
चतुर्थी व्रत: संपूर्ण जानकारी
चतुर्थी व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत हर महीने दो बार आता है—कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी। इस व्रत को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
चतुर्थी व्रत का महत्व
बता दें कि चतुर्थी व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करना और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करना है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, जो भक्तों के संकट हर लेते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
चतुर्थी व्रत के प्रमुख लाभ
बाधाओं का निवारण – यह व्रत करने से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं।
संतान सुख – नि:संतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
धन-वैभव – आर्थिक समृद्धि बढ़ती है और व्यापार-नौकरी में उन्नति मिलती है।
मानसिक शांति –इस व्रत को करने से मन को शांति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पारिवारिक सुख –माही इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति और सौहार्द बना रहता है।
चतुर्थी व्रत की तिथियाँ और प्रकार
यह चतुर्थी व्रत हर महीने में दो बार आता है
•संकष्टी चतुर्थी (कृष्ण पक्ष)
•विनायक चतुर्थी (शुक्ल पक्ष)
विशेष चतुर्थी व्रत
•माघ माह की तिलकुटा चतुर्थी – तिल और गुड़ का विशेष प्रयोग किया जाता है।
•भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी – इसे गणेश जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
•अंगारकी चतुर्थी – जब चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
1. स्नान और संकल्प: वही प्रात:काल स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
2. भगवान गणेश की पूजा: एक चौकी पर गणपति की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. सिंदूर और दूर्वा अर्पण करें: गणेश जी को सिंदूर और 21 दूर्वा चढ़ाएँ।
4. भोग लगाएँ: वही भगवान गणेश को मोदक, लड्डू और तिल-गुड़ से बनी मिठाइयाँ अर्पित करें।
5. गणेश मंत्र का जाप करें: “ॐ गं गणपतये नमः” – 108 बार जाप करें।
6. व्रत कथा का पाठ करें: गणेश चतुर्थी की कथा सुनें या पढ़ें।
7. चंद्रमा को अर्घ्य दें: रात्रि में चंद्रमा को जल अर्पित करें और व्रत पूर्ण करें।
विनायक चतुर्थी व्रत विधि
•इस व्रत में भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है।
•दिनभर फलाहार करें और गणपति बप्पा को लड्डू अर्पित करें।
•आरती और भजन-कीर्तन के बाद भोजन ग्रहण करें।
चतुर्थी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे। वे संतान सुख से वंचित थे। एक दिन उन्होंने एक साधु से संकष्टी चतुर्थी व्रत की महिमा सुनी। उन्होंने पूरे विधि-विधान से व्रत रखा और भगवान गणेश की पूजा की। इसके फलस्वरूप उन्हें सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। इस प्रकार, संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
विनायक चतुर्थी कथा
एक बार भगवान शिव ने गणेश जी को द्वारपाल बनाकर आदेश दिया कि कोई भी अंदर न आए। उसी समय परशुराम जी वहाँ आए और प्रवेश करना चाहा। गणेश जी ने उन्हें रोका, जिससे क्रोधित होकर परशुराम जी ने उन पर परशु चला दिया, जिससे गणेश जी का एक दाँत टूट गया। तब से वे एकदंत कहलाए। इस दिन भगवान गणेश को एकदंत रूप में पूजने की परंपरा है।
चतुर्थी व्रत में क्या करें और क्या न करें
क्या करें?
•बता दे की गणेश जी की पूजा करते समय दूर्वा, मोदक और सिंदूर चढ़ाएँ।
•वही भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करें।
•और चंद्रमा को अर्घ्य देना न भूलें।
•व्रत में सात्विक आहार ग्रहण करें।
क्या न करें?
•व्रत के दिन लहसुन-प्याज और मांसाहार का सेवन न करें।
•व्रत के दिन झूठ, धोखा और किसी का अपमान न करें। तामसिक भोजन, नशा और बुरी संगति से बचें।
चतुर्थी व्रत करने से मिलने वाले फल
•श्री गणेश की कृपा – जीवन में सुख-समृद्धि आती है
•रोग और कष्टों से मुक्ति – स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में सुधार होता है।
•परिवार की खुशहाली – परिवार में प्रेम और सौहार्द बना रहता है।
•सफलता और उन्नति – नौकरी और व्यापार में उन्नति होती है।
चतुर्थी व्रत एक अत्यंत शुभ और फलदायी व्रत है। इसे विधिपूर्वक करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।
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