
Bihar SIR hearing: 65 लाख मतदाताओं के नाम कटने पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई
Bihar SIR hearing: बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्यक्रम (SIR – Special Intensive Revision) को लेकर राजनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर गर्मी बढ़ गई है। एक ओर विपक्ष इस मुद्दे पर चुनाव आयोग और सरकार पर हमला बोल रहा है, तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर आज अहम सुनवाई हो रही है। विवाद का सबसे बड़ा कारण है — 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटाए जाने का दावा।
क्या है मामला?
बिहार में इस समय SIR यानी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम चल रहा है। इसका मकसद है — मतदाता सूची को अपडेट करना, डुप्लीकेट और फर्जी नाम हटाना, और नए मतदाताओं के नाम जोड़ना।
लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दावा किया कि लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम बिना कारण बताए हटा दिए गए हैं। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है, क्योंकि यह बिहार की कुल मतदाता संख्या का बड़ा हिस्सा है।
ADR और कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें SIR की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए हैं।
आज होगी सुनवाई
आज यानी 12 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। इससे पहले 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और चुनाव आयोग को इसे जारी रखने की अनुमति दी थी। हालांकि कोर्ट ने यह साफ कर दिया था कि अंतिम निर्णय सुनवाई के बाद ही होगा।
65 लाख नाम कटने पर विवाद
ADR की याचिका में कहा गया कि SIR के दौरान बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिए गए, लेकिन उन्हें कारण नहीं बताया गया।
चुनाव आयोग ने इस दावे का जवाब देते हुए कहा कि नियमों के मुताबिक, ड्राफ्ट सूची में जिनके नाम नहीं होते, उनकी अलग सूची बनाकर प्रकाशित करना जरूरी नहीं है।
आयोग ने यह भी कहा कि ड्राफ्ट सूची राजनीतिक दलों के साथ साझा की गई है और इसमें नाम शामिल न होने का कारण लिखना अनिवार्य नहीं है।
चुनाव आयोग की दलीलें
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कई अहम बातें रखीं —
- आपत्ति और दस्तावेज जमा करने का मौका — जिनका नाम ड्राफ्ट सूची में नहीं है, वे आपत्ति दर्ज कर सकते हैं और आवश्यक दस्तावेज पेश कर सकते हैं।
- अलग सूची का प्रावधान नहीं — नियमों के तहत हटाए गए नामों की अलग सूची प्रकाशित करने का कोई प्रावधान नहीं है।
- राजनीतिक दलों को जानकारी — ड्राफ्ट सूची पहले ही सभी मान्यता प्राप्त दलों को दी गई है।
- गुमराह करने का आरोप — आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए उन पर भारी जुर्माना लगाया जाए।
- अधिकार का सवाल — आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ता अधिकार के तौर पर हटाए गए नामों की पूरी सूची मांग नहीं सकते।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस पूरे विवाद पर बिहार की राजनीति में गर्मा-गर्मी है। विपक्ष का आरोप है कि मतदाता सूची से लाखों नाम हटाकर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों ने इसे “मताधिकार पर हमला” बताया है। उनका कहना है कि यह कदम खासकर गरीब, ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाले मतदाताओं को प्रभावित करेगा। वहीं, सत्ताधारी दल का कहना है कि SIR एक नियमित और जरूरी प्रक्रिया है, जिससे फर्जी वोटिंग रोकने में मदद मिलेगी।
SIR प्रक्रिया कैसे चलती है?
SIR यानी Special Intensive Revision चुनाव आयोग की एक तयशुदा प्रक्रिया है, जिसमें —
- पुराने या मृत मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं
- पते बदलने वालों का रिकॉर्ड अपडेट किया जाता है
- नए 18+ मतदाताओं को जोड़ा जाता है
- डुप्लीकेट नामों को हटाया जाता है
आम तौर पर इस प्रक्रिया में ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की जाती है और जनता को समय दिया जाता है कि वे अपनी आपत्तियां या दावे दर्ज करा सकें।
आगे क्या होगा?
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि —
- SIR प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए या नहीं
- क्या चुनाव आयोग को हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करनी होगी
- क्या याचिकाकर्ताओं के आरोप सही हैं या बेबुनियाद
अगर कोर्ट ने SIR पर रोक लगा दी तो बिहार में चुनावी तैयारियों पर असर पड़ सकता है। वहीं, अगर प्रक्रिया जारी रखने का आदेश हुआ तो मतदाताओं को आपत्ति दर्ज कराने के लिए और सतर्क रहना होगा।
जनता के लिए जरूरी जानकारी
अगर आपका नाम ड्राफ्ट सूची में नहीं है, तो —
- अपने बीएलओ (BLO) या निर्वाचन कार्यालय से संपर्क करें।
- फॉर्म-6 (नया नाम जोड़ने के लिए) या फॉर्म-8 (गलत जानकारी सुधारने के लिए) भरें।
- आधार, पहचान पत्र, और पते के दस्तावेज साथ रखें।
- अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने से पहले आपत्ति जरूर दर्ज कराएं।
बिहार SIR पर आज की सुनवाई सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि करोड़ों मतदाताओं के अधिकार से जुड़ा बड़ा मामला है। चुनाव आयोग की दलील और याचिकाकर्ताओं के आरोप, दोनों में ही गंभीर मुद्दे हैं। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट किस पक्ष की बात मानता है।
लोकतंत्र में मतदाता सूची की शुद्धता जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि कोई भी नागरिक बिना कारण अपने मताधिकार से वंचित न हो।
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