स्क्रीन की लत बन रही है आंखों की दुश्मन, बढ़ रहा कंप्यूटर विजन सिंड्रोम
Computer Vision Syndrome: आधी रात का सन्नाटा है। कमरे की लाइटें बुझी हुई हैं और बाहर सब कुछ शांत दिखाई देता है। यह समय नींद लेने का है, लेकिन नींद आने की बजाय हाथ बार-बार मोबाइल फोन की ओर बढ़ जाता है। स्क्रीन की हल्की-सी रोशनी कमरे को चमका देती है। कभी इंस्टाग्राम रील्स स्क्रॉल हो रही हैं, तो कभी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक के बाद एक एपिसोड अपने आप चल रहे हैं। समय का एहसास खत्म होता जाता है, नींद लगातार टलती रहती है और आंखें मोबाइल स्क्रीन से चिपकी रहती हैं। यही आदत धीरे-धीरे आंखों के लिए एक गंभीर खतरे का रूप ले रही है, जिसे मेडिकल भाषा में Computer Vision Syndrome या डिजिटल आई स्ट्रेन कहा जाता है।
Computer Vision Syndrome क्या है?
धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली के कंसल्टेंट ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट डॉ. दिग्विजय सिंह बताते हैं कि कंप्यूटर विजन सिंड्रोम ऐसी स्थिति है, जिसमें लंबे समय तक डिजिटल स्क्रीन देखने से आंखों में कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं। हमारी आंखें मूल रूप से किताब या कागज पर लिखे अक्षरों को पढ़ने के लिए बनी हैं, न कि चमकती स्क्रीन के पिक्सल्स को देखने के लिए।
स्क्रीन पर टेक्स्ट ठोस नहीं होता, बल्कि छोटे-छोटे पिक्सल्स से बना होता है। ऐसे में आंखों को लगातार फोकस बदलना पड़ता है। यह प्रक्रिया आंखों की मांसपेशियों पर अतिरिक्त दबाव डालती है, जिससे थकान, जलन और असहजता महसूस होती है। शुरुआत में ये लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन समय के साथ समस्या गंभीर हो सकती है।
क्यों होता है कंप्यूटर विजन सिंड्रोम?
Computer Vision Syndrome का सबसे बड़ा कारण लंबे समय तक बिना ब्रेक के स्क्रीन देखना है। कुछ रिसर्च के मुताबिक, लगातार सिर्फ दो घंटे तक स्क्रीन पर नजर टिकाए रखने से भी इसके लक्षण उभरने लगते हैं। स्क्रीन पर जितना ज्यादा समय बिताया जाता है, आंखों पर पड़ने वाला तनाव उतना ही बढ़ता जाता है।
इसके अलावा गलत पोस्चर, स्क्रीन की गलत ऊंचाई, बहुत ज्यादा या बहुत कम ब्राइटनेस, ड्राई आई की समस्या और आंखों का पहले से कमजोर होना भी इस सिंड्रोम को बढ़ावा देता है।
इसके आम लक्षण क्या हैं?
जब आंखें लगातार डिजिटल स्क्रीन की रोशनी पर फोकस करती हैं, तो कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं। इनमें आंखों में जलन, सूखापन, लालिमा, धुंधला दिखना, सिरदर्द, आंखों में भारीपन और कभी-कभी गर्दन या कंधों में दर्द भी शामिल है। कुछ लोगों को स्क्रीन से नजर हटाने के बाद भी चीजें साफ देखने में दिक्कत होती है।
किन लोगों को ज्यादा खतरा?
जो लोग रोजाना चार घंटे या उससे ज्यादा समय कंप्यूटर, मोबाइल या किसी भी डिजिटल डिवाइस पर बिताते हैं, उनमें कंप्यूटर विजन सिंड्रोम का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। आईटी प्रोफेशनल्स, स्टूडेंट्स, कंटेंट क्रिएटर्स और देर रात तक मोबाइल इस्तेमाल करने वाले युवा इसकी चपेट में जल्दी आते हैं। अगर आंखों में पहले से कोई समस्या, जैसे रिफ्रेक्टिव एरर या ड्राई आई मौजूद हो, तो जोखिम और भी बढ़ जाता है।
समस्या होने पर क्या करें?
डॉ. दिग्विजय सिंह के अनुसार, कुछ आसान आदतें अपनाकर इसके लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। आंखों के लिए हल्की एक्सरसाइज, जैसे पाल्मिंग और जूमिंग, आंखों की मांसपेशियों को आराम देती हैं। इसके अलावा बाजार में आसानी से मिलने वाली लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स आंखों के सूखेपन और जलन को कम करने में मदद करती हैं।
नियमित रूप से आंखों की जांच कराना भी बेहद जरूरी है, ताकि समय रहते किसी भी समस्या का पता चल सके और चश्मे का नंबर जरूरत के अनुसार बदला जा सके।
कंप्यूटर विजन सिंड्रोम का इलाज
इस समस्या की पहचान आमतौर पर आई टेस्ट के जरिए की जाती है। जांच के दौरान डॉक्टर यह देखते हैं कि व्यक्ति स्क्रीन को किस दूरी से देखता है और कितनी देर तक बिना ब्रेक के काम करता है। अच्छी बात यह है कि स्क्रीन से जुड़ी ज्यादातर परेशानियां लाइफस्टाइल में छोटे-छोटे बदलाव और नियमित जांच से काफी हद तक नियंत्रित की जा सकती हैं।
डिजिटल आई स्ट्रेन से बचने के आसान तरीके
रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ आदतें अपनाकर डिजिटल आई स्ट्रेन से बचा जा सकता है। आंखों को सूखने से बचाने के लिए ड्राई आई मैनेजमेंट जरूरी है। शरीर को हाइड्रेटेड रखना भी आंखों की प्राकृतिक नमी बनाए रखने में मदद करता है।
स्क्रीन देखते समय बार-बार पलकें झपकाना बेहद जरूरी है, क्योंकि स्क्रीन पर फोकस करते हुए हम अक्सर ब्लिंक करना भूल जाते हैं। इसके अलावा हल्की नजर की समस्या भी Computer Vision Syndrome को बढ़ा सकती है, इसलिए सही चश्मा या विशेष कंप्यूटर ग्लासेस उपयोगी साबित हो सकते हैं।
डॉक्टर सलाह देते हैं कि हर दिन स्क्रीन टाइम को चार घंटे से कम रखने की कोशिश करें। अगर काम या पढ़ाई के कारण यह संभव न हो, तो हर दो घंटे में कम से कम 15 मिनट का ब्रेक जरूर लें और इस दौरान किसी भी स्क्रीन से दूर रहें। 20-20-20 रूल अपनाना भी आंखों के लिए बेहद फायदेमंद है।
सही सेटअप भी है जरूरी
वर्कस्टेशन को एर्गोनॉमिक तरीके से सेट करना आंखों और गर्दन दोनों के लिए जरूरी है। स्क्रीन पर पड़ने वाली चमक और रिफ्लेक्शन कम करें। कमरे की रोशनी के अनुसार स्क्रीन की ब्राइटनेस और कॉन्ट्रास्ट एडजस्ट करें। बहुत छोटे फॉन्ट पढ़ने से बचें और जरूरत पड़ने पर जूम इन करें।
आंखों के लिए सही खानपान
आंखों की सेहत बनाए रखने के लिए संतुलित आहार बेहद जरूरी है। विटामिन A, ओमेगा-3 फैटी एसिड, एंटीऑक्सिडेंट्स और जरूरी मिनरल्स आंखों को मजबूत बनाते हैं। गाजर, पालक, ब्रोकली, शकरकंद, अंडे की जर्दी, बादाम, अखरोट, अलसी के बीज, मछली, आंवला और ब्लूबेरी जैसी चीजें आंखों के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं।
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