Fake Indian Currency Network: कैसे Pakistan से भारत के खिलाफ चला Economic Terrorism और कैसे टूटी पूरी साजिश
Fake Indian Currency Network: कैसे Pakistan से भारत के खिलाफ Economic Terrorism चला, Dawood Ibrahim का रोल क्या था और Demonetisation ने कैसे पूरी साजिश खत्म कर दी।
भारत के खिलाफ आतंक सिर्फ बंदूक और बम से नहीं लड़ा गया, बल्कि वर्षों तक एक Economic Terrorism भी चलता रहा। इस साजिश का केंद्र था पाकिस्तान का कराची शहर, जहां दो ऐसे कारोबारी भाई बैठे थे, जो बाहर से सम्मानित व्यापारी दिखते थे, लेकिन अंदरखाने भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने का खतरनाक खेल खेल रहे थे।
इन दोनों भाइयों के तार सीधे अंडरवर्ल्ड डॉन Dawood Ibrahim से जुड़े हुए थे। उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं था, बल्कि Fake Indian Currency के जरिए भारत में महंगाई बढ़ाना, अवैध नेटवर्क को फंडिंग देना और आतंकी हमलों को आर्थिक सहारा देना था।
Karachi से शुरू हुआ Fake Currency का खेल
यह कहानी 1947 के बंटवारे के बाद शुरू होती है, जब गुजरात का एक व्यापारी परिवार पाकिस्तान के कराची पहुंचा। परिवार के मुखिया ने कराची के बोल्टन मार्केट में छोटी-सी करेंसी एक्सचेंज की दुकान से काम शुरू किया।
यहीं से धीरे-धीरे उस नेटवर्क की नींव पड़ी, जो आगे चलकर भारत के लिए एक गंभीर खतरा बन गया।
समय के साथ परिवार का कारोबार बढ़ा और अगली पीढ़ी ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने की योजना बनाई। दो भाई—Altaaf Kananai और Javed Kananai—ने इस नेटवर्क को नई दिशा दी।
Hawala और Money Laundering का Global Network
इन भाइयों ने एक ऐसी कंपनी खड़ी की, जो कागज़ों में एक वैध फॉरेन एक्सचेंज बिज़नेस थी, लेकिन असल में वह Hawala Network और Money Laundering का बड़ा अड्डा बन चुकी थी।
- दुबई, लंदन, न्यूयॉर्क और खाड़ी देशों तक इनके एजेंट फैले थे
- पाकिस्तान के फॉरेन एक्सचेंज मार्केट का बड़ा हिस्सा इनके नियंत्रण में था
- ड्रग्स, हथियार और उगाही से आया काला धन इसी नेटवर्क से घूमता था
इसी नेटवर्क के जरिए Dawood Ibrahim का पैसा भारत और दुनिया भर में भेजा जाता था।
Fake Indian Currency और भारत के खिलाफ Economic War
इस नेटवर्क का सबसे खतरनाक हिस्सा था Fake Indian Currency Notes (FICN)।
कराची में छपने वाले नकली नोट पहले दुबई, नेपाल और बांग्लादेश पहुंचते, और फिर वहां से भारत में दाखिल किए जाते।
रिपोर्ट्स के मुताबिक:
- हर साल ₹1500–2000 करोड़ तक की Fake Indian Currency भारत में खपाई जा रही थी
- इन नोटों की क्वालिटी इतनी हाई थी कि कई बार बैंक और ATM सिस्टम भी धोखा खा जाते थे
- इसी पैसे से हथियार, विस्फोटक और आतंकी गतिविधियां फंड की जाती थीं
यह सिर्फ अपराध नहीं था, बल्कि भारत के खिलाफ एक सुनियोजित Asymmetric Economic Warfare थी।
International Agencies की जांच और शिकंजा
2008 के बाद भारतीय और अमेरिकी एजेंसियों ने इस नेटवर्क पर नजर रखनी शुरू की।
अमेरिकी एजेंसियों ने अंडरकवर ऑपरेशन चलाया, जहां एजेंट्स ड्रग स्मगलर बनकर इस नेटवर्क के संपर्क में आए।
हर कॉल, हर ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड की गई।
जैसे-जैसे सबूत इकट्ठा होते गए, यह साफ हो गया कि यह नेटवर्क सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग नहीं, बल्कि Terror Financing का बड़ा केंद्र है।
Arrest और Network के टूटने की शुरुआत
2015 में जैसे ही Altaaf Kananai मध्य अमेरिका पहुंचा, उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
यह गिरफ्तारी उस नेटवर्क के अंत की शुरुआत साबित हुई, जो दशकों से चुपचाप काम कर रहा था।
अमेरिका में उस पर मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से जुड़े गंभीर आरोप लगे।
इधर पाकिस्तान में बैठा दूसरा भाई अभी भी सिस्टम संभालने की कोशिश कर रहा था।
Demonetisation: एक झटके में खत्म हुआ Fake Currency Empire
फिर आया 8 November 2016।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए Demonetisation का ऐलान किया।
- 500 और 1000 रुपये के नोट अवैध घोषित
- भारत के अंदर नकली नोटों का पूरा नेटवर्क अचानक बेकार
इस फैसले का सबसे बड़ा झटका कराची में बैठे Fake Currency Operators को लगा।
हजारों करोड़ के नकली नोट, जो स्टॉक में पड़े थे, एक ही रात में रद्दी कागज़ बन गए।
यह भारत की तरफ से Economic Counter-Strike था।
Mysterious Death और कहानी का अंत
Demonetisation के कुछ ही हफ्तों बाद कराची में Javed Kananai की रहस्यमय मौत हो जाती है।
गिराया गया या खुद कूद पड़ा—इस सवाल का जवाब आज तक साफ नहीं हुआ।
दूसरी तरफ अमेरिका में Altaaf Kananai को सजा सुनाई जाती है और पूरा नेटवर्क Blacklisted हो जाता है।
क्यों जरूरी है यह कहानी जानना
यह कहानी सिर्फ दो भाइयों की नहीं है।
यह उस साजिश की कहानी है जिसमें:
- नकली नोटों को हथियार बनाया गया
- अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की गई
- आतंक को पैसे से ताकत दी गई
और अंत में भारत ने एक आर्थिक फैसले के जरिए इस पूरे नेटवर्क की कमर तोड़ दी।
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