AIMIM नेता Shaukat Ali की टिप्पणी पर विवाद: “कांवड़ियों के खिलाफ जहरीली जुबान”

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लमीन) के प्रदेश अध्यक्ष Shaukat Ali की विवादास्पद टिप्पणी ने राज्य और देशभर में राजनीति को गरमा दिया है। शौकत अली ने अपनी जनसभा में कांवड़ यात्रा को लेकर कड़े बयान दिए, जिसमें उन्होंने कांवड़ियों के व्यवहार को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए। उनके बयान के बाद, भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने उन्हें जमकर आड़े हाथों लिया। इस पूरे विवाद ने न केवल कांवड़ यात्रा के सम्मान को लेकर बहस को उभारा, बल्कि धर्म और राजनीति के बीच बढ़ते तनाव को भी उजागर किया है।

Shaukat Ali

Shaukat Ali का बयान

18 नवंबर को मुरादाबाद में आयोजित एक जनसभा के दौरान, शौकत अली ने कहा, “सावन के महीने में कांवड़िए दो महीने तक नेशनल हाईवे को बंद करा देते हैं। पुलिस उनके पैरों को धोती है, और चिलम पीते हुए शराब भी पीते हैं।” उनके मुताबिक, कांवड़ियों को सरकार और प्रशासन द्वारा अत्यधिक समर्थन दिया जाता है, जैसे पुलिस उनके पैरों में मरहम लगाती है और हेलीकॉप्टर से उन पर फूल बरसाए जाते हैं। शौकत अली का कहना था कि कांवड़ यात्रा के दौरान हुड़दंग मचाने वाले कांवड़ियों पर सरकार कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करती।

इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि “कांवड़िए दो महीने तक सड़क पर रहते हैं, लेकिन जब हम 2 मिनट नमाज पढ़ने की कोशिश करते हैं तो हमारे खिलाफ आवाज उठाई जाती है।” शौकत अली के इन शब्दों ने न केवल कांवड़ियों, बल्कि हिंदू समुदाय को भी आहत किया है, जिसके बाद भाजपा और अन्य हिंदू संगठनों ने उनका विरोध किया।

Shaukat Ali का तर्क: “यह देश सबका है”

अपने विवादित बयान को लेकर मीडिया से बातचीत करते हुए शौकत अली ने दावा किया कि सड़कें किसी एक व्यक्ति या पार्टी के व्यक्तिगत खजाने से नहीं बनीं। उनका कहना था, “ये जो सड़कें बनी हैं, वो योगी आदित्यनाथ जी, नरेंद्र मोदी जी या अमित शाह के पर्सनल खजाने से नहीं बनी। ये हिंदुस्तान जितना अमित शाह और नरेंद्र मोदी का है, उतना ही हिंदुस्तान बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी, शौकत अली और हाफिज वारिस का भी है।” उनका तर्क था कि इस देश में सभी का बराबरी का हक है और हिंदू-मुसलमानों के बीच इस तरह के भेदभाव से देश को नुकसान हो रहा है।

उन्होंने कांवड़ यात्रा के दौरान हाईवे बंद करने के मुद्दे पर भी सवाल उठाए, और पूछा कि अगर एक महीने तक सड़कें कांवड़ियों के लिए बंद रखी जा सकती हैं, तो मुसलमानों के नमाज पढ़ने पर रोक क्यों लगाई जाती है।

भाजपा और विपक्ष की प्रतिक्रिया

Shaukat Ali के इस बयान पर भाजपा और अन्य संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने एआईएमआईएम की विचारधारा को ‘जहरीली’ करार दिया और सवाल उठाया कि “शौकत अली के इस बयान पर सपा और कांग्रेस चुप क्यों हैं?” उन्होंने कहा कि कांवड़ यात्रियों के खिलाफ शौकत अली की अभद्र टिप्पणी हिंदू समाज को आहत करती है और इसका समर्थन किसी भी हालत में नहीं किया जा सकता।

भाजपा नेताओं का मानना है कि इस तरह के बयान समाज में धर्म और जाति के आधार पर नफरत फैलाने का काम करते हैं, जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरे की घंटी हो सकते हैं।

इसके अलावा, कई हिंदू संगठनों ने भी शौकत अली के बयान का विरोध किया है और कहा है कि कांवड़ यात्रा एक धार्मिक पर्व है, जो पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है। उनका कहना है कि एआईएमआईएम नेताओं को इस तरह के विवादित बयानों से बचना चाहिए ताकि समाज में सौहार्द और भाईचारे की भावना बनी रहे।

कांवड़ यात्रा और सामाजिक राजनीति

कांवड़ यात्रा उत्तर प्रदेश और अन्य हिंदी भाषी राज्यों में हर साल बड़े धूमधाम से मनाई जाती है, जिसमें लाखों कांवड़िए गंगा नदी से जल लाकर अपने भगवान शिव का पूजन करते हैं। यह एक धार्मिक आयोजन होने के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। ऐसे में शौकत अली जैसे नेताओं के बयान न केवल कांवड़ यात्रा को अपमानित करते हैं, बल्कि धार्मिक सद्भाव और समाजिक सौहार्द की भावना को भी नुकसान पहुँचाते हैं।

कांवड़ यात्रा के दौरान प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था का कड़ा बंदोबस्त किया जाता है, ताकि यात्री सुरक्षित रह सकें। हालांकि, कुछ जगहों पर यातायात जाम और सार्वजनिक स्थलों पर कांवड़ियों द्वारा हुड़दंग मचाने की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी कांवड़ियों को एक ही नजर से देखा जाए।

निष्कर्ष

Shaukat Ali का बयान न केवल एक व्यक्तिगत हमला है, बल्कि यह धर्मनिरपेक्षता और समाजिक एकता की अवधारणा को भी चुनौती देता है। भारत में धार्मिक विविधता है और हर धर्म को अपनी आस्था के अनुसार त्योहार मनाने का अधिकार है। इस तरह के बयानों से समाज में विभाजन की स्थिति पैदा होती है और समाजिक सौहार्द को नुकसान पहुँचता है।

इस विवाद ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे नेताओं को धार्मिक संवेदनाओं का सम्मान करते हुए अपनी बातें रखनी चाहिए, ताकि समाज में भाईचारा और समझदारी की भावना बनी रहे।

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