
voter fraud in India: राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर साधा निशाना, कहा – “वोट चोरों की रक्षा कर रहे हैं मुख्य चुनाव आयुक्त”
voter fraud in India: कांग्रेस नेता और विपक्ष के प्रमुख चेहरे राहुल गांधी ने एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र में “वोट चोरी” के गंभीर आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को सीधे-सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है।
दिल्ली में एक प्रेजेंटेशन के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि “भारत में वोटरों के नाम फेक लॉग-इन के जरिए डिलीट किए जा रहे हैं और इसमें चुनाव आयोग की मिलीभगत है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार उन लोगों की रक्षा कर रहे हैं जिन्होंने लोकतंत्र को नष्ट कर दिया है।”
उनका दावा है कि वोट चोरी का सबसे ज़्यादा असर महिलाओं, दलितों और आदिवासियों पर हुआ है। यानी निशाना उन वर्गों को बनाया गया, जिन्हें कांग्रेस पारंपरिक तौर पर अपना मज़बूत वोटर मानती है।
“हाइड्रोजन बम” वाला बयान और बड़ा धमाका
राहुल गांधी ने हाल ही में बिहार में “वोट अधिकार यात्रा” निकाली थी। वहां उन्होंने जनता से कहा था कि जल्द ही वोट चोरी को लेकर देश के सामने ऐसा सबूत आएगा जो एटम बम नहीं बल्कि “हाइड्रोजन बम” जैसा होगा।
उन्होंने कहा – “बीजेपी और उनके सहयोगियों ने वोटर लिस्ट से नाम गायब कराए हैं। ये वही ताक़तें हैं जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की थी और आज संविधान की हत्या करने में लगी हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
बिहार में इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी के साथ तेजस्वी यादव और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मंच पर मौजूद थे। यह संकेत था कि विपक्ष इस मुद्दे को लेकर एकजुट होकर बड़ा राजनीतिक दांव खेलने की तैयारी में है।
कर्नाटक का उदाहरण – “6018 वोट चोरी का खेल”
राहुल गांधी ने अपने प्रजेंटेशन में कर्नाटक के आलंद विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण दिया। उन्होंने दावा किया कि यहां किसी ने 6,018 वोट हटाने की कोशिश की।
दिलचस्प बात यह है कि यह मामला अचानक ही पकड़ा गया। बूथ-स्तरीय अधिकारी ने देखा कि उसके चाचा का नाम वोटर लिस्ट से गायब है। जांच करने पर पता चला कि उसके ही पड़ोसी के नाम से लॉग-इन करके वोट हटाए गए। लेकिन पड़ोसी ने साफ इनकार कर दिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
राहुल का आरोप है कि यह दिखाता है कि कोई बड़ी “ताकत” सिस्टम को हाईजैक कर रही है और आम लोगों के वोट अपने हिसाब से हटा रही है।
महाराष्ट्र और हरियाणा पर भी आरोप
राहुल गांधी ने सिर्फ कर्नाटक ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में भी बीजेपी पर वोट चोरी का आरोप लगाया।
उनका दावा है कि –
- महाराष्ट्र चुनाव से पहले 40 लाख फर्जी मतदाता वोटर लिस्ट में जोड़े गए।
- हरियाणा में भी इसी खेल के कारण कांग्रेस हार गई।
- कर्नाटक की महादेवपुरा सीट पर एक लाख वोट चोरी किए गए।
राहुल का कहना है कि अगर वोट चोरी नहीं हुई होती तो कांग्रेस को कर्नाटक में 16 सीटें मिलतीं, जबकि असलियत में पार्टी को सिर्फ 9 सीटें मिलीं।
चुनाव आयोग पर सीधा हमला
राहुल गांधी ने कहा कि जो संस्था संविधान की रक्षा करने के लिए बनी थी, वही अब सत्ता पक्ष के इशारे पर काम कर रही है।
“चुनाव आयोग जैसी संस्था अब अस्तित्व में ही नहीं है। इसे कब्जा कर लिया गया है। और जब हम ये सबूत जनता के सामने रखेंगे तो पूरा देश समझ जाएगा कि लोकतंत्र कैसे चुराया गया।”
उन्होंने यहां तक कह दिया कि चुनाव आयोग के अधिकारियों को यह सोचने की ज़रूरत है कि वे बच जाएंगे। राहुल ने दावा किया कि उनके पास 100% सबूत मौजूद हैं।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
राहुल गांधी के इन आरोपों के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा – “चुनाव आयोग के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति की जा रही है। अगर राहुल गांधी के पास सबूत हैं तो वे हलफ़नामा दें, वरना देश से माफ़ी मांगें।”
हालांकि कांग्रेस का कहना है कि चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्ष के सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया और बचने की कोशिश की।
क्यों अहम है यह विवाद?
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में वोटर लिस्ट से नाम गायब होना या फर्जी नाम जोड़ना कोई छोटा आरोप नहीं है। हर चुनाव में कुछ शिकायतें आती रही हैं, लेकिन इस बार मामला अलग है क्योंकि राहुल गांधी इसे “हाइड्रोजन बम” बताकर जनता के बीच ले आए हैं।
यह सिर्फ वोट चोरी का सवाल नहीं बल्कि लोकतंत्र, संविधान और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल बन गया है।
आगे क्या?
राहुल गांधी और कांग्रेस ने साफ कहा है कि आने वाले दिनों में वे “सबूतों के ढेर” जनता के सामने रखेंगे। वहीं बीजेपी और चुनाव आयोग इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं।
सवाल यह है कि –
- क्या सचमुच बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट में धांधली हुई है?
- क्या विपक्ष इसके ठोस सबूत पेश कर पाएगा?
- या यह सिर्फ चुनावी राजनीति का हिस्सा है?
आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमाएगा और निश्चित तौर पर 2025-26 की भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा बन सकता है।
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