
Nepal Political Crisis 2025: नेपाल की राजनीति में नया सूरज, बालेंद्र शाह और सुदन गुरुङ का उदय
Nepal Political Crisis 2025: नेपाल की राजनीति इस समय एक बड़े भूकंप से गुजर रही है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का इस्तीफ़ा, लगातार होते विरोध-प्रदर्शन और सड़कों पर उतरे हज़ारों युवा – यह सब मिलकर एक नए दौर की शुरुआत का संकेत दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नेपाल की सियासत में अब वही तय करेंगे जो लंबे समय से सिर्फ़ दर्शक बने हुए थे – युवा।
Gen Z का गुस्सा, खून और उम्मीद
पिछले कुछ हफ़्तों में नेपाल की सड़कों पर युवा आक्रोश साफ़ देखा गया। इंटरनेट बंद करने, सोशल मीडिया पर बैन लगाने और पुलिस की गोलीबारी ने हालात और बिगाड़ दिए।
19 से ज़्यादा युवा प्रदर्शनकारियों की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया। यह सिर्फ़ गुस्से का विस्फोट नहीं था, बल्कि एक नई राजनीति की प्यास भी थी।
कर्फ्यू, गोलियां, आंसू गैस – सबके बीच भी युवा पीछे हटने को तैयार नहीं। उनके पोस्टरों, नारों और सोशल मीडिया ट्रेंड्स से साफ़ है कि नेपाल अब बदलाव चाहता है। और इसी माहौल में दो नए नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में हैं – बालेंद्र शाह (Balen) और सुदन गुरुङ।
बालेंद्र शाह: इंजीनियर से रैपर, फिर काठमांडू के मेयर
बालेंद्र शाह का नाम आज हर नेपाली युवा की जुबान पर है। जिन्हें प्यार से लोग “Balen” कहते हैं, वे पेशे से सिविल इंजीनियर हैं। लेकिन उनकी पहचान यहीं तक सीमित नहीं रही।
संगीत की दुनिया में भी उन्होंने बतौर रैपर अपनी जगह बनाई। उनकी रैप लाइनों में वही गुस्सा और उम्मीद झलकती थी जो आज नेपाल की सड़कों पर दिखाई देती है।
2022 में जब वे स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर काठमांडू के मेयर चुने गए, तब यह महज़ एक चुनाव नहीं था, बल्कि नेपाल की राजनीति में नई सोच की शुरुआत थी।
Balen ने यह साबित किया कि बिना बड़ी पार्टी और बिना राजनीतिक गॉडफादर के भी जनता का दिल जीता जा सकता है।
क्यों खास हैं Balen?
Balen की खासियत यही है कि वे जनता से जुड़े हुए हैं।
- वे युवा हैं, और युवाओं की भाषा बोलते हैं।
- वे सिस्टम का हिस्सा बने बिना सिस्टम को चुनौती देते हैं।
- वे कलाकार हैं, इसलिए उनका नजरिया रचनात्मक है।
- और सबसे ज़रूरी – वे ईमानदार और पारदर्शी राजनीति की बात करते हैं।
यही वजह है कि आज प्रदर्शन कर रही Gen Z पीढ़ी उन्हें अपने सपनों का नेता मान रही है। सोशल मीडिया पर हैशटैग #BalenForPM ट्रेंड कर रहा है।
RSP का उभार और युवा राजनीति
Balen की जीत ने दूसरों को भी प्रेरित किया। इसका सबसे बड़ा असर दिखा Rastriya Swatantra Party (RSP) पर, जिसे रबी लामिछाने लीड कर रहे हैं। यह पार्टी अब नेपाल की संसद में बड़ी ताक़त बन चुकी है।
21 सीटें जीतकर उन्होंने दिखा दिया कि जनता पारंपरिक दलों से तंग आ चुकी है।
नेपाल की संसद में अब युवा और स्वतंत्र नेताओं की आवाज़ बुलंद हो रही है। यह राजनीति की दिशा बदलने वाला मोड़ हो सकता है।
सुदन गुरुङ: दर्द से निकला नेतृत्व
लेकिन नेपाल के नए दौर की कहानी सिर्फ़ Balen तक सीमित नहीं है। एक और नाम है – सुदन गुरुङ।
2015 के भूकंप में सुदन ने अपना बच्चा खो दिया। यह दर्द उन्हें तोड़ सकता था, लेकिन उन्होंने इसे अपनी ताक़त बना लिया।
वे एक इवेंट ऑर्गेनाइज़र से समाजसेवी बने। ‘हामी नेपाल’ नामक NGO की कमान संभाली और धरान के ‘घोपा कैंप आंदोलन’ का नेतृत्व किया। उनका काम साफ़ संदेश देता है – नेतृत्व का मतलब सत्ता नहीं, सेवा है।
क्यों सुन रहा है युवा सुदन को?
सुदन गुरुङ आज Gen Z का चेहरा इसलिए माने जा रहे हैं क्योंकि वे युवाओं की भाषा और डिजिटल टूल्स का सही इस्तेमाल करते हैं।
जहाँ गुस्सा हिंसा में बदल सकता था, वहाँ सुदन ने उसे शांतिपूर्ण आंदोलन में ढाला।
वे बार-बार कहते हैं – “बदलाव गोली से नहीं, एकजुटता से आएगा।”
उनकी यह अपील युवाओं के दिल को छू रही है।
नेपाल की राजनीति की पुरानी समस्या
नेपाल की राजनीति हमेशा अस्थिर रही है। पिछले तीन दशकों में शायद ही कोई प्रधानमंत्री पूरा कार्यकाल पूरा कर पाया हो। गठबंधन की राजनीति, भ्रष्टाचार और नेताओं की आपसी खींचतान ने देश को बार-बार पीछे धकेला है।
आज जो आंदोलन सड़कों पर है, वह सिर्फ़ ओली के खिलाफ नहीं है। यह उस पूरी व्यवस्था के खिलाफ है जिसने सालों से जनता की उम्मीदों को कुचला है।
नया सूरज या पुरानी अंधेरी राह?
अब सवाल यह है कि क्या Balen और सुदन जैसे चेहरे वास्तव में नेपाल की राजनीति बदल पाएंगे?
क्या उनकी ऊर्जा, ईमानदारी और जुनून लंबे समय तक टिक पाएंगे?
या फिर वे भी राजनीति की पुरानी जटिलताओं और गुटबाज़ी में खो जाएंगे?
फिलहाल इतना साफ़ है कि नेपाल की जनता बदलाव चाहती है। युवा अब सिर्फ़ वोटर नहीं रहना चाहते, वे सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं।
निष्कर्ष
नेपाल के आसमान में इस वक्त दो नए सितारे चमक रहे हैं – बालेंद्र शाह और सुदन गुरुङ।
उनकी कहानियाँ अलग-अलग हैं – एक इंजीनियर और रैपर से नेता बना, दूसरा अपने व्यक्तिगत दुख से निकलकर कार्यकर्ता बना। लेकिन दोनों में एक बात कॉमन है – जनता के लिए ईमानदारी और बदलाव की चाह।
नेपाल की सड़कों पर गूंजते नारे यही कह रहे हैं – अब राजनीति पुरानी किताबों से नहीं चलेगी, इसे युवा लिखेंगे।
क्या यह नया सूरज नेपाल की किस्मत बदल पाएगा? यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
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