Delhi NCR Pollution: क्लाउड सीडिंग से नहीं रुकेगा प्रदूषण! पर्यावरणविदों ने कहा — जमीनी उपाय ही हैं असली समाधान
Delhi NCR Pollution: राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण फिर से खतरनाक स्तर पर पहुँच चुका है। हवा में धुआं, धूल और जहरीले कणों का घना जाल लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है। इसी बीच, कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग को लेकर चर्चा तेज हुई — क्या इससे प्रदूषण कम किया जा सकता है?
लेकिन अब देश के जाने-माने पर्यावरणविदों ने इस तकनीक को नकार दिया है और कहा है कि यह सिर्फ अस्थायी उपाय है, असली काम तो जमीन पर ही करना होगा।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग यानी बादलों में रसायन डालकर कृत्रिम बारिश करवाना।
इस तकनीक में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस जैसे रसायन हवा में छोड़े जाते हैं ताकि बादल बनें और बारिश हो।
सरकार का मानना है कि इससे प्रदूषण कम हो सकता है, लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है — “यह उतना आसान नहीं जितना लगता है।”
पर्यावरणविदों ने जताई गंभीर चिंता
आईआईटी दिल्ली की प्रो. मंजू मोहन ने कहा कि क्लाउड सीडिंग की तकनीक अभी इतनी परिपक्व नहीं है कि यह वायु प्रदूषण को कम कर सके।
उनके अनुसार, “यह शोध के लिए ठीक है, लेकिन किसी गंभीर प्रदूषण स्थिति से निपटने का उपाय नहीं हो सकता। अगर बादल अपनी दिशा बदल दें, तो बारिश कहीं और होती है और प्रदूषण वहीं का वहीं रह जाता है।”
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले रसायन — जैसे सिल्वर आयोडाइड और सल्फर यौगिक — मिट्टी, पानी और हवा को और दूषित कर सकते हैं। इससे इंसानों और जानवरों की सेहत पर भी असर पड़ सकता है।
“हवाई नहीं, जमीनी उपाय ज़रूरी”
पर्यावरण विशेषज्ञ सुनील दहिया ने कहा, “क्लाउड सीडिंग, स्मॉग टावर या एंटी-स्मॉग गन जैसे उपाय सिर्फ दिखावे के हैं। ये थोड़े समय के लिए राहत देते हैं, लेकिन असली समस्या वहीं की वहीं रहती है।”
उन्होंने बताया कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को ऊर्जा, परिवहन, कचरा प्रबंधन और निर्माण गतिविधियों से निकलने वाले उत्सर्जन पर सख्ती करनी होगी।
“अगर दिल्ली में बारिश करा भी दी जाए, तो पंजाब-हरियाणा या यूपी से आने वाला धुआं हवा में फिर से भर जाएगा। इसलिए राज्यों को मिलकर Air-Shed बेस्ड नीति बनानी चाहिए,” उन्होंने जोड़ा।
“बारिश अस्थायी राहत देती है, समाधान नहीं”
विमलेंदु झा, जो लंबे समय से पर्यावरण पर काम कर रहे हैं, ने कहा कि बारिश वायु प्रदूषण को कुछ समय के लिए कम कर सकती है, लेकिन यह स्थायी हल नहीं।
उन्होंने कहा, “क्लाउड सीडिंग से एक-दो दिन राहत जरूर मिल सकती है, लेकिन यह हर बार नहीं किया जा सकता। इसके रसायन मिट्टी और जल स्रोतों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।”
विमलेंदु झा ने सवाल उठाया — “अगर यह तरीका सिर्फ दिल्ली जैसे शहरों में किया जाएगा, तो पड़ोसी राज्यों से आने वाला प्रदूषण कौन रोकेगा?”
“दिखावे के कदम नहीं, असली कार्रवाई चाहिए”
पर्यावरणविद ज्योति पांडे लवकारे ने कहा कि क्लाउड सीडिंग या स्मॉग टावर जैसे कदम सिर्फ ‘कॉस्मेटिक उपाय’ हैं — दिखावे के लिए, न कि असली सुधार के लिए।
उन्होंने कहा, “जब तक उत्सर्जन घटाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक हवा साफ नहीं होगी।
बादलों में रसायन डालना सिर्फ दिखावा है, असली असर नहीं।”
उन्होंने सरकार की नीतियों की भी आलोचना करते हुए कहा, “हाल ही में ताप विद्युत संयंत्रों के उत्सर्जन मानदंडों में ढील देना प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को कमजोर कर रहा है।”
“जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार”
पर्यावरणविद कृति गुप्ता का कहना है कि क्लाउड सीडिंग जैसे प्रयोग किए जा सकते हैं, लेकिन इन्हें “एकमात्र समाधान” नहीं माना जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “हमें दीर्घकालिक सुधार के लिए नागरिक जागरूकता, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, निर्माण धूल पर नियंत्रण और कचरा प्रबंधन पर ध्यान देना होगा।”
उनके अनुसार, “लोगों को अपनी भूमिका समझनी होगी — अगर हम निजी वाहन कम चलाएं, बिजली की खपत घटाएं और खुले में कचरा न जलाएं, तो हवा खुद-ब-खुद सुधर सकती है।”
क्या हुआ है पहले?
दिल्ली में पहले भी दो बार क्लाउड सीडिंग की कोशिश की जा चुकी है, लेकिन परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे।
कृत्रिम बारिश की लागत करोड़ों में होती है, और फिर भी यह सिर्फ अस्थायी राहत देती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही पैसा स्वच्छ ऊर्जा, सार्वजनिक परिवहन और कचरा प्रबंधन में लगाया जाए, तो नतीजे ज्यादा स्थायी मिल सकते हैं।
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