्कानी का मानना है कि यह सब महज संयोग नहीं है। उनके मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप जानबूझकर ‘पाकिस्तान कार्ड’ खेल रहे हैं — ताकि भारत को अपनी शर्तों पर वाशिंगटन के साथ जुड़ने के लिए मजबूर किया जा सके।
ट्रंप के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल में उन्होंने पाकिस्तान को “झूठा” और “मक्कार” कहा था, लेकिन अब वे उन्हीं मक्कारों के साथ खुलेआम बैठकों और लंच में दिखाई दे रहे हैं। अप्रैल में भारत-पाकिस्तान सैन्य टकराव के ठीक बाद, असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ लंच के लिए बुलाया गया, और अब अमेरिकी सेना के एक कार्यक्रम में भी उन्हें सम्मान दिया गया।
ट्रंप का ‘पाकिस्तान कार्ड’ क्या है?
हुसैन हक्कानी का तर्क है कि ट्रंप की रणनीति पाकिस्तान की छवि को वैश्विक मंच पर मजबूत करने की है, ताकि भारत को महसूस हो कि दक्षिण एशिया में अमेरिका के पास ‘विकल्प’ मौजूद हैं। पाकिस्तान ने भी मौके का फायदा उठाया और ट्रंप की अप्रत्याशित शैली को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो गया।
हाल ही में पाकिस्तान ने एक ISIS-K आतंकी को गिरफ्तार कर अपनी ‘आतंकवाद विरोधी’ प्रतिबद्धता का सबूत पेश किया। इसके अलावा तेल, खनिज और यहां तक कि क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े व्यापारिक समझौते भी अमेरिका के साथ चर्चा में हैं।
कट्टरपंथी बयान और कश्मीर का मुद्दा
असीम मुनीर अपनी कड़ी बयानबाज़ी के लिए जाने जाते हैं। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले से पहले उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान की “गले की नस” बताया था। उन्होंने ‘टू नेशन थ्योरी’ के आधार पर भारत-पाकिस्तान संबंधों को परिभाषित करते हुए मुसलमानों को हिंदुओं से अलग बताया।
आलोचकों का कहना है कि इस बयानबाज़ी ने कश्मीर में हिंसा को और भड़काया। इसके बावजूद, व्हाइट हाउस में असीम मुनीर को ट्रंप के साथ ईरान पर बातचीत करते देखा गया, जो पाकिस्तान की पुरानी ‘लचीली कूटनीति’ की मिसाल पेश करता है। मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के रिसर्च फेलो मार्विन वेनबाम ने इस लचीलेपन की तारीफ करते हुए कहा कि यही पाकिस्तान की ताकत है — और ट्रंप ने इसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया है।
पाकिस्तान को सीमित लाभ, भारत को चिढ़ाने की कोशिश
हुसैन हक्कानी का मानना है कि पाकिस्तान के लिए यह लाभ लंबे समय तक टिकने वाला नहीं है। यह पूरी तरह ट्रंप की ‘लेन-देन’ वाली राजनीति है, जिसमें असल मकसद पाकिस्तान को फायदा देना नहीं, बल्कि भारत को असहज करना है।
ट्रंप को अपने दूसरे कार्यकाल में विश्व मंच पर कुछ ‘सफलता की कहानियां’ चाहिए, और पाकिस्तान उन्हें देने के लिए तैयार है। मई में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर का क्रेडिट भी असीम मुनीर ने डोनाल्ड ट्रंप को दिया, यहां तक कि पाकिस्तान की सरकार ने ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट कर दिया।
पाकिस्तान में चेतावनी की आवाजें
हालांकि, पाकिस्तान के भीतर से भी चेतावनी की आवाजें आ रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने कहा कि इस्लामाबाद को अपने हित और गरिमा दोनों की रक्षा करनी होगी। उन्होंने ट्रंप की अप्रत्याशित शैली और उनके बार-बार पाला बदलने का उदाहरण देते हुए कहा कि इस तरह के रिश्तों में जोखिम ज्यादा है।
अब्बासी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमीर जेलेंस्की को व्हाइट हाउस में मिली फटकार का हवाला देते हुए कहा कि पाकिस्तान को सावधान रहना चाहिए, क्योंकि ट्रंप का भरोसा लंबे समय तक किसी के साथ नहीं टिकता।
असीम मुनीर – प्यादा या खिलाड़ी?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि असीम मुनीर, ट्रंप की रणनीतिक बिसात पर सिर्फ एक प्यादा हैं। उनका रोल अस्थायी है — भारत को दबाव में लाना और दक्षिण एशिया की राजनीति में हलचल पैदा करना। ट्रंप का असली संदेश इस्लामाबाद को नहीं, बल्कि नई दिल्ली को दिया जा रहा है: “अमेरिका के पास विकल्प हैं।”
एक्सपर्ट्स का मानना है कि जैसे ही ट्रंप का मकसद पूरा होगा, असीम मुनीर का महत्व कम हो जाएगा। वह ‘राजनीतिक थियेटर’ के सिर्फ एक पात्र हैं, जिन्हें जरूरत खत्म होते ही किनारे लगा दिया जाएगा। दक्षिण एशिया में अमेरिका, पाकिस्तान और भारत के रिश्ते हमेशा से जटिल रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप का मौजूदा ‘पाकिस्तान कार्ड’ इस जटिलता में नया मोड़ है। जहां पाकिस्तान इसे अपने लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत मान रहा है, वहीं विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह साझेदारी स्थायी नहीं है और इसका असली निशाना भारत है।
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