पुणे ज़िले के एक सरकारी आदिवासी छात्रावास में रहने वाली कई छात्राओं ने आरोप लगाया है कि छुट्टियों से लौटने के बाद उन्हें हॉस्टल में प्रवेश से पहले यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट (UPT) करवाने के लिए मजबूर किया जाता है।
Pune UPT test controversy: पुणे ज़िले के एक सरकारी आदिवासी छात्रावास में रहने वाली कई छात्राओं ने आरोप लगाया है कि छुट्टियों से लौटने के बाद उन्हें हॉस्टल में प्रवेश से पहले यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट (UPT) करवाने के लिए मजबूर किया जाता है। छात्राओं का कहना है कि यह प्रक्रिया बेहद शर्मनाक है और सरकारी निर्देशों के बावजूद इसे रोका नहीं गया है।
हालाँकि आदिवासी विकास विभाग और संबंधित अधिकारी स्पष्ट कर चुके हैं कि प्रेग्नेंसी टेस्ट किसी भी स्थिति में अनिवार्य नहीं है, लेकिन छात्राओं का कहना है कि हॉस्टल में यह प्रथा अब भी जारी है।
क्या है Pune UPT test controversy?
कई छात्राओं के मुताबिक, उन्हें एक प्रेग्नेंसी किट दी जाती है, फिर सरकारी अस्पताल जाकर डॉक्टरों के सामने टेस्ट करना पड़ता है। नतीजा नेगेटिव आने पर ही हॉस्टल में प्रवेश मिलता है।
पहली वर्ष की कॉलेज छात्रा स्नेहा (बदला हुआ नाम) ने कहा, “जब से मैं फर्स्ट ईयर में आई हूँ, कहा जाता है कि अगर UPT टेस्ट नहीं करवाएँगी, तो हॉस्टल में रहने नहीं दिया जाएगा।”
इसी तरह, आशा (बदला हुआ नाम) ने बताया कि सात–आठ दिन की छुट्टी के बाद लौटने पर उन्हें अनिवार्य रूप से यह टेस्ट कराना पड़ता है।
“हमारी मांग बस इतनी है कि यह टेस्ट बंद किया जाए। इससे मानसिक तनाव होता है और हमें शक की नज़र से देखा जाता है।”
छात्रा रेखा (बदला हुआ नाम) ने बताया, “UPT टेस्ट किए बिना फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता। पूरी प्रक्रिया पूरी करनी होती है, तभी सर्टिफिकेट मिलता है।”
सरकारी नियमों में कहीं इसका जिक्र था?
राज्य के आदिवासी विकास विभाग की आयुक्त लीना बंसोड़ ने कहा, “ऐसा कोई नियम नहीं है कि छात्राओं को प्रेग्नेंसी टेस्ट करवाना पड़े। यदि कहीं ऐसा हो रहा है तो यह बिल्कुल गलत है।” परियोजना अधिकारी प्रदीप देसाई ने भी दावा किया कि विभाग की ओर से ऐसे किसी टेस्ट का निर्देश जारी नहीं किया गया है। लेकिन छात्राओं का कहना है कि इन दावों के बावजूद अक्टूबर और नवंबर में भी उनसे टेस्ट करवाए गए।
पुणे के एक आश्रम स्कूल से भी सामने आई शिकायत
मामला सिर्फ एक हॉस्टल तक सीमित नहीं है। पुणे ज़िले के ही एक आश्रम स्कूल में भी छात्राओं से गर्भावस्था परीक्षण कराने की शिकायत मिली है। एक स्थानीय सरकारी स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ने पुष्टि की कि, “आश्रम स्कूल के निर्देश पर छात्राएं UPT किट लेकर आती हैं। टेस्ट हमारे रजिस्टर में दर्ज किया जाता है और स्कूल के फॉर्म पर भी इसका उल्लेख होता है।”
एक छात्रा की माँ ने कहा कि हर बार टेस्ट कराने में 150–200 रुपये का खर्च आता है, जिसका बोझ माता-पिता पर पड़ता है।
छात्राएं मानसिक तनाव से ग्रसित
छात्र संगठन स्टूडेंट फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) ने इसे मानसिक यातना बताते हुए तुरंत रोक लगाने की मांग की है। SFI पुणे ज़िला अध्यक्ष संस्कृति गोडे ने कहा, “जब लड़कियां UPT टेस्ट के लिए अस्पताल जाती हैं, तो उन्हें डॉक्टरों और लोगों के व्यवहार का सामना करना पड़ता है। यह अपमानजनक और मानसिक रूप से कष्टदायक है।” उन्होंने प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर परीक्षण तुरंत बंद करने की मांग की।
महिला आयोग ने पहले भी लिया था संज्ञान
सितंबर 2024 में भी पुणे के वाकड स्थित एक हॉस्टल में ऐसी शिकायतें सामने आई थीं। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रुपाली चाकणकर ने बिना सूचना दिए हॉस्टल का दौरा किया और छात्राओं से बात की। उन्होंने कहा, “कानून में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है। छात्राओं की पढ़ाई के दौरान ऐसे परीक्षण उनके आत्मविश्वास को तोड़ते हैं। यह गलत है और तत्काल बंद होना चाहिए।” इसके बाद आदिवासी विकास आयुक्तालय ने 30 सितंबर को पत्र जारी कर कहा था कि UPT टेस्ट पर कोई दबाव नहीं डाला जाए।
अधिकारियों का दावा प्रक्रिया 4 महीने पहले बंद
पुणे ज़िला सिविल सर्जन डॉ. नागनाथ येमपल्ले ने कहा, “चार महीने पहले यह प्रक्रिया बंद कर दी गई है। पहले छुट्टियों के बाद लौटने वाली लड़कियों को UPT टेस्ट करवाना होता था।”
लेकिन छात्राओं का कहना है कि नवंबर तक उनसे टेस्ट कराए गए, जिससे सरकारी दावों पर सवाल उठ रहे हैं।
देश में हर साल ठंड से लाखों मौतें, जानें हाइपोथर्मिया (Hypothermia) क्या है और कैसे करें बचाव?
Red Fort Diwali celebration: आखिर क्यों 10 दिसंबर को सरकार दिवाली मनाने की तैयारी कर रही है?






