
Chagos Archipelago
दुनिया की औपनिवेशिक विरासत का एक बड़ा अध्याय अब बंद हो चुका है। ब्रिटेन ने आखिरकार 60 साल बाद चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago) को मॉरीशस को सौंपने का ऐतिहासिक निर्णय ले लिया है। इस समझौते के पीछे जहां एक ओर अंतरराष्ट्रीय न्याय की जीत है, वहीं भारत और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
क्या है Chagos Archipelago समूह?
Chagos Archipelago हिंद महासागर में स्थित एक द्वीपसमूह है, जो भौगोलिक रूप से मॉरीशस का हिस्सा है। 1965 में जब ब्रिटेन ने मॉरीशस को स्वतंत्रता दी, तब उसने चागोस द्वीपों को जबरन अलग कर लिया और वहां के हजारों स्थानीय निवासियों को जबरन हटा दिया गया। बाद में ब्रिटेन ने इन द्वीपों को अमेरिका को लीज पर दे दिया, जहाँ डिएगो गार्सिया नामक प्रमुख द्वीप पर अमेरिकी नौसेना और बमवर्षक अड्डा बनाया गया।
अब क्यों चर्चा में है चागोस?
60 साल बाद, ब्रिटेन और मॉरीशस के प्रधानमंत्रियों — कीर स्टार्मर और नवीन रामगुलाम — ने एक डिजिटल समारोह के दौरान एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत Chagos Archipelago को आधिकारिक रूप से मॉरीशस को सौंप दिया गया।
यह सौदा सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अन्याय के सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
भारत और PM मोदी की भूमिका
इस अंतरराष्ट्रीय सौदे में भारत ने एक “शांत लेकिन प्रभावशाली” भूमिका निभाई। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस सौदे को “लंबे समय से चल रहे चागोस विवाद का शांतिपूर्ण और अंतरराष्ट्रीय कानून आधारित समाधान” करार दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले तीन वर्षों से इस समझौते के लिए बैकचैनल डिप्लोमेसी के जरिए ब्रिटेन और मॉरीशस दोनों पक्षों को न केवल बातचीत की मेज पर लाने में मदद की, बल्कि भरोसे का वातावरण भी तैयार किया।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने समझौते के बाद स्पष्ट रूप से कहा,
“हम भारत और प्रधानमंत्री मोदी के आभारी हैं, जिनकी चुपचाप की गई मदद के बिना यह समझौता संभव नहीं था।”
समझौते के मुख्य बिंदु
बिंदु | विवरण |
---|---|
समझौते की तिथि | 22 मई 2025 |
हस्ताक्षरकर्ता | ब्रिटेन और मॉरीशस के प्रधानमंत्री |
सौंपा गया क्षेत्र | पूरा चागोस द्वीपसमूह |
अमेरिकी अड्डा | डिएगो गार्सिया अब मॉरीशस की भूमि पर होगा, लेकिन अमेरिका 99 साल की लीज पर वहां रहेगा |
भारत की भूमिका | मध्यस्थता, राजनयिक समर्थन और भरोसे के निर्माण में योगदान |
समझौते से पहले का ड्रामा
इस समझौते से ठीक पहले एक हाई-वोल्टेज ड्रामा भी हुआ। दो स्थानीय महिलाओं ने ब्रिटेन की अदालत में याचिका दाखिल कर कहा कि चागोस मॉरीशस को सौंपे जाने के बाद वे कभी अपने घर नहीं लौट पाएंगी। अदालत ने कुछ घंटों के लिए रोक भी लगाई, लेकिन बाद में वह हटा ली गई और समझौते पर शाम तक दस्तखत कर दिए गए।
चागोस द्वीप की वापसी केवल एक भूभाग का हस्तांतरण नहीं है, यह औपनिवेशिक अन्याय की समाप्ति और अंतरराष्ट्रीय न्याय की जीत है। भारत ने इस प्रक्रिया में एक परिपक्व, जिम्मेदार और प्रभावशाली लोकतंत्र की भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भारत वैश्विक मंच पर एक शांतिदूत और सुलहकर्ता की भूमिका में आगे बढ़ रहा है।
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