Dattatreya Jayanti 2024: भगवान दत्तात्रेय, जिन्हें त्रिदेव का संयुक्त रूप माना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय देवता हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सम्मिलित रूप के रूप में पूजित होते हैं। उनकी जयंती, जिसे हम दत्तात्रेय जयंती के नाम से जानते हैं, हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस साल (2024) दत्तात्रेय जयंती 14 दिसंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। यह दिन विशेष रूप से भगवान दत्तात्रेय के जन्म का उत्सव है और इस दिन उनके दर्शन एवं पूजा से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
Dattatreya Jayanti 2024: तारीख और समय
दत्तात्रेय जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस वर्ष यह 14 दिसंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। पूजा का शुभ समय सुबह 5 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होगा और इसका समापन 15 दिसंबर, रविवार को सुबह 6 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। इस दिन विशेष रूप से भगवान दत्तात्रेय की पूजा एवं व्रत करने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
भगवान दत्तात्रेय का अवतार
भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा बहुत प्रसिद्ध है, जो भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा के मिलन का प्रतीक है। यह कथा महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया से जुड़ी हुई है। शास्त्रों के अनुसार, जब देवियाँ पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने माता अनुसूया की पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) को साधु रूप में भेजा, तो माता ने एक शर्त रखी कि वे केवल निर्वस्त्र होकर भोजन करें। माता अनुसूया ने इस शर्त को स्वीकार करते हुए जब ध्यान लगाया, तो उनके सामने तीनों देवता बच्चे के रूप में प्रकट हो गए।
माता ने उन छोटे बच्चों को दूध पिलाया और उनके साथ अपना प्यार साझा किया। इसके बाद, जब देवियाँ और तीनों देवता माता के पास पहुंचे, तो देवताओं ने अपना स्वरूप पूर्ववत धारण किया और माता अनुसूया से क्षमा मांगी। इसी घटना के बाद त्रिदेवों ने एक साथ दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। यह उनके एक होने का प्रतीक है और इसीलिए भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव के रूप में पूजा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय का स्वरूप
भगवान दत्तात्रेय का स्वरूप विशेष रूप से त्रिदेवमय है। उनका रूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के समन्वय का प्रतीक है। उनके तीन चेहरे और छह हाथ होते हैं, जो उनके त्रिदेव रूप को दर्शाते हैं। वे ‘परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु’ और ‘श्रीगुरुदेवदत्त’ के रूप में भी पूजे जाते हैं। उनके इस स्वरूप में भगवान दत्तात्रेय को ज्ञान, भक्ति और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।
दत्तात्रेय जयंती के महत्व और पूजा विधि
दत्तात्रेय जयंती का महत्व विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि यह दिन भगवान दत्तात्रेय के त्रिदेव रूप की पूजा का है। इस दिन को भक्त उनके बालरूप की पूजा करते हैं, जो उनकी सरलता और दिव्यता का प्रतीक है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत, पूजा और अर्चना करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि:
- स्नान और शुद्धता: इस दिन सबसे पहले ताजे पानी से स्नान करें और शरीर को शुद्ध करें।
- व्रत का संकल्प: भगवान दत्तात्रेय की पूजा के लिए व्रत का संकल्प लें।
- भगवान दत्तात्रेय का पूजन: उनका चित्र या मूर्ति स्थापित करें और दीपक, धूप, फूल, बेलपत्र आदि अर्पित करें।
- गायत्री मंत्र का जाप: भगवान दत्तात्रेय के मंत्र “ॐ दत्तात्रेयाय नमः” का जाप करें। साथ ही गायत्री मंत्र का जाप भी करें।
- भोजन का आयोजन: इस दिन विशेष रूप से स्वादिष्ट भोजन तैयार किया जाता है, जो भगवान को अर्पित किया जाता है।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें और प्रसाद का वितरण करें।
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं से शिक्षा
भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में 24 अलग-अलग गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण गुरुओं के बारे में बताया गया है:
- पक्षी (पंछी) – आकाश में उड़ने से हमें स्वतंत्रता का महत्व समझ आता है।
- मच्छी (मछली) – जीवन में कठिनाइयों को पार करने की क्षमता।
- मूल (वृक्ष) – मस्तिष्क और आत्मा की स्थिरता।
- नदी – जीवन में निरंतर प्रवाह की आवश्यकता।
- सर्प (साँप) – आत्मनिर्भरता और शांति बनाए रखने की कला।
इन गुरुओं से भगवान दत्तात्रेय ने जीवन के विभिन्न पहलुओं की सीख ली और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की।
दत्तात्रेय जयंती का आध्यात्मिक लाभ
भगवान दत्तात्रेय की पूजा से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी परेशानियों का निवारण होता है। इस दिन उनके दर्शन और पूजा से मनुष्य को समस्त भौतिक और आत्मिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही, दत्तात्रेय जयंती के दिन की गई पूजा से जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का वास होता है।
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