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Delhi Election: जानिए भाजपा दिल्ली में सरकार क्यों नहीं बना पाती है? कौन सी चुनौतियां आती है सामने…

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भाजपा को पहले तीन बार कांग्रेस के सामने हार का सामना करना पड़ा और फिर आम आदमी पार्टी ने उसे शिकस्त दी

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Delhi Election: भाजपा पिछले तीन दशकों से दिल्ली में सत्ता में नहीं आयी है। लगातार छह बार चुनाव हारने के बाद भाजपा सातवीं बार अपनी पूरी कोशिश में लगी हुई है और जीतने की इरादे से चुनावी मैदान में उतरी है। भाजपा को पहले तीन बार कांग्रेस के सामने हार का सामना करना पड़ा और फिर आम आदमी पार्टी ने उसे शिकस्त दी। लेकिन एक सवाल जो मन में आता है कि बीते तीन लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है लेकिन इस दौरान विधानसभा चुनाव में पार्टी सफल नहीं हो पा रही है।

Delhi Election: स्थानीय नेता की कमी

Delhi Election: दिल्ली में सरकार न बना पाने का एक मुख्य कारण यह भी है कि भाजपा के पास स्थानीय नेता का अभाव है। साल 2020 के आधार पर देखा जाए तो दिल्ली में अगले महीने यानी फरवरी में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। लेकिन इस दौरान राज्य की सत्ता पर अपना अधिकार जमाई हुई आम आदमी पार्टी पर दिल्ली के अन्य दो प्रमुख दल लगातार हमला बोल रहे हैं या निशान साध रहे हैं। केजरीवाल के कथित भ्रष्टाचार से लेकर दिल्ली के विकास तक आम आदमी पार्टी की सरकार पर सवाल लगातार खड़े ही हो रहे है।
एक वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया है। यहां के लोगों को आम आदमी पार्टी की सरकार, उसकी नीतियां जिनमे मुफत बिजली, मुक्ति पानी शामिल है… वह अच्छी नहीं लगती।

Delhi Election: दलित और मुस्लिम वोट बनते है हार का कारण

Delhi Election: दिल्ली में साल 2020 में बीते विधानसभा चुनाव में देखा जाए तो आम आदमी पार्टी को लगभग 54% वोट मिले थे और भाजपा 40 फ़ीसदी वोट ही जुटा पाई थी। जबकि कांग्रेस को चार प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं दूसरी ओर साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को 56% वोट मिले थे और आम आदमी पार्टी को 18% वोट और कांग्रेस को लगभग 23% वोट मिले थे। ऐसा माना जाता है कि भाजपा का दिल्ली में पीछे रहने का एक प्रमुख कारण दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियां में रहने वाले लोग दलित और मुस्लिम है ।

Delhi Election: भाजपा ने आखिरी बार 1993 में जीत हासिल की थी

Delhi Election: साल 1993 में भाजपा दिल्ली में आखिरी बार सरकार बना पाई थी। उस वक्त मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर बिठाये गए थे। जीत में दिल्ली में वोटो के बंटवारे ने एक अहम भूमिका निभाई थी। उस साल के चुनाव में बीपी सिंह के ‘मंडल’ की राजनीति का असर दिल्ली में साफ-साफ दिखा था और जनता दल ने राज्य के 12% से ज्यादा वोट अपने खेमे में किए थे। जबकि कांग्रेस को लगभग 35% और भाजपा को 43% वोट हासिल हुए थे। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली में भाजपा की जीत के लिए वोटो का बंटवारा एक अहम भूमिका निभाता है। हालांकि साल 1993 में 49 सीटों पर मिली इस बड़ी जीत के बाद भी उस दौरान 5 साल में भी भाजपा को तीन बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा था।

Delhi Election: विश्लेषक संजय कुमार के विचार

Delhi Election: मशहूर चुनाव विश्लेषक और सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार का मानना है कि जिस समय कांग्रेस के हाथों दिल्ली में भाजपा को हार मिल रही थी उस समय भाजपा बहुत मजबूत पार्टी नहीं थी। लेकिन मोदी जी की आने के बाद और पार्टी के मजबूत होने के बाद भी दिल्ली में भाजपा नहीं जीत पाती है।
संजय कुमार का यह मानना है की राजधानी दिल्ली के वोटरों ने यह साफ तौर पर अपना मन बना लिया है कि वह लोकसभा में भाजपा को वोट देंगे और विधानसभा में आम आदमी पार्टी को इसलिए दोनों चुनाव में वोटो के बंटवारे में एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है।

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