Karwa Chauth 2025: क्यों मनाया जाता है यह पवित्र व्रत, क्या है इसका महत्व और पूजा विधि
Karwa Chauth 2025: भारत में अगर किसी व्रत या त्योहार को प्रेम, समर्पण और आस्था का प्रतीक कहा जाए — तो निस्संदेह वह करवा चौथ है। यह सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्सव है जो पति-पत्नी के रिश्ते में अटूट विश्वास और प्रेम का बंधन जोड़ता है। उत्तर भारत के कई राज्यों — जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश — में यह पर्व बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है।
इस वर्ष करवा चौथ शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला उपवास रखती हैं और अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
करवा चौथ का अर्थ और महत्व
‘करवा’ शब्द मिट्टी के उस घड़े को कहा जाता है, जिसमें पानी रखा जाता है, और ‘चौथ’ का अर्थ होता है कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि। इस दिन महिलाएं देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और उनसे अपने पति की दीर्घायु का आशीर्वाद मांगती हैं।
यह व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि इसमें प्रेम, विश्वास और त्याग की भावना गहराई से जुड़ी हुई है। यह त्योहार बताता है कि रिश्ते केवल शब्दों से नहीं, बल्कि निष्ठा और आस्था से निभाए जाते हैं।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
करवा चौथ से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा है रानी वीरवती की। कहा जाता है कि रानी ने विवाह के बाद पहला करवा चौथ व्रत रखा था। पूरे दिन बिना अन्न-जल के रहकर उन्होंने अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की।
लेकिन चंद्रोदय से पहले ही वे बहुत कमजोर हो गईं। उनके भाइयों ने बहन को तकलीफ में देखकर छल से पेड़ों के बीच दीपक रख दिया और कहा कि चांद निकल आया है। वीरवती ने व्रत तोड़ा, लेकिन उसी समय उनके पति की मृत्यु हो गई।
दुखी होकर उन्होंने देवी पार्वती से प्रार्थना की। उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके पति को जीवनदान मिला। तभी से यह व्रत पतिव्रता स्त्रियों के लिए पवित्र माना गया।
एक और कथा करवा नाम की स्त्री की है, जिन्होंने अपने पति की रक्षा के लिए मृत्यु के देवता यमराज से तक भिड़ गईं। उनकी सच्ची निष्ठा के आगे यमराज को भी झुकना पड़ा और उन्होंने करवा के पति के प्राण लौटा दिए।
इन कहानियों में संदेश है — सच्ची निष्ठा, प्रेम और विश्वास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
करवा चौथ की परंपरा की शुरुआत
इतिहासकारों का मानना है कि करवा चौथ की परंपरा हजारों साल पुरानी है। पहले यह एक सामाजिक परंपरा थी, जब महिलाएं युद्ध या व्यापार पर गए अपने पतियों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती थीं। वे मिट्टी के करवे में जल भरकर एक-दूसरे को भेंट करतीं और आपसी सहयोग का बंधन मजबूत करतीं।
धीरे-धीरे यह परंपरा धार्मिक रूप लेती गई और आज यह व्रत पूरे देश में प्रेम, आस्था और स्त्री शक्ति का प्रतीक बन गया है।
करवा चौथ 2025 शुभ मुहूर्त
- व्रत तिथि की शुरुआत: 9 अक्टूबर रात 10:54 बजे
- व्रत तिथि समाप्ति: 10 अक्टूबर रात 7:38 बजे
- पूजा का शुभ समय: शाम 5:57 बजे से 7:11 बजे तक (1 घंटा 14 मिनट)
- चंद्रोदय का समय: शाम 7:42 बजे
इस अवधि में महिलाएं चौथ माता, भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और श्री गणेश की पूजा करती हैं।
करवा चौथ पूजा विधि
- शाम के समय लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
- भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
- एक लोटे में जल भरें, उस पर श्रीफल रखें और कलावा बांधें।
- दूसरे मिट्टी के करवे में जल भरकर ढक्कन में शक्कर और दक्षिणा रखें।
- रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं और दीपक जलाकर पूजा आरंभ करें।
- चौथ माता की कथा सुनें या पढ़ें।
- चंद्रोदय के बाद छलनी से चांद को देखें, अर्घ्य दें और अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करके व्रत तोड़ें।
करवा चौथ का आधुनिक रूप
आज के समय में करवा चौथ ने पारंपरिकता के साथ आधुनिकता का सुंदर मेल बना लिया है। महिलाएं सोलह शृंगार करती हैं, मेंहदी लगाती हैं, गीत गाती हैं और परिवार के साथ उत्सव मनाती हैं। कई पति भी अब प्रेम और समानता के प्रतीक के रूप में अपनी पत्नियों के साथ उपवास रखते हैं।
यह त्योहार अब सिर्फ धार्मिक नहीं रहा, बल्कि पति-पत्नी के बीच साझेदारी, आपसी समझ और सम्मान का उत्सव बन गया है।
करवा चौथ का संदेश
करवा चौथ सिखाता है कि सच्चा प्रेम केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में झलकता है।
यह दिन न केवल वैवाहिक बंधन को मजबूत करता है, बल्कि हमारे भीतर छिपे विश्वास, त्याग और समर्पण के भाव को भी उजागर करता है।
आज जब जीवन भागदौड़ से भरा है, करवा चौथ हमें यह याद दिलाता है कि रिश्तों की जड़ें आस्था और प्रेम से सींची जाती हैं।
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