आखिर देश की आर्थिक मुश्किलें एक झटके में खत्म क्यों नहीं हो सकतीं?
Why RBI cannot print unlimited money: जब भी देश में महंगाई, बेरोजगारी या आर्थिक दबाव की बात होती है, तो आम लोगों के मन में एक सीधा-सा सवाल उठता है अगर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास नोट छापने की ताकत है, तो सरकार हर किसी को पैसा क्यों नहीं दे देती? आखिर देश की आर्थिक मुश्किलें एक झटके में खत्म क्यों नहीं हो सकतीं?
इस सवाल का जवाब सुनने में भले आसान लगे, लेकिन इसके पीछे देश की पूरी आर्थिक व्यवस्था, कानून और अंतरराष्ट्रीय भरोसे का गणित छिपा है।
RBI क्या है और इसकी भूमिका क्या है?
भारतीय रिजर्व बैंक देश का केंद्रीय बैंक है। इसकी स्थापना 1926 में रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस की सिफारिश पर हुई थी, जिसे हिल्टन यंग कमीशन भी कहा जाता है। शुरुआत में RBI एक निजी संस्था था, लेकिन 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर इसे भारत का केंद्रीय बैंक बना दिया गया। इसके बाद से यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है।
RBI का काम सिर्फ नोट छापना नहीं है। इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी देश की आर्थिक स्थिरता बनाए रखना, बैंकों और जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना, महंगाई को काबू में रखना और भारतीय रुपये पर लोगों का भरोसा कायम रखना है। इसके अलावा RBI सरकारी बॉन्ड, विदेशी मुद्रा भंडार और मौद्रिक नीति (Monetary Policy) को भी नियंत्रित करता है।
क्या RBI मनमर्जी से नोट छाप सकता है?
यह एक आम धारणा है कि RBI के पास नोट छापने की मशीनें हैं, इसलिए वह जब चाहे जितना चाहे पैसा छाप सकता है। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। भारत में करेंसी प्रिंटिंग एक तय कानूनी ढांचे के तहत होती है।
भारत में सिक्के बनाने का अधिकार कॉइनेज एक्ट, 1961 के तहत सिर्फ केंद्र सरकार के पास है, जबकि कागजी नोट छापने की जिम्मेदारी RBI की होती है। लेकिन RBI भी यह काम बिना सीमा के नहीं कर सकता।
मिनिमम रिजर्व सिस्टम क्या है?
भारत में नोट छापने की व्यवस्था “मिनिमम रिजर्व सिस्टम” पर आधारित है, जो 1957 से लागू है। इस सिस्टम के तहत RBI को हर समय कम से कम ₹200 करोड़ की संपत्ति रिजर्व में रखनी होती है।
इसमें से ₹15 करोड़ सोने के रूप में और ₹85 करोड़ विदेशी मुद्रा (Foreign Exchange) के रूप में रखना अनिवार्य है। यही रिजर्व भारतीय करेंसी की गारंटी माना जाता है।
हर भारतीय नोट पर RBI गवर्नर की ओर से लिखा होता है “मैं धारक को इस राशि का भुगतान करने का वचन देता हूं।”
इसका मतलब यह है कि RBI उस नोट की कीमत के बराबर संपत्ति अपने पास सुरक्षित रखता है। अगर RBI रिजर्व से ज्यादा नोट छाप देगा, तो उसके पास उस वादे को निभाने के लिए पर्याप्त सोना या विदेशी मुद्रा नहीं बचेगी।
नोट कहां और कैसे छपते हैं?
भारत में करेंसी प्रिंटिंग चार प्रमुख प्रेस में होती है देवास (मध्य प्रदेश), नासिक (महाराष्ट्र), मैसूर (कर्नाटक) और सालबोनी (पश्चिम बंगाल)।
देवास और नासिक सरकारी प्रेस हैं, जबकि मैसूर और सालबोनी का संचालन RBI के नियंत्रण में होता है।
हर साल की शुरुआत में RBI यह आकलन करता है कि कितने नए नोटों की जरूरत होगी। इसके लिए पुराने और खराब हो चुके नोटों, बाजार की मांग और आर्थिक स्थिति का डेटा जुटाया जाता है। इसके बाद वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर तय किया जाता है कि साल भर में कितने नोट छापे जाएंगे।
अगर अनलिमिटेड नोट छाप दिए जाएं तो क्या होगा?
अगर देश में बेहिसाब नोट छाप दिए जाएं, तो सबसे पहला असर महंगाई पर पड़ेगा। जब बाजार में अचानक बहुत ज्यादा पैसा आ जाता है, लेकिन सामान और सेवाएं उतनी ही रहती हैं, तो उनकी कीमतें तेजी से बढ़ जाती हैं।
मान लीजिए सरकार हर नागरिक को एक-एक लाख रुपये दे दे। शुरुआत में लोगों को लगेगा कि उनकी आर्थिक समस्या खत्म हो गई। लेकिन जल्द ही दूध, दाल, सब्जी, मकान और गाड़ियों की कीमतें कई गुना बढ़ जाएंगी। कुछ समय बाद वही लाख रुपये अपनी कीमत खो देंगे।
दुनिया में इसके उदाहरण मौजूद हैं। जिम्बाब्वे और वेनेज़ुएला जैसे देशों ने जरूरत से ज्यादा नोट छापे, जिसका नतीजा यह हुआ कि वहां रोटी खरीदने के लिए लोगों को बोरी भरकर नोट ले जाने पड़े। करेंसी की वैल्यू लगभग खत्म हो गई।
क्या भारत में बड़े नोट छापे जा सकते हैं?
भारत में फिलहाल कानून के तहत ₹10,000 तक के नोट छापे जा सकते हैं। इससे बड़े नोट जारी करने के लिए कानून में संशोधन जरूरी होगा। लेकिन बड़े नोट छापना भी समस्या का हल नहीं है, क्योंकि इससे महंगाई और काले धन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।





