एक ऐतिहासिक फैसले में, Bombay High Court ने हाल ही में IT Rule Amendments को असंवैधानिक करार दिया है। उन्होंने यह कहते हुए फैसला सुनाया कि नागरिकों के पास ‘स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार’ है, यह अधिकार सिर्फ ‘सच जानने का अधिकार’ नहीं है।
इस मामले में टाई-ब्रेकर जज के रूप में न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर ने कहा कि राज्य की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह सुनिश्चित करे कि नागरिकों को केवल ‘सच’ ही देखने और सुनने को मिले और गलत या फर्जी जानकारी से उनका आमना सामना न हो। उनका यह निर्णय “राइट टू फ्री स्पीच” और डिजिटल प्लेटफार्मों और ऑनलाइन सामग्री के नियमन के संदर्भ में नागरिकों और राज्य के बीच संबंधों पर एक दूरगामी प्रभाव डालेगा।
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ToggleIT Rule Amendments मामले की पृष्ठभूमि
IT Rule Amendments मामला तब सामने आया जब 2021 के आईटी नियमों में किए गए संशोधनों को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएँ दायर की गईं । याचिकाकर्ताओं में स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज़ ब्रॉडकास्ट और डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगज़ीन शामिल थे। उनका मुख्य मुद्दा आईटी नियमों के तहत ‘फैक्ट चेक यूनिट्स’ (एफसीयू) की स्थापना था।
ये FCUs सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर केंद्रीय सरकार से संबंधित ‘गलत और भ्रामक’ जानकारी की पहचान करने और उसे चिह्नित करने के लिए स्थापित किए गए थे। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि IT Rule Amendments नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं और अत्यधिक सेंसरशिप की तरफ देश को ले जा सकते हैं।
शुरुआत में IT Rule Amendments मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति गौतम पटेल और डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने की थी। हालांकि, जनवरी 2024 में दोनों न्यायाधीशों ने विभाजित फैसला सुनाया, जिसके बाद न्यायमूर्ति चंदुरकर को इस मामले में तृतीय राय देने के लिए नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति चंदुरकर का निर्णय, जो सितंबर 2024 में दिया गया, मुख्य रूप से न्यायमूर्ति पटेल के विचारों के साथ मेल खाता है, जबकि न्यायमूर्ति गोखले के विचारों से असहमति प्रकट करता है।
न्यायमूर्ति चंदुरकर द्वारा मुख्य अवलोकन
न्यायमूर्ति चंदुरकर का निर्णय स्वतंत्र भाषण की अवधारणा, सरकारी द्वारा किये जा सकने वाले नियंत्रण की सीमाओं और सच और अभिव्यक्ति के बीच अंतर पर आधारित है। उनके विचार में, राइट टू फ्री स्पीच एक ऐसा अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में नागरिको को प्रदान किया गया है, लेकिन इस अधिकार का मतलब सिर्फ ‘सच जानने के अधिकार’ नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह सरकार की भूमिका नहीं है कि वह यह सुनिश्चित करे कि नागरिक केवल सही, भ्रामक न करने वाली जानकारी ही प्राप्त करें, जैसा कि एफसीयू द्वारा निर्धारित किया गया है। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा कि यह अंतर मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
स्वतंत्र भाषण बनाम सच जानने का अधिकार
फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू न्यायमूर्ति चंदुरकर द्वारा स्वतंत्र भाषण के दायरे की स्पष्टता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत नागरिकों को स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार दिया गया है। हालांकि, यह अधिकार उन पर यह पाबंदी नहीं लगाता है कि वे केवल ‘सच’ या ‘सटीक’ जानकारी ही जानें या बोले। इसलिए सरकार उन जानकारी के प्रवाह को रोकने के लिए कोई प्रतिबंध नहीं लगा सकती या एफसीयू जैसी इकाइयों की स्थापना नहीं कर सकती जो जानकारी के बहाव को सिर्फ उसकी सच्चाई के आधार पर सिमित करने की कोशिश करें।
“स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत, ‘सच’ जानने का कोई अधिकार नहीं है, और न ही यह राज्य की जिम्मेदारी है कि नागरिकों को केवल सही, फर्जी या भ्रामक जानकारी न मिले,” न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा।
IT Rule Amendments का अतिप्रवाह
न्यायमूर्ति चंदुरकर ने ऑब्ज़र्व किया कि IT Rule Amendments, विशेष रूप से नियम 3(1)(b)(v), संविधान के विरुद्ध हैं, जिसका अर्थ है कि वे कानून के तहत दिए गए अधिकारों से परे जाते हैं। IT Rule Amendments को बेहद व्यापक और अस्पष्ट माना गया, जिससे फ्री स्पीच के अधिकार पर बेहद गलत प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क से सहमति जताई कि ये नियम न केवल व्यक्तियों के लिए बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों और मध्यस्थों के लिए भी अत्यधिक सेंसरशिप का कारण बन सकते हैं।
इसके अलावा, न्यायाधीश ने कहा कि ये नियम अनुच्छेद 19(2) के अनुरूप नहीं हैं, जो सरकार को कुछ विशिष्ट शर्तों के तहत फ्री स्पीच पर ‘उचित प्रतिबंध’ लगाने की अनुमति देता है, जैसे कि कानून व्यवस्था को खतरा या मानहानि। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा कि आईटी नियम उन प्रतिबंधों को लागू करने का प्रयास कर रहे हैं जिनका दायरा उन प्रतिबंधों से बाहर जाता है जो अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए जा सकते हैं।
समानता के अधिकार का उल्लंघन
फ्री स्पीच की चिंताओं के अलावा, न्यायमूर्ति चंदुरकर ने अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मुद्दे के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि आईटी नियम डिजिटल प्लेटफार्मों और पारंपरिक प्रिंट मीडिया पर अलग-अलग लागू होते हैं, जिससे एक अनुचित भेद उत्पन्न होता है। गौरतलब है फैक्ट चेक यूनिट्स डिजिटल प्लेटफार्मों पर केंद्रीय सरकार से संबंधित जानकारी की जांच कर सकती हैं लेकिन प्रिंट मीडिया के लिए ऐसी कोई प्रणाली नहीं बनाई गयी है।
न्यायाधीश ने इस भेदभाव को तर्कहीन और असंवैधानिक पाया। “यह निर्धारित करने के लिए कोई आधार या तर्क नहीं है कि केंद्रीय सरकार से संबंधित कोई जानकारी डिजिटल रूप में फर्जी, झूठी या भ्रामक है और उसी जानकारी को प्रिंट रूप में नहीं जांचा जा रहा है,” उन्होंने कहा।
डिजिटल और प्रिंट मीडिया के बीच इस असमान व्यवहार ने न्यायमूर्ति चंदुरकर को यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर किया कि IT Rule Amendments समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह विभिन्न प्लेटफार्मों पर एक ही प्रकार की जानकारी के लिए अलग-अलग मानकों को लागू करता है।
सरकार अपने मामले में ‘निर्णायक’ के रूप में
न्यायमूर्ति चंदुरकर द्वारा उठाई गई एक अन्य महत्वपूर्ण चिंता सरकार की भूमिका थी। उन्होंने एफसीयू की स्थापना की एक ऐसी प्रणाली के रूप में आलोचना की जो केंद्रीय सरकार को अपने ही मामले में न्यायाधीश बना देती है।
IT Rule Amendments के तहत एफसीयू केंद्रीय सरकार के से संबंधित जानकारी की सत्यता का निर्धारण करने का काम करता है। हालांकि, न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि सरकार स्वयं ही इस मामले में विवादित पक्ष है, उसे उस जानकारी की वैधता तय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा की अगर सरकार को यह करने की अनुमति दी जाती है तो यह कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट होगा और इन मामलो में जो निष्पक्ष्ता की जरुरत होती है यह उसके महत्व को कम कर देगा ।
जस्टिस चंदुरकर ने सरकार के डिफेन्स की इन मामलो को एक कोंस्टीटूशनल कोर्ट में चैलेंज किया जा सकेगा यह कह कर खारिज कर दिया की ये इस तरह के मामलो में उपयुक्त सुरक्षा नहीं है ।
फैक्ट चेक यूनिट्स के लिए दिशानिर्देशों की कमी
अपने फैसले में, न्यायमूर्ति चंदुरकर ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि एफसीयू के पास झूठी या भ्रामक जानकारी की पहचान करते समय अनुसरण करने के लिए कोई भी स्पष्ट दिशानिर्देश या प्रोटोकॉल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता और सुरक्षा उपायों की कमी के कारण इन नियमों के दुरूपयोग की बड़ी संभावनाएं हैं। पर्याप्त जांच और संतुलन के बिना, एफसीयू नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से फ्री स्पीच के अधिकार में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति चंदुरकर ने जोर देकर कहा कि दुरुपयोग के खिलाफ स्पष्ट दिशानिर्देशों और पर्याप्त सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति आईटी नियमों को अव्यवहारिक बनाती है।
बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला फ्री स्पीच के समर्थकों और डिजिटल अधिकार संगठनों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। IT Rule Amendments को रद्द करके, अदालत ने इस पक्ष को मजबूत किया है कि राज्य ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने में अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर सकता। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकार फ्री स्पीच पर उचित प्रतिबंध तो लगा सकती है लेकिन वह यह दावा नहीं कर सकती कि नागरिकों को केवल ‘सच’ ही पता चले।
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