Dipu Chandra Das murder: बांग्लादेश में हिंदू युवक की भीड़ द्वारा बेरहमी से हत्या, नग्न कर पीटा गया, फिर शव जला दिया गया
Dipu Chandra Das murder: बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की भीड़ ने बेरहमी से हत्या कर दी। पहले उसे नग्न किया गया, फिर तब तक पीटा गया जब तक उसकी जान नहीं चली गई। इसके बाद उसके शव को पेड़ से बांधकर जला दिया गया। यह सब इसलिए किया गया क्योंकि उस पर पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था।
कौन था दीपू चंद्र दास?
दीपू चंद्र दास बांग्लादेश में एक गारमेंट फैक्ट्री में मजदूरी करता था। वह मैमनसिंह जिले के भालुका उपजिला के दुबालिया पारा इलाके में किराए के एक छोटे से कमरे में रहता था। आम आदमी की तरह वह रोज़ काम पर जाता था और अपनी ज़िंदगी किसी तरह चला रहा था। किसी ने नहीं सोचा था कि उसकी जिंदगी का अंत इतनी बर्बरता से होगा।
क्या हुआ उस रात?
गुरुवार, 18 दिसंबर की रात करीब 9 बजे दीपू को एक भीड़ ने घेर लिया। आरोप लगाया गया कि उसने इस्लाम को पसंद न आने वाली बातें कही हैं। भीड़ ने उसे पहले नग्न किया, फिर लाठी-डंडों और हाथों से लगातार पीटा गया। उसे तब तक मारा गया जब तक उसकी सांसें नहीं थम गईं।
इसके बाद भी भीड़ का गुस्सा शांत नहीं हुआ। मृत शरीर को एक पेड़ से बांधा गया और आग लगा दी गई। यह दृश्य इतना भयावह था कि जिसने भी देखा, वह सिहर उठा।
लिंक पर क्लिक करे https://x.com/braddy_Codie05/status/2001748542512300115?s=20
किस बात पर किया गया कत्ल?
अब तक सामने आई जानकारी के अनुसार, दीपू चंद्र दास पर आरोप है कि उसने कहा था — “ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक ही भगवान होते हैं, सबके अपने-अपने भगवान होते हैं।”
भीड़ का कहना है कि यह बात पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ थी और उनके धर्म के विरुद्ध मानी गई। इसी बात को आधार बनाकर दीपू को “सजा” दी गई।
सवाल ये है – सजा देने का हक किसे?
मान लीजिए, अगर दीपू ने कुछ गलत कहा भी होता, तो क्या भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार है? अगर किसी को किसी बात से आपत्ति थी, तो पुलिस में शिकायत, एफआईआर और कोर्ट का रास्ता मौजूद है।
लेकिन यहां कानून नहीं, बल्कि भीड़ का फैसला चला। यह घटना साफ दिखाती है कि जब किसी समाज में कट्टरता और राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है, तब इंसान की जान की कोई कीमत नहीं रह जाती।
पुलिस और प्रशासन की स्थिति
पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। अभी तक औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं हुई है। पुलिस का कहना है कि वह मृतक के परिवार का पता लगाने की कोशिश कर रही है। सवाल यह भी है कि क्या दोषियों को सजा मिलेगी या यह मामला भी धीरे-धीरे ठंडा पड़ जाएगा।
राजनीतिक बयानबाजी भी तेज
इस घटना पर भारत में भी राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा ने बांग्लादेश की अंतरिम यूनुस सरकार पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि वहां हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर गुस्सा और दुख साफ दिखाई दे रहा है।
असल सच्चाई क्या है?
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि जब धर्म, राजनीति और भीड़ एक साथ मिल जाती है, तो इंसानियत सबसे पहले मरती है।
अगर किसी देश में पुलिस और प्रशासन मजबूत और निष्पक्ष हो, अगर सत्ता सच में सेक्युलर हो, तो ऐसी घटनाएं नहीं होतीं। लेकिन जब बहुसंख्यक होने का घमंड मिल जाए और ऊपर से राजनीतिक संरक्षण, तब ऐसी बर्बरता आम हो जाती है।
अंत में एक सवाल
दीपू चंद्र दास ने जो कहा, वह सही था या गलत — यह तय करने का अधिकार कानून का है, भीड़ का नहीं। आज दीपू मारा गया, कल कोई और मारा जाएगा।
सवाल यह है —
क्या इंसान की जान अब विचारों से सस्ती हो गई है?
यह भी पढ़े
Bangladesh student leader death: शरीफ़ उस्मान हादी कौन थे? जिनकी मौत के बाद बांग्लादेश सुलग उठा






