Mumbai hostage case: मुंबई के पवई इलाके में हाल ही में हुआ बंधक कांड अब एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदल गया है। इस मामले का आरोपी रोहित आर्य, जो अब पुलिस मुठभेड़ में मारा जा चुका है, एक ठेकेदार था और शिक्षा विभाग से जुड़े ‘स्वच्छ मॉनिटर प्रोजेक्ट’ पर काम कर रहा था। आरोप है कि उसे इस प्रोजेक्ट का करीब 2 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं मिला, और यही उसकी बगावत की असली वजह थी।
कैसे शुरू हुआ पूरा मामला
घटना मुंबई के आरए स्टूडियो में हुई, जहां रोहित आर्य ने 17 बच्चों और दो वयस्कों को बंधक बना लिया था। पुलिस को दोपहर करीब 1:45 बजे इमरजेंसी कॉल मिली। जब टीम मौके पर पहुँची, तो आर्य ने बच्चों को छोड़ने से मना कर दिया। हालात बिगड़ते देख पुलिस ने अंदर घुसकर सभी बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला।
हालांकि, इस दौरान हुई मुठभेड़ में रोहित आर्य गंभीर रूप से घायल हो गया और बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
कौन था रोहित आर्य?
रोहित आर्य नागपुर का रहने वाला था और पहले एक प्रोफेसर के तौर पर काम करता था। हाल के वर्षों में वह मुंबई के चेंबूर इलाके में रहने लगा और शिक्षा विभाग के साथ “स्वच्छ मॉनिटर” नामक एक प्रोजेक्ट पर ठेका लेकर काम कर रहा था।
इस योजना के तहत स्कूलों में स्वच्छता और मॉनिटरिंग से जुड़ा डिजिटल सिस्टम बनाया जा रहा था।
रोहित का दावा था कि उसने सारा काम पूरा कर दिया, लेकिन सरकार ने करीब 2 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया। कई महीनों तक अफसरों और मंत्रियों के चक्कर लगाने के बाद भी जब उसे पैसा नहीं मिला, तो वह मानसिक तनाव में चला गया।
पूर्व मंत्री पर लगे आरोप
घटना के बाद आरोप लगे कि उस वक्त के महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने भुगतान रोका था। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया कि रोहित आर्य ने मंत्री के बंगले के बाहर भूख हड़ताल तक की थी।
हालांकि, दीपक केसरकर ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने कहा की “रोहित आर्य को विभाग ने चेक के ज़रिए भुगतान कर दिया था। विभाग को शिकायत थी कि उसने कुछ बच्चों से सीधे फीस वसूली थी, जो नियमों के खिलाफ था।”
बंधक बनाने की योजना पहले से तय थी
पुलिस जांच के मुताबिक, रोहित आर्य ने इस बंधक कांड की पहले से योजना बनाई थी।
वह पिछले चार-पाँच दिनों से बच्चों के ऑडिशन ले रहा था, और जिस दिन घटना हुई, उस दिन उसने 80 बच्चों को जाने दिया, लेकिन 17 बच्चों को वहीं रोक लिया।
यानी यह कोई अचानक लिया फैसला नहीं था, बल्कि एक सुनियोजित कदम था।
आरोपी का आखिरी वीडियो
बंधक बनाने के बाद रोहित आर्य ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो मैसेज पोस्ट किया।
उसने कहा की “मैं आतंकवादी नहीं हूँ। मैं किसी से पैसे नहीं मांग रहा। मैं सिर्फ कुछ लोगों से बात करना चाहता हूँ।”
उसने आगे कहा कि उसे “आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन वह अपनी जान लेने के बजाय सिस्टम से बात करने के लिए यह कदम उठा रहा है।”
उसकी ये बातें सुनकर साफ लगता है कि वह गहरे मानसिक तनाव में था और खुद को सिस्टम से ठगा हुआ महसूस कर रहा था।
सभी बच्चे सुरक्षित
पुलिस ने इस पूरे ऑपरेशन में सभी 17 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला। पुलिस टीम ने बताया कि आर्य ने जैसे ही बच्चों को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी, टीम ने बाथरूम के रास्ते अंदर घुसकर उसे काबू करने की कोशिश की। इसी दौरान गोली चली और रोहित आर्य घायल हो गया। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
क्या कहती है पुलिस?
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह “मानसिक दबाव और आर्थिक विवाद से उपजा अपराध” था। एक अधिकारी ने कहा की “आर्य अपने काम का भुगतान न मिलने से निराश था। उसने ध्यान खींचने के लिए यह रास्ता चुना, लेकिन अंत में उसकी जान चली गई।”
अब राजनीति में गरमाहट
इस एनकाउंटर के बाद महाराष्ट्र की राजनीति भी गरम हो गई है। विपक्ष ने शिंदे सरकार के मंत्रियों पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं, जबकि सरकार इसे एक “दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन आवश्यक पुलिस कार्रवाई” बता रही है।
वहीं, कुछ सामाजिक संगठनों का कहना है कि अगर सरकार ने समय पर भुगतान कर दिया होता, तो शायद यह हादसा कभी नहीं होता।
एक सिस्टम की नाकामी?
रोहित आर्य की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं —
क्या एक ठेकेदार की शिकायत को इतनी देर तक अनसुना किया जा सकता है?
क्या प्रशासनिक लापरवाही किसी इंसान को इस हद तक पहुंचा सकती है कि वह बच्चों को बंधक बना ले?
एक पूर्व अधिकारी ने कहा की “यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता है। किसी भी नागरिक को अपनी बात कहने के लिए ऐसे कदम नहीं उठाने पड़ने चाहिए।”
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