Harish Rana case: गाजियाबाद के हरीश राणा को ‘इच्छा मृत्यु’ देने की मांग, AIIMS रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट करेगा माता-पिता से बात
Harish Rana case: सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा मामला है, जिसने कानून से ज्यादा इंसानियत को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। गाजियाबाद के रहने वाले 32 वर्षीय हरीश राणा पिछले 12 सालों से ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। अब उनके माता-पिता ने बेटे को ‘Passive euthanasia’ यानी इच्छा मृत्यु देने की अनुमति मांगी है।
AIIMS की मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अंतिम फैसला लेने से पहले वह हरीश के माता-पिता से आमने-सामने बात करेगा। इसके लिए कोर्ट ने 13 जनवरी की तारीख तय की है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
जस्टिस जे. बी. पारडीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने AIIMS की रिपोर्ट पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि हरीश की हालत बेहद गंभीर है और इस मामले में कोई भी फैसला सोच-समझकर और मानवीय संवेदनाओं के साथ लिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि मेडिकल रिपोर्ट की एक कॉपी परिवार को दी जाए, ताकि वे पूरी स्थिति को समझ सकें। जजों ने कहा कि कानून के तहत जरूरी प्रक्रिया पूरी करनी होगी, लेकिन उससे पहले माता-पिता से बातचीत जरूरी है।
कौन हैं हरीश राणा और क्या है उनकी कहानी?
हरीश राणा चंडीगढ़ में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। साल 2013 में वह अपने पेइंग गेस्ट हॉस्टल की चौथी मंजिल से गिर गए। इस हादसे में उनके सिर में गंभीर चोटें आईं और तभी से उनकी जिंदगी बदल गई।
पिछले 12 सालों से हरीश बिस्तर पर हैं। वह पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हैं। डॉक्टरों के मुताबिक उनकी हालत 100 प्रतिशत दिव्यांगता की है। वह न बोल सकते हैं, न चल सकते हैं और न ही खुद से सांस ले सकते हैं। उनकी जिंदगी अब सिर्फ वेंटिलेटर के सहारे चल रही है।
AIIMS की रिपोर्ट में क्या कहा गया?
11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने AIIMS को हरीश की स्वास्थ्य जांच कर रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। AIIMS की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि:
- हरीश के स्वस्थ होने की संभावना लगभग नामुमकिन है
- वेंटिलेटर पर जीवित रखा जाना उनके लिए लगातार पीड़ा का कारण है
- उनकी स्थिति में किसी भी तरह का सुधार होने की उम्मीद नहीं है
इससे पहले नोएडा के जिला अस्पताल की रिपोर्ट में भी यही कहा गया था कि हरीश की हालत बेहद खराब है। लंबे समय से बिस्तर पर रहने के कारण उनके शरीर पर बेड सोर (घाव) हो चुके हैं और वह असहनीय कष्ट में हैं।
माता-पिता का दर्द और फैसला
हरीश के माता-पिता के लिए यह फैसला आसान नहीं है। 12 साल तक उन्होंने हर उम्मीद थामे रखी, हर इलाज कराया, हर दुआ की। लेकिन अब वे मान चुके हैं कि उनका बेटा ठीक नहीं हो पाएगा।
उनका कहना है कि वेंटिलेटर पर पड़ी यह जिंदगी, असल में जिंदगी नहीं बल्कि दर्द का सिलसिला है। इसलिए वे चाहते हैं कि बेटे को सम्मान के साथ विदा लेने दिया जाए।
Passive euthanasia क्या है?
पैसिव युथनेसिया का मतलब है मरीज को जबरन जीवित रखने वाले इलाज को रोक देना, ताकि वह स्वाभाविक रूप से मृत्यु को प्राप्त कर सके। इसमें कोई दवा देकर मौत नहीं दी जाती, बल्कि इलाज हटा लिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के ऐतिहासिक फैसले में पैसिव युथनेसिया को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी थी। इसके तहत:
- कम से कम दो मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट जरूरी होती है
- परिवार की सहमति अनिवार्य होती है
- पूरा फैसला कानून और इंसानियत के संतुलन पर आधारित होता है
- हरीश के मामले में दोनों मेडिकल रिपोर्ट यह साफ कह चुकी हैं कि उनका ठीक होना लगभग असंभव है।
अब आगे क्या?
13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट हरीश के माता-पिता से मुलाकात करेगा। इसके बाद ही कोर्ट यह तय करेगा कि हरीश राणा को पैसिव युथनेसिया की अनुमति दी जाए या नहीं।यह मामला सिर्फ एक कानूनी सुनवाई नहीं है, बल्कि यह सवाल भी है कि क्या जिंदगी सिर्फ सांसों का नाम है, या सम्मान और पीड़ा से मुक्ति भी उतनी ही जरूरी है?
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