Rupee vs Dollar: रुपया 90 के पार, डॉलर के मुकाबले नई रिकॉर्ड गिरावट – अर्थव्यवस्था और राजनीति में हलचल तेज
भारतीय Rupee vs Dollar बाजार में आज ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई। रुपया शुरुआती व्यापार में ₹90.43 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया, जो अब तक का सबसे कमजोर स्तर है। लगातार बढ़ती डॉलर की मांग, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण भारतीय मुद्रा पर भारी दबाव देखने को मिल रहा है।
यह गिरावट सिर्फ वित्तीय बाजार तक सीमित नहीं है; इसका सीधा असर आम लोगों से लेकर उद्योगों तक हर स्तर पर पड़ने वाला है। वहीं विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है।
रुपया क्यों गिर रहा है?
भारतीय रुपए की कमजोरी के पीछे कई बड़े कारण हैं:
1. विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली
FII निवेशक पिछले कई हफ्तों से भारतीय स्टॉक मार्केट से पैसा निकाल रहे हैं। इसका सीधा दबाव रूपये की वैल्यू पर पड़ा।
2. आयातकों की डॉलर मांग में तेजी
कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयों और मशीनरी जैसे बड़े आयात महंगे होने की आशंका से भारत में डॉलर की मांग बढ़ी।
जितनी ज्यादा डॉलर की डिमांड, उतना कमजोर रुपया।
3. RBI की सीमित हस्तक्षेप रणनीति
रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति बैठक से पहले रुपये को गिरने दे रहा है ताकि बाजार खुद संतुलन बनाए। विश्लेषकों के अनुसार, RBI अत्यधिक हस्तक्षेप से बच रहा है।
4. वैश्विक आर्थिक तनाव
मध्य-पूर्व तनाव, अमेरिका में ब्याज दरें ऊंची रहना और यूरोप की मंदी की आशंका — इन सभी ने डॉलर को मजबूत किया और रुपये को कमजोर।
आम जनता पर असर
रुपये की गिरावट का असर सीधे भारतीय नागरिकों के जीवन पर पड़ता है:
1. विदेश यात्रा होगी और महंगी
डॉलर मजबूत होने की वजह से टिकट, होटल और अन्य खर्चे बढ़ जाएंगे।
2. विदेश में पढ़ने की लागत बढ़ेगी
Student fees, accommodation और basic खर्चे सभी महंगे होंगे।
3. पेट्रोल-डीजल का दबाव बढ़ेगा
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। डॉलर महंगा होने से तेल कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जो आगे चलकर पेट्रोल-डीजल के दामों में दिखाई दे सकती है।
4. इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स और गैजेट्स महंगे
मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, एयर कंडीशनर जैसे सामानों की कीमतें बढ़ सकती हैं।
किसे फायदा होगा?
रुपये की कमजोरी कुछ सेक्टर्स को लाभ भी पहुंचाती है:
Exports
टेक्सटाइल, IT services, दवाइयां और रसायन उद्योग ग्लोबल मार्केट में और ज्यादा competitive हो जाते हैं।Remittances
विदेशों में काम करने वाले भारतीयों के परिवारों को ज्यादा रुपया मिलेगा।
लेकिन लाभ सीमित है और समग्र रूप से रुपए की गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का संकेत है।
राजनीतिक बयानबाज़ी तेज
रुपया ₹90 प्रति डॉलर के पार जाते ही राजनीति भी गरमा गई। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा:
“जब डॉलर पहले बढ़ा था तब BJP ने क्या जवाब दिया था?
अब क्या जवाब है?”
प्रियंका ने सोशल मीडिया पर लिखा कि बीजेपी सरकार ने अर्थव्यवस्था को इस स्तर तक पहुंचा दिया है कि रुपया हर दिन नया रिकॉर्ड बना रहा है। उन्होंने सवाल किया कि सरकार मौजूदा मुद्रा संकट पर क्या कदम उठा रही है।
यह बयान वायरल हो गया और विपक्ष के अन्य नेताओं ने भी रुपये की गिरावट को सरकार की “आर्थिक नीतियों की नाकामी” बताया।
बाजार विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि:
- जब तक crude oil prices स्थिर नहीं होते
- जब तक global investors भारत में वापस निवेश नहीं लाते
- और जब तक RBI मजबूत हस्तक्षेप नहीं करता
तब तक रुपये पर दबाव बना रहेगा।
कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी भी दी है कि यदि डॉलर लगातार मजबूत रहा, तो रुपया 91–92 के स्तर को भी छू सकता है।
क्या RBI कदम उठाएगा?
RBI इस समय दो रास्तों पर विचार कर सकता है:
1. Dollar selling intervention
भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर बाजार में लिक्विडिटी बढ़ा सकता है।
2. ब्याज दरें स्थिर रखना
उच्च ब्याज दरें विदेशी निवेश को रोक सकती हैं, इसलिए RBI बैठक में सख्त टिप्पणियां कर सकता है।
हालांकि केंद्रीय बैंक अभी हालात पर नजर रख रहा है और अचानक कोई बड़ा कदम नहीं उठाना चाहता।
भारत के लिए आगे की राह
भारत के लिए आने वाले महीनों में कई चुनौतियाँ हैं:
- चुनावी साल में आर्थिक संकेतकों को स्थिर रखना
- महंगाई पर नियंत्रण
- आयात बिल कम करना
- विदेशी निवेश आकर्षित करना
सरकार और RBI दोनों के लिए यह एक संवेदनशील आर्थिक समय है।






