
Nepotism in Bollywood: नेपोटिज़्म का जवाब? आर्यन ख़ान की पहली वेब सीरीज़ से उठे नए सवाल
Nepotism in Bollywood: आपने नेपोटिज़्म शब्द ज़रूर सुना होगा, नेपोटिज़्म यानी भाई-भतीजावाद। जब भी किसी स्टारकिड की एंट्री होती है, सवाल यही उठता है—क्या यह बच्चा अपनी मेहनत से आगे बढ़ेगा या सिर्फ़ माता-पिता के नाम और पहचान से?
अब यही बहस दोबारा चर्चा में है, वजह हैं शाहरुख़ ख़ान के बेटे आर्यन ख़ान। आर्यन ने बतौर निर्देशक और लेखक अपनी पहली वेब सीरीज़ ‘द बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ बनाई है, जो 19 सितंबर को नेटफ़्लिक्स पर रिलीज़ हो चुकी है।
नेपोटिज़्म क्या है ?
यह एक दम घुस की तरह है , जैसे कई बड़े बड़े लोग अपना काम निकलवाने के लिए या किसी बड़ी पोस्ट पर आने के लिए घुस देते या किसी भी प्रकार का गलत रास्ता चुनते है , ठीक उसी प्रकार बॉलीबुड में भी लोग अपने रिश्तेदारों की मदद से अपना करियर बना रहे है। नेपोटिज़्म की वजह से असली टैलेंट पीछे रह जाता है और स्टारकिड्स को बार बार बड़ी फिल्मो में काम करने का मौका मिलता है , फिर चाहे उनके पास टेलेंट हो या न हो ।
क्यों खास है आर्यन का डेब्यू?
आर्यन के पास आसान रास्ता था। चाहें तो वह सीधे किसी बड़े बैनर की फ़िल्म में बतौर हीरो लॉन्च हो सकते थे। लेकिन उन्होंने रिस्क उठाया और एक वेब सीरीज़ बनाई, जो सीधे-सीधे बॉलीवुड और नेपोटिज़्म पर व्यंग्य करती है। अब दर्शको के लिए हैरानी की बात थी की , खुद नेपोकैड होते हुए उन्होंने यही थीम क्यों चुना ?
इस शो के ट्रेलर में ही एक डायलॉग है जो सबको सोचने पर मजबूर करता है—“पापा की परछाई से निकलो तो मालूम पड़ेगा कितनी धूप है।” यानी आर्यन ने वही मुद्दा चुना, जो हमेशा से उनके और दूसरे स्टारकिड्स के पीछे छाया रहा है।
लॉन्च इवेंट और ‘पापा हैं न’
सीरीज़ लॉन्च पर आर्यन ने साफ़ कहा कि वह बहुत नर्वस हैं। उन्होंने टॉर्च और कागज़ तक साथ रखा था ताकि अगर बिजली चली जाए तो भी स्पीच पढ़ सकें। और फिर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा—“अगर मुझसे गलती हो जाए तो… पापा हैं न!”
यह लाइन तुरंत वायरल हो गई। किसी ने कहा वह सुपरस्टार शाहरुख़ की बात कर रहे थे, तो किसी ने इसे एक बेटे का अपने पिता पर भरोसा बताया। पर मेरा सवाल ये भी है की अगर वोह नेपोकैड नहीं होते और आम मिडिल क्लास फिम्ली से बिलोंग करते तोह क्या वो यह बात बोल पाते ? मतलब साफ़ है कही न कही उनको शाहरुख खान के बेटे होने का सुख ज़रूर है ।
इंडस्ट्री की मिली-जुली राय
फ़िल्म ट्रेड एनालिस्ट गिरीश वानखेड़े मानते हैं कि आर्यन का यह कदम रिस्की ज़रूर है लेकिन तारीफ़ के क़ाबिल है। उनके मुताबिक—“आर्यन ने नेपोटिज़्म को कहानी बना दिया। वह चाहते तो आसान रास्ता चुन सकते थे, लेकिन उन्होंने जोखिम लिया। अब उन्हें दर्शकों के टेस्ट पर खरा उतरना होगा।”
अभिनेत्री स्वरा भास्कर पहले भी कह चुकी हैं कि फ़िल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज़्म मौजूद है, लेकिन मेहनत और टैलेंट से ही टिकना पड़ता है। वहीं अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी मानते हैं कि दर्शक भी इस सिस्टम को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि स्टारकिड्स की फ़िल्में देखने वही लोग जाते हैं।
पुरानी बहस, नए सवाल
नेपोटिज़्म का मुद्दा नया नहीं है। 2017 में कंगना रनौत ने करण जौहर को “फ्लैगबेयरर ऑफ़ नेपोटिज़्म” कहा था, और फिर से सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद यह बहस तेज़ हुई।
लेकिन इतिहास उठाकर देखें तो हर स्टारकिड सफल नहीं हुआ।
- देव आनंद के बेटे सुनील आनंद
- मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी
- हेमा मालिनी की बेटी ईशा देओल
- सुनील शेट्टी की बेटी आथिया शेट्टी
इन सबकी फ़िल्में नहीं चलीं। दूसरी तरफ़ रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, सनी देओल और करीना कपूर जैसे नाम सफल हुए। यानी स्टारकिड होने से दरवाज़ा खुल सकता है, लेकिन टिकना टैलेंट और दर्शकों की पसंद पर ही निर्भर करता है।
दर्शकों की असली परीक्षा
आर्यन ख़ान की सीरीज़ में दिलचस्प बात यह भी है कि इसमें इंडस्ट्री के बच्चे और बाहर से आए चेहरे, दोनों मौजूद हैं। यानी स्क्रीन पर भी वही टकराव नज़र आएगा, जो असल ज़िंदगी में बहस का कारण बनता है।
सीरीज़ का एक और डायलॉग इस बहस को और गहरा करता है—“बॉलीवुड सपनों का शहर है… पर ये शहर सबका नहीं होता। कुछ लोग हीरो के घर पैदा होते हैं और कुछ लोग… हीरो पैदा होते हैं।” अब यही कसौटी आर्यन पर भी लागू होगी।
सिर्फ़ आर्यन की नहीं, सिस्टम की लड़ाई
वरिष्ठ समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज का कहना है कि इंडस्ट्री के ताक़तवर लोग नेपोटिज़्म को अक्सर मज़ाक बनाकर हल्का करने की कोशिश करते हैं। कभी अवॉर्ड शो में चुटकी ली जाती है, कभी इसे ‘नेपोकिड’ टी-शर्ट पहनाकर हंसी में उड़ाया जाता है। लेकिन सच्चाई यही है कि यह सिस्टम हमेशा मौजूद रहा है।
हॉलीवुड का हाल
नेपोटिज़्म की बहस सिर्फ़ बॉलीवुड तक सीमित नहीं है। हॉलीवुड में भी कई बार यह सवाल उठता रहा है। गॉडफ़ादर के डायरेक्टर फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की बेटी सोफ़िया कोपोला पर भी यही आरोप लगे थे, हालांकि उनकी फ़िल्मों ने ऑस्कर तक जीते।
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