23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे देश के 52वें सीजेआई गवई शुक्रवार को आखिरी बार कोर्ट में बैठे।
’मैं कानून के छात्र के रूप में आया और अब न्याय के छात्र के तौर पर विदा ले रहा हूं… हर पद देश की सेवा का अवसर है, और मैंने यही करने की कोशिश की।’ इन शब्दों के साथ CJI BR Gavai ने अपने न्यायिक सफर को याद किया। 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे देश के 52वें सीजेआई गवई शुक्रवार को आखिरी बार कोर्ट में बैठे।
CJI BR Gavai की विदाई पर सुप्रीम कोर्ट में सेरेमोनियल बेंच लगी, जिसमें उनके साथ अगले मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी उपस्थित थे। वकीलों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और जजों ने एकमत से कहा, जस्टिस गवई न्यायपालिका के उन चेहरों में शामिल हैं, जिन्होंने कठोर फैसलों के साथ मानवीय संवेदनाओं की भी मिसाल पेश की।
बौद्ध समुदाय के पहले और एससी वर्ग के दूसरे सीजेआई
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे बी.आर. गवई राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आते हैं। उनके पिता रामकृष्ण गवई एमएलसी, सांसद और तीन राज्यों के राज्यपाल रहे। 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने गवई 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 14 मई 2024 को वे भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। वह अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले दूसरे और बौद्ध समुदाय के पहले सीजेआई हैं।
CJI BR Gavai का उदार रवैया बना पहचान
विदाई समारोह में सबसे अधिक जिस बात का उल्लेख हुआ, वह था CJI BR Gavai का मानवीय और उदार व्यवहार। एक अवसर पर एक वकील ने उनकी ओर जूता उछाल दिया था, लेकिन उन्होंने न केवल उसे माफ कर दिया बल्कि उसके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्णय लिया।
साथ ही CJI BR Gavai उन कुछ न्यायाधीशों में शामिल रहे जिन्होंने कई बार खुलकर कहा कि SC/ST वर्ग के संपन्न लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इस मुद्दे पर उनके स्पष्ट रुख की व्यापक चर्चा होती रही।
निर्णय और कार्यकाल, कई बड़े फैसलों की विरासत
अपने कार्यकाल में CJI BR Gavai ने कई ऐतिहासिक आदेश दिए, जिनका व्यापक राष्ट्रीय प्रभाव पड़ा।
1. प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर बड़ा फैसला
सेवानिवृत्ति से कुछ ही दिन पहले, जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए महत्वपूर्ण प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर निर्णय देते हुए कहा “राज्यपाल और राष्ट्रपति पर विधेयक मंजूरी की कोई समय सीमा लागू नहीं की जा सकती।”
यह फैसला संघीय ढांचे और संवैधानिक व्यवस्था की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण जोड़ माना जा रहा है।
2. वक्फ संशोधन कानून पर रोक से इनकार
जस्टिस गवई की पीठ ने वक्फ संशोधन कानून पर रोक लगाने से मना कर दिया, जिससे इस कानून को लागू करने का रास्ता साफ हुआ। यह फैसला धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण और अधिकारों के मुद्दे पर अहम माना गया।
3. दिल्ली में ग्रीन पटाखों को हरी झंडी
दिल्ली में पटाखों पर वर्षों से लगी रोक को हटाते हुए जस्टिस गवई की बेंच ने ग्रीन पटाखों की बिक्री और उपयोग की अनुमति दी।
इसके चलते राजधानी में कई साल बाद दीपावली पर आधिकारिक रूप से पटाखों की बिक्री संभव हुई।
4. देशभर में बुलडोजर कार्रवाई पर नियम तय किए
पिछले वर्ष गवई की बेंच ने ‘बुलडोजर कार्रवाई’ पर ऐतिहासिक निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा “किसी भी संपत्ति पर कार्रवाई से पहले नोटिस देना अनिवार्य होगा। कार्रवाई और नोटिस के बीच कम से कम 15 दिन का अंतर होना चाहिए।” यह आदेश देशभर में प्रशासनिक पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों के लिए अहम साबित हुआ।
5. अनुच्छेद 370 हटाने को सही ठहराने वाली बेंच का हिस्सा
जस्टिस गवई उस ऐतिहासिक पांच-न्यायाधीशीय पीठ का हिस्सा रहे जिसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को संवैधानिक बताया। यह आधुनिक भारत के सबसे निर्णायक संवैधानिक फैसलों में शामिल है।
6. 2016 की नोटबंदी को संवैधानिक ठहराया
गवई नोटबंदी के फैसले पर बनी संविधान पीठ के भी सदस्य थे, जिसने नोटबंदी को वैध और संवैधानिक माना।
7. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना रद्द करने में महत्वपूर्ण भूमिका
उन्होंने उस पीठ में योगदान दिया जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया। यह फैसला चुनावी पारदर्शिता और राजनीतिक फंडिंग में सबसे बड़ा सुधार माना जाता है।
8. अवैध गिरफ्तारी पर मजबूत सुरक्षा कवच
हाल के एक निर्णय में उन्होंने कहा “यदि पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति को लिखित में गिरफ्तारी का कारण नहीं देती, तो उसे रिहा कर दिया जाएगा।”
यह फैसला नागरिक स्वतंत्रता और पुलिस सुधारों की दिशा में एक अहम कदम है।
9. पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण पर कई आदेश
जस्टिस गवई ने पर्यावरणीय मामलों में सक्रिय रुख अपनाया और वन्यजीव संरक्षण, वायु गुणवत्ता और पर्यावरणीय क्षति से जुड़े कई आदेश जारी किए।
CJI BR Gavai की विदाई
CJI BR Gavai ने कहा था “मैंने कानून को नहीं, न्याय को प्राथमिकता दी।” उनकी न्यायिक यात्रा इस बात का प्रमाण है कि संविधान की व्याख्या केवल कानूनी नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टि से भी की जाती है।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल आधुनिक भारतीय न्यायपालिका में एक उदार, संतुलित और दृढ़ न्यायिक नेतृत्व की मिसाल बनकर दर्ज हो गया है।
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