तीन दशक बाद अमेरिका फिर से धरती के नीचे परमाणु विस्फोट करने की तैयारी में है
US nuclear test: तीन दशक बाद अमेरिका फिर से धरती के नीचे परमाणु विस्फोट करने की तैयारी में है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को बयान देकर अमेरिकी और वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी। उन्होंने कहा कि अमेरिका अब “समान स्तर” पर आने के लिए अपने न्यूक्लियर वेपन प्रोग्राम को फिर से सक्रिय करेगा। ट्रंप के इस बयान के बाद रूस, चीन और यूरोपीय देशों में चिंता की लहर दौड़ गई है।
US nuclear test: ट्रंप ने क्यों दी यह धमकी?
ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि रूस और चीन लगातार परमाणु परीक्षण कर रहे हैं, जबकि अमेरिका केवल “देखता” रह गया है। उन्होंने लिखा “दुनिया जान ले कि अगर कोई देश परमाणु शक्ति दिखाने की कोशिश करेगा, तो अमेरिका पीछे नहीं रहेगा। अब वक्त बराबरी का है।”
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है जब रूस ने हाल ही में “बुरेवेस्टनिक” नामक परमाणु-संचालित मिसाइल का परीक्षण किया है, जिसे “अनलिमिटेड रेंज” यानी असीमित दूरी तक मार करने में सक्षम बताया जा रहा है। वहीं चीन भी तेजी से अपने परमाणु भंडार का विस्तार कर रहा है।
US nuclear test: 1992 के बाद पहली बार होगा न्यूक्लियर टेस्ट
अमेरिका ने आखिरी बार सितंबर 1992 में नेवादा रेगिस्तान में परमाणु परीक्षण किया था। उसके बाद उसने ‘कंप्रीहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी’ (CTBT) पर हस्ताक्षर करते हुए सभी देशों से परीक्षण बंद करने की अपील की थी। हालांकि ट्रंप प्रशासन इस संधि को कभी पूरी तरह मानने के पक्ष में नहीं रहा।
अब यदि ट्रंप का यह आदेश अमल में आता है, तो यह 33 साल बाद अमेरिका का पहला न्यूक्लियर टेस्ट होगा, जो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समीकरणों को हिला सकता है।
US nuclear test: रूस और चीन पर दबाव बनाने की रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान केवल सैन्य नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। रूस और चीन पिछले कुछ वर्षों से परमाणु हथियारों के क्षेत्र में नई तकनीकें विकसित कर रहे हैं। जैसे; हाइपरसोनिक मिसाइलें, न्यूक्लियर ड्रोन टॉरपीडो और सबमरीन आधारित हथियार प्रणाली।
अमेरिका को डर है कि वह “तकनीकी बढ़त” खो रहा है। इसीलिए ट्रंप इसे एक “स्ट्रैटेजिक सिग्नल” के रूप में पेश कर रहे हैं कि अमेरिका अब रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक नीति अपनाएगा।
US nuclear test: पेंटागन और वैज्ञानिकों की चिंता
अमेरिकी रक्षा विभाग (Pentagon) के कई पूर्व अधिकारी इस फैसले से असहज हैं। उनका कहना है कि 30 साल से अधिक समय तक बिना विस्फोट किए कंप्यूटर सिमुलेशन और वैज्ञानिक अनुसंधान के जरिए परमाणु हथियारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही थी।
अब अगर परीक्षण दोबारा शुरू होता है, तो यह न सिर्फ पर्यावरणीय खतरा बढ़ाएगा, बल्कि अन्य देशों को भी ऐसा करने का बहाना मिल जाएगा।
US nuclear test: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी बेचैनी
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने ट्रंप के बयान पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह कदम CTBT जैसी संधियों को कमजोर कर सकता है, जिनका उद्देश्य दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ रोकना था।
रूस ने कहा है कि अगर अमेरिका परीक्षण करता है, तो वह भी “अपने विकल्पों पर विचार करेगा।” वहीं चीन ने इसे “अंतरराष्ट्रीय स्थिरता के लिए खतरा” बताया है।
US nuclear test: भारत और एशिया पर क्या असर?
भारत सीधे तौर पर इस विवाद का हिस्सा नहीं है, लेकिन उसका सामरिक हित इससे जुड़ा है। अगर अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश फिर से परमाणु परीक्षण शुरू करते हैं, तो इससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदल सकता है।
भारत पहले से चीन और पाकिस्तान के साथ सीमित सामरिक प्रतिस्पर्धा में है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर हथियारों की दौड़ तेज होती है, तो भारत को भी अपनी सुरक्षा नीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
US nuclear test: क्या पुतिन और जिनपिंग से डर गए ट्रंप?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान केवल डर नहीं, बल्कि “प्रदर्शन की राजनीति” है। 2026 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले ट्रंप अपनी “मजबूत नेता” वाली छवि दोबारा गढ़ना चाहते हैं।
उनके आलोचक कहते हैं कि पुतिन और जिनपिंग की सैन्य चालों ने ट्रंप को असहज कर दिया है, इसलिए उन्होंने अमेरिकी जनता के बीच “सुरक्षा” का मुद्दा फिर से जिंदा किया है।
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