बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। हाल ही में सीएम नीतीश कुमार के पाला बदलने की अफवाहों पर विराम लगा ही था कि केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी को लेकर चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं।
मांझी के बागी तेवर
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने अपने बयानों से एनडीए के भीतर उथल-पुथल मचा दी है। उन्होंने लगातार यह संकेत दिया है कि वे एनडीए में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। मांझी का कहना है कि उन्हें बीजेपी और अन्य घटक दलों से उतनी तवज्जो नहीं मिल रही, जितनी मिलनी चाहिए।
मांझी ने यह मुद्दा भी उठाया कि उन्हें दिल्ली और झारखंड के विधानसभा चुनावों में सीटें नहीं दी गईं। इसके अलावा, उनका यह बयान कि “मुझे शायद कैबिनेट छोड़ना पड़ेगा,” राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।
पीएम मोदी का एहसान भूलने की तैयारी?
2024 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीतन राम मांझी को कैबिनेट मंत्री बनाकर बड़ा राजनीतिक संदेश दिया था। इसके बावजूद, मांझी अब खुले तौर पर बयान देकर एनडीए को दबाव में लाने की कोशिश कर रहे हैं। मंगलवार को मुंगेर में दिए गए उनके बयान ने स्थिति को और गर्मा दिया, जहां उन्होंने इस्तीफे की संभावना जताई।
नीतीश के बाद अब मांझी पर नजरें
पिछले कुछ समय से बिहार में सीएम नीतीश कुमार के पाला बदलने की अटकलें लग रही थीं। हालांकि, उन पर विराम लगने के बाद अब मांझी के रुख ने नई बहस छेड़ दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मांझी का यह बागी रुख एनडीए के भीतर टिकट बंटवारे और अपने पद को बरकरार रखने के लिए दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है।
क्या एनडीए को नुकसान पहुंचा सकते हैं मांझी?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मांझी की नाराजगी का कारण एनडीए में उनकी अपेक्षित भूमिका न मिलना है। 2024 में शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले उनका नाम कैबिनेट मंत्री पद से हटा दिया गया था। हालांकि, पीएम मोदी ने उनकी राजनीतिक हैसियत को देखते हुए बाद में उन्हें मंत्री पद दिया।
अब सवाल यह उठता है कि क्या मांझी, जो एनडीए के वरिष्ठ नेताओं से खुलकर नाराजगी जता रहे हैं, अपने पद को बचाने के लिए यह राजनीतिक खेल खेल रहे हैं? या फिर यह केवल चुनाव से पहले दबाव की राजनीति का हिस्सा है?
बिहार चुनाव 2025 में असर
मांझी के बागी रुख से एनडीए के भीतर तालमेल पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अगर यह नाराजगी और गहरी होती है, तो इसका सीधा असर बिहार चुनाव 2025 पर पड़ सकता है। चुनावी रणनीतिकारों को अब इस स्थिति से निपटने के लिए नई योजना बनानी होगी। बिहार में चुनावी मौसम ने अभी से राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। मांझी के तेवर एनडीए के लिए एक चुनौती बन सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए इस स्थिति को कैसे संभालता है और मांझी जैसे वरिष्ठ नेता को कैसे संतुष्ट करता है।