
पश्चिम चंपारण जिले के बगहा विधानसभा क्षेत्र में मतदान बहिष्कार की खबर ने सबका ध्यान खींच लिया है। क्षेत्र के करीब 15,000 मतदाताओं ने एक सुर में कहा “सड़क नहीं, बिजली नहीं, शिक्षा नहीं… तो वोट भी नहीं!”
Bagaha voting boycott: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में जहां पूरे राज्य में मतदाताओं में जोश और उत्साह देखा जा रहा है, वहीं पश्चिम चंपारण जिले के बगहा विधानसभा क्षेत्र में मतदान बहिष्कार की खबर ने सबका ध्यान खींच लिया है। क्षेत्र के करीब 15,000 मतदाताओं ने एक सुर में कहा “सड़क नहीं, बिजली नहीं, शिक्षा नहीं… तो वोट भी नहीं!” सुबह से ही मतदान केंद्रों पर सन्नाटा पसरा रहा। लोगों ने गांव-गांव में हाथ से लिखे पोस्टर और बैनर टांग दिए, जिन पर लिखा था “हम विकास नहीं, वादे नहीं, अब हक़ चाहते हैं।” प्रशासन और राजनीतिक दलों की कई अपीलों के बावजूद स्थानीय लोगों ने वोट न डालने का फैसला कायम रखा।
Bagaha voting boycott: 18 बूथों पर नहीं पड़ी एक भी वोट
जानकारी के मुताबिक, बगहा प्रखंड के सोनबरसा, हरनाथपुर, बलुआ, बिशुनपुरवा, और कंचनपुर पंचायतों के करीब 18 मतदान केंद्रों पर अब तक एक भी वोट नहीं पड़ा। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने जब हालात का जायज़ा लिया तो पाया कि ग्रामीणों ने पहले से ही मतदान केंद्रों के पास “वोट बहिष्कार” के पोस्टर चिपकाए थे।
कई इलाकों में महिलाओं ने भी इस अभियान में भाग लिया। उनका कहना है कि पिछले कई चुनावों में नेताओं ने सिर्फ वादे किए, लेकिन ज़मीनी हकीकत नहीं बदली। गांवों में आज भी सड़कें कीचड़ से भरी हैं, बिजली आती-जाती रहती है, और बच्चों को पढ़ने के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है। एक ग्रामीण महिला सावित्री देवी ने कहा, “हर चुनाव में नेता आते हैं, हाथ जोड़ते हैं, वादा करते हैं कि सड़क बनेगी, स्कूल खुलेगा, बिजली आएगी। पर चुनाव के बाद कोई देखने नहीं आता। अब हम क्यों वोट दें?”
Bagaha voting boycott: ग्रामीणों की नाराज़गी के तीन बड़े कारण
सड़क की बदहाली:
बगहा के सोनबरसा से हरनाथपुर तक की 8 किलोमीटर लंबी सड़क वर्षों से जर्जर है। बरसात में यह रास्ता दलदल में बदल जाता है, जिससे बच्चों और बीमारों को अस्पताल ले जाना मुश्किल हो जाता है।
बिजली की समस्या:
कई गांवों में बिजली ट्रांसफॉर्मर महीनों से खराब पड़े हैं। जहां सप्लाई आती भी है, वहां वोल्टेज इतना कम रहता है कि न बल्ब जलता है, न पंखा चलता है। ग्रामीणों का कहना है कि शिकायत करने पर विभाग सिर्फ आश्वासन देता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य की बदहाली:
स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, बच्चों को मीलों पैदल चलकर टाउन तक पढ़ने जाना पड़ता है। वहीं, नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर और दवाइयों की भारी कमी है। एक स्थानीय युवक अमित कुमार ने कहा, “हमने तय कर लिया है, जब तक गांव में प्राथमिक स्कूल और सड़क नहीं बनेगी, तब तक कोई वोट नहीं देगा।”
Bagaha voting boycott: प्रशासन की कोशिशें नाकाम
वोट बहिष्कार की खबर मिलते ही स्थानीय प्रशासन हरकत में आया। बगहा के एसडीओ और बीडीओ मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों से बातचीत की। अधिकारियों ने लोगों को समझाने की कोशिश की कि मतदान न करना लोकतंत्र से दूरी बनाना है, लेकिन ग्रामीण अपनी मांगों पर अड़े रहे।
एसडीओ ने कहा कि समस्याओं को जल्द हल करने के लिए रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेजी जा रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे के चरणों में लोग मतदान में भाग लेंगे।
चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि बूथों पर सुरक्षा बलों की तैनाती सामान्य तरीके से बनी हुई है, और स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। हालांकि, उन्होंने माना कि यह घटना प्रशासन और नेताओं दोनों के लिए एक “संदेश” है कि जनता अब सिर्फ वादों पर नहीं, परिणामों पर भरोसा करती है।
Bagaha voting boycott: राजनीतिक दलों में हलचल
वोट बहिष्कार की खबर फैलते ही राजनीतिक दलों में हलचल मच गई। एनडीए और महागठबंधन दोनों के प्रत्याशियों ने अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं को गांवों में भेजकर मतदाताओं को मनाने की कोशिश की।
जदयू के एक स्थानीय नेता ने कहा कि “कुछ इलाकों में विकास कार्य प्रशासनिक स्तर पर अटके हुए हैं, जिन्हें जल्द पूरा कराया जाएगा।”
वहीं आरजेडी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने इन गांवों की अनदेखी की, इसलिए जनता में नाराज़गी स्वाभाविक है।
Bagaha voting boycott: लोकतंत्र के लिए चेतावनी की घंटी
विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ बगहा की कहानी नहीं है, बल्कि बिहार के कई ग्रामीण इलाकों में यही हकीकत है। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अजय तिवारी कहते हैं, “वोट बहिष्कार जनता का असंतोष दिखाता है। यह लोकतंत्र की ताकत है कि लोग अब चुप नहीं हैं। वे अपने अधिकारों के लिए सशक्त आवाज उठा रहे हैं।
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