सूर्य देव और छठी मैया की आराधना
भारत में हर त्योहार अपनी अनूठी परंपराओं, लोक संस्कृति और धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इन्हीं त्योहारों में से एक है Chhath puja, जिसे “सूर्य षष्ठी व्रत” भी कहा जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना को समर्पित है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के तराई क्षेत्रों में यह सबसे प्रमुख त्योहारों में गिना जाता है। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता पूरे भारत और विश्व में फैली है, जहाँ भी प्रवासी भारतीय रहते हैं।
Chhath puja का इतिहास और उत्पत्ति
छठ पूजा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। वेदों में “सूर्योपासना” के कई मंत्र मिलते हैं, जिनमें सूर्य देव को आरोग्य, समृद्धि और शक्ति का देवता कहा गया है।
महाभारत में भी Chhath puja का उल्लेख मिलता है — जब कुंती और द्रौपदी ने पुत्र प्राप्ति और सुख-समृद्धि की कामना से सूर्य देव की पूजा की थी।
इसी तरह, लोककथाओं में यह भी कहा जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण प्रतिदिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। यही परंपरा आगे चलकर छठ पर्व के रूप में प्रचलित हुई।
Chhath puja का धार्मिक महत्व
छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य है — सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करके स्वास्थ्य, संतान, सुख-समृद्धि और परिवार की दीर्घायु की कामना करना।
सूर्य देव को ही एकमात्र ऐसा देवता माना गया है जिनका साक्षात दर्शन हर दिन किया जा सकता है। सूर्य ऊर्जा, जीवन और प्रकाश का प्रतीक है।
छठी मैया को उषा (सुबह की पहली किरण) और प्रत्युषा (सूर्यास्त की अंतिम किरण) का रूप माना गया है। माना जाता है कि छठी मैया बच्चों की रक्षा करती हैं और परिवार में सुख-शांति बनाए रखती हैं।
Chhath puja कब और कितने दिन की होती है
Chhath puja कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह दीपावली के छठे दिन आता है।
पूजा कुल चार दिनों तक चलती है —
नहाय-खाय (पहला दिन)
खरना (दूसरा दिन)
संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
प्रातः अर्घ्य और पारण (चौथा दिन)
Chhath puja की चार दिवसीय विधि
पहला दिन — नहाय खाय
इस दिन व्रती (व्रत करने वाला/वाली) सुबह गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके घर आते हैं और घर को शुद्ध करते हैं।
इस दिन केवल एक बार भोजन किया जाता है — चने की दाल, कद्दू की सब्जी और भात (चावल) का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसे अत्यंत सात्विक तरीके से बनाया जाता है।
दूसरा दिन — खरना
दूसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर (रसीया), रोटी और केले का प्रसाद बनता है। व्रती इसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित करते हैं, फिर स्वयं ग्रहण करते हैं। इसके बाद परिवार और आस-पड़ोस में बाँटा जाता है।
तीसरा दिन — संध्या अर्घ्य
इस दिन पूरे दिन उपवास रखा जाता है। शाम को व्रती और श्रद्धालु सज-संवर कर घाट (नदी या तालाब के किनारे) पहुँचते हैं।
सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान छठ गीत गाए जाते हैं, लोक नृत्य होते हैं और वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
चौथा दिन — प्रातः अर्घ्य और पारण
चौथे दिन सुबह-सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
सूर्य देव को दूध, जल, गन्ना, फल और ठेकुआ (छठ का मुख्य प्रसाद) अर्पित किया जाता है।
इसके बाद व्रती व्रत खोलते हैं जिसे “पारण” कहते हैं। यह फलाहार या प्रसाद से किया जाता है।
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