
Connaught Place dog lovers protest: आवारा कुत्तों को जेल नहीं, प्यार चाहिए – सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भड़का विरोध
Connaught Place dog lovers protest: सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया है—दिल्ली और एनसीआर की सभी सड़कों से आवारा कुत्तों को पकड़कर डॉग शेल्टर में रखा जाए। सुनने में यह फैसला साफ-सुथरा और सुरक्षित लगता है, लेकिन इसके खिलाफ राजधानी दिल्ली में एक बड़ा विरोध शुरू हो गया है।
सोचिये अगर आज रात आपके घर का दरवाज़ा बंद हो जाए… और आपको गर्म सड़क पर, बिना खाना, बिना पानी के, और सर्दियों में खुले आसमान के नीचे सोना पड़े… कैसा लगेगा? डर, ठंड और भूख से कांपते हुए आप सिर्फ मदद का इंतज़ार करेंगे। इंसान तो फिर भी बोल सकता है, रो सकता है, मदद के लिए पुकार सकता है। लेकिन वो बेजुबान जानवर, खासकर गली-मोहल्ले के कुत्ते… उनकी तकलीफ़ कौन समझेगा?
कनॉट प्लेस में भड़का विरोध
कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर परिसर में कई पशुप्रेमी इकट्ठा हुए। इनमें मेनका गांधी की बहन और मशहूर एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट अंबिका शुक्ला भी थीं। उनके साथ आए लोग इन बेजुबानों की सुरक्षा के लिए मंदिर पहुंचे, ताकि भगवान से इनकी सलामती की दुआ मांग सकें।
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को वहां से हटाने की कोशिश की, क्योंकि मंदिर परिसर में प्रोटेस्ट की इजाज़त नहीं है। लेकिन लोग चार-चार के ग्रुप में मंदिर जाते रहे। उनके हाथ में कोई बैनर नहीं था, बस दिल में एक बात थी—“इन मासूमों को जेल में मत डालो।”
अंबिका शुक्ला का बयान
अंबिका शुक्ला ने मीडिया से कहा—
“जो आंकड़े दिए जा रहे हैं कि कुत्तों के काटने से मौतें हो रही हैं… वो पूरी तरह भ्रामक हैं। असलियत यह है कि सड़क दुर्घटनाओं में लाखों लोग मर जाते हैं, लेकिन इस पर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जाता। और अब… इन कुत्तों को पकड़कर कहीं दूर, किसी बंद आश्रय में डाल देने की बात हो रही है… जहां न खुले में दौड़ने की जगह होगी, न इंसानी प्यार, न वो मोहल्ला जहां वो जन्मे।”
उन्होंने आगे कहा—“ये सिर्फ कुत्तों पर हमला नहीं है… ये पूरे इको सिस्टम पर हमला है। सोचिए, अगर गली के कुत्ते, कबूतर, बंदर, चूहे—सबको हटा दिया गया, तो हमारी बस्तियों, सड़कों और मोहल्लों का संतुलन बिगड़ जाएगा।”
डॉग शेल्टर पर सवाल
मौके पर मौजूद कई पशुप्रेमियों ने कहा कि दिल्ली में कोई बड़ा डॉग शेल्टर नहीं है। ऐसे में इन हजारों कुत्तों को कहां रखा जाएगा? क्या ये जगहें इंसान के लिए साफ और सुंदर बनाने के नाम पर, इन बेजुबानों के लिए कब्रगाह बन जाएंगी?
मोहल्ले का साथी
सोचिए… मोहल्ले का वो कुत्ता, जो रोज़ आपकी गली में पूंछ हिलाकर आपका स्वागत करता है… जिसने कई बार अजनबियों पर भौंककर आपको सतर्क किया… जो आपके बच्चों के साथ खेलता है… उसे अचानक से गायब कर दिया जाए। अगली सुबह आप उठें और वो न दिखे… बस, उसकी याद रह जाए।
ये कुत्ते हमारे दुश्मन नहीं हैं… बल्कि कई बार ये हमारी रक्षा करते हैं। ये भूखे हों तो खाना ढूंढते हैं, प्यार दो तो वफादार हो जाते हैं। इन्हें भी सांस लेने का, जीने का और आज़ाद घूमने का उतना ही हक है जितना हमें।
समस्या का हल क्या है?
हां, यह सच है कि कभी-कभी इनके काटने या झुंड बनाकर दौड़ाने से लोग डर जाते हैं। लेकिन इसका हल इन्हें कैद करना नहीं है… बल्कि इनका वैक्सीनेशन, नसबंदी और सही देखभाल है। यही तरीका है जिससे इंसान और जानवर साथ रह सकते हैं।
विदेशी मॉडल की नकल?
कई लोगों का कहना है कि भारत, विदेशों की नकल करने की कोशिश कर रहा है—जैसे वहां की सड़कों पर कुत्ते बहुत कम दिखते हैं। क्या भारत भी खुद को ऐसा ही दिखाना चाहता है?
लेकिन शायद ये बात भूल रहा है कि विदेशों में कुत्तों के लिए बड़े-बड़े, हज़ारों एकड़ में फैले शेल्टर होते हैं। वहां उनके खाने से लेकर दवाइयों तक की पूरी व्यवस्था होती है। और सिर्फ इतना ही नहीं… वहां के लोग उन्हें गोद भी ले सकते हैं।
तो सवाल यह है—क्या सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी कोई तैयारी की है, जहां सड़क के कुत्तों को उससे भी बेहतर सुविधा मिल सके? या फिर यह फैसला केवल कागज़ों में अच्छा दिखने वाला एक आदेश बनकर रह जाएगा?
सवाल इंसानियत का है
आज सवाल सिर्फ कुत्तों का नहीं है… सवाल है इंसानियत का। हम कितने तैयार हैं, अपने शहरों को साफ रखने के नाम पर, इन बेजुबानों को अपने मोहल्लों से मिटाने के लिए?
हमें यह सोचना होगा—क्या हम ऐसा शहर चाहते हैं, जहां सड़कें चमकती हों… लेकिन उनमें वो मासूम आंखें न हों, जो हमें रोज देखती थीं?
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