China Japan Tension: बयान वापसी की मांग पर अड़ा चीन, दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर
China Japan Tension: चीन और जापान के बीच हाल के दिनों में कूटनीतिक तनाव अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है। मामला तब गरमाया जब जापान की प्रधानमंत्री सनाई तकाइची ने संसद में कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो यह जापान के अस्तित्व के लिए खतरे वाली स्थिति होगी। इस बयान ने चीन को भड़का दिया और उसने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए टिप्पणी को वापस लेने की मांग कर दी।
यही मुद्दा आज China Japan Tension को नई ऊंचाई पर ले आया है।
जापानी पीएम का बयान जिसने बढ़ाया विवाद
7 नवंबर को जापान की संसद में एक सांसद के सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री तकाइची ने कहा था:
“अगर चीन ताइवान पर नियंत्रण करने के लिए बल का इस्तेमाल करता है, तो यह जापान के वजूद के लिए खतरा होगा।”
जापान के 2015 के सुरक्षा कानून में ‘वजूद के लिए खतरे’ की स्थिति वह परिस्थिति है जब किसी सहयोगी देश पर हमला, जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करता है। ऐसी परिस्थिति में जापान को अमेरिकी सहयोग से अपनी सेना तैनात करने का अधिकार मिल जाता है।
यही बात चीन को नागवार गुज़री।
चीन की कड़ी प्रतिक्रिया — “बयान तुरंत वापस लो”
चीन ने जापानी पीएम के बयान को
“अत्यंत गंभीर, भड़काऊ और चीन के आंतरिक मामलों में दखल” बताया।
चीनी विदेश मंत्रालय, चीनी दूतावास और यहां तक कि चीनी मीडिया ने भी इस वक्तव्य को लेकर जापान पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया।
चीन की मांगें:
- बयान तत्काल वापस लिया जाए
- जापान ताइवान मामले पर “वन चाइना पॉलिसी” का सम्मान करे
- ताइवान स्ट्रेट में किसी भी सैन्य चर्चा से दूर रहे
चीन ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता है और किसी भी देश द्वारा ताइवान का समर्थन उसे बर्दाश्त नहीं।
कूटनीति से UN तक: China Japan Tension बढ़ा
मामला सिर्फ विरोध तक नहीं रुका।
चीन ने इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र तक ले जाकर शिकायत दर्ज की।
चीन का दावा:
“जापान ताइवान मामले पर बोलकर अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है।”
इसके जवाब में जापान ने भी अपना पत्र भेजकर चीन के आरोपों को “तथ्यहीन” बताया।
चीन ने उठाए आर्थिक हथियार
जैसे-जैसे Japan China Tension बढ़ा, चीन ने जापान पर आर्थिक दबाव बनाना शुरू कर दिया:
- चीनी नागरिकों को जापान यात्रा न करने की चेतावनी
- जापानी सीफूड के आयात पर प्रतिबंध
- जापानी फिल्मों की स्क्रीनिंग निलंबित
यह चीन की वही रणनीति है जिसे दुनिया “इकोनॉमिक कोएर्शन (economic coercion)” भी कहती है।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम तकाइची — दोनों ने की ट्रंप से बात
इस तनाव के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और जापान की प्रधानमंत्री तकाइची — दोनों ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत की।
ट्रंप ने दोनों को सावधानी बरतने की सलाह दी, लेकिन यह साफ किया कि
“द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी सैनिकों ने जापान के लिए भी बलिदान दिया था”
यह संकेत था कि अमेरिका, जापान की सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को हल्के में नहीं लेगा।
China Japan Tension कैसे शुरू हुआ?
संसद के भीतर एक साधारण सवाल ने अचानक एशिया की राजनीति में हलचल मचा दी।
सवाल:
“ताइवान से जुड़े किस हालात को जापान अपने वजूद पर खतरा मानेगा?”
जवाब में तकाइची ने युद्धपोतों और सैन्य बल के इस्तेमाल को सीधा “वजूद के खतरे” की स्थिति बताया।
चीन ने इसे ताइवान पर सैन्य हस्तक्षेप के संकेत के रूप में देखा और नाराज़गी जताई।
चीन का आरोप: “जापान उकसा रहा है”
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा:
“बयान को हल्का दिखाना या नज़रअंदाज़ करना बयान वापस लेने के बराबर नहीं है। जापान खुद को धोखा दे रहा है।”
इस बयान ने China Japan Tension को और बढ़ा दिया।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
भारत, जापान और वैश्विक रणनीतिक विशेषज्ञों ने इस विवाद पर चिंता जताई है।
ब्रह्मा चेलानी (Indian Strategic Expert)
“अगर चीन जापान को धमका सकता है, तो वह एशिया में किसी को भी धमका सकता है।”
कंवल सिब्बल (पूर्व विदेश सचिव)
“चीन का यह वर्चस्ववादी रवैया पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर रहा है। ताइवान स्ट्रेट में इसकी आक्रामकता बहुत चिंताजनक है।”
चीन-जापान के बीच पुराने घाव भी भर नहीं पाए
चीन और जापान का रिश्ता ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील रहा है —
- 1931: जापान का मंचूरिया पर कब्ज़ा
- 1937: नानजिंग नरसंहार
- द्वितीय विश्व युद्ध में लाखों लोगों की मौत
यह इतिहास चीन आज भी अपने नागरिकों को याद दिलाता है।
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