Food Adulteration: जानलेवा केमिकल्स की खाने की चीज़ो में मिलावट, जान पर बन आयी है बात!

Food Adulteration: भारत में Food Adulteration यानी खाने में मिलावट एक माहमारी की तरह फ़ैल रही है। आंकड़ों के अनुसार भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी आर्थिक स्तर से आता हो, Food Adulteration से पीड़ित है ।

Food Adulteration के हालिया उदाहरण: 

नवरात्री के व्रत उत्तर भारत में धूम धाम से मनाये जाते हैं। इस दौरान उत्तर भारत की लगभग नब्बे प्रतिशत हिन्दू परिवारों में कोई न कोई सदस्य नवरात्री के व्रत रखता है। इस व्रत में किसी भी प्रकार का अन्न न ग्रहण करना पहली शर्त है। ऐसे में कुट्टू का आटा अधिकतर व्रती लोगो का हर शाम का खाना है।

ऐसे में एक खबर आती है बिजनौर से जहाँ के चांदपुर क्षेत्र के 120 लोग कुट्टू के आटे से बना खाना खा कर बीमार हो गए। मुख्य लक्षण थे उलटी और बुखार। इसके बाद मेरठ से भी लोगो के बीमार होने की खबरें आयी।

इस घटना से कुछ ही दिन पहले कर्नाटक की सरकार ने राज्य में लोगो को सचेत किया कि उनके द्वारा खाये जा रहे रंग बिरंगे केक्स जिसमे रेड फारेस्ट जैसा प्रसिद्द और महंगा केक भी शामिल है, वे कैंसर का कारण बन सकते हैं।

ये चेतावनी आयी जब कर्नाटक सरकार द्वारा लिए गए बेकरी के सैम्पल्स फेल कर गए क्योंकि उनमे प्रतिबंधित रंग डाले गए थे। इन रंगो का खाने में उपयोग इसलिए ही प्रतिबंधित है क्योंकि इसके कारण कैंसर हो जाता है।

ये दो घटनाएं सबसे ताज़ा हैं और फ़ूड इंडस्ट्री में Food Adulteration के गोरखधधे की सिर्फ ऊपरी परत है। Food Adulteration या खाने में मिलावट का ये धंधा बेहद पुराना है जब सुना जाता था कि दूधिया दूध में पानी मिला कर लाता है। लेकिन 2016 में उस समय के साइंस और टेक्नोलॉजी के केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने लोकसभा को बताया कि तीन भारतीयों में से दो भारतीय डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा , यहाँ तक कि यूरिया और पेंट की मिलावट वाला दूध पी रहे हैं।

2012 में दूध में डिटर्जेंट मिला होने कि पुष्टि पहले ही हो चुकी थी। दूध में मिलाई जाने वाली ये चीज़ें फ़ूड पोइज़निंग, पेट की दिक्कतें, और अंगो जैसे लिवर और किडनी को खराब करती है। अभी हाल ही में भारत के प्रसिद्द मसाला ब्रांड्स MDH और एवेरेस्ट सिंगापुर और हांगकांग की सरकारों द्वारा ख़राब क्वालिटी के कारण बैन कर दिए गए। ये ब्रांड्स भारत में मसालों के सबसे भरोसे वाले ब्रांड हैं।

बच्चो का फीड भी नहीं है Food Adulteration से अछूता!

भारत में Food Adulteration का यह बाजार यही नहीं रुकता। अपने लालच में इस बाजार में नवजात बच्चो के खाने के फार्मूला में भी मिलावट की जा रही है। अगस्त 4, 2024 को नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने संसद को जानकारी दी कि FASSI द्वारा जांच के लिए एकत्रित किये गए 111 बेबी फ़ूड सैम्पल्स में से 5 फीसदी सैम्पल्स टेस्टिंग में फ़ैल हो गए हैं।

नवजात शिशु पर किसी भी तरह की मिलावट या जीवाणु का तुरंत असर होता है क्योंकि उनका इम्युनिटी सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होता। इसलिए शिशुओं के खाने में मिलावट की खबरों पर डॉक्टर्स कम्युनिटी ने बेहद चिंता जताई है।

Food Adulteration के सामने आम जनता है लाचार

तो इस तरह भारत की फ़ूड इंडस्ट्री में Food Adulteration का धंधा फल फूल रहा है। किसी खाने को खाने के बाद बड़ी संख्या में लोगो का बीमार पड़ना और यहाँ तक की मर भी जाना भारत के अखबारों में आम खबरों का एक हिस्सा है। इस मिलावट के धंधे के सामने आम जनता ने तो जैसे घुटने ही टेक दिए हैं।

ऐसा नहीं है की लोगो को दूध, दाल, गेहू, एवं और अन्य जरूरी खाने पीने के सामान में मिलावट के बारे में नहीं पता। जनता, खासकर, शहरी क्षेत्रो में रहने वाले पढ़े लिखे लोग, इस बारे में जानते हैं क्योंकि सोशल मीडिया इस तरह की खबरों से अटा पड़ा है। लेकिन जनता लाचार है क्योंकि उनके पास ये निश्चित करने का कोई तरीका नहीं की खाना शुद्ध है या मिलावटी और खाने की चीज़ो के लिए बाजार पर निर्भर होना उनकी मजबूरी है।

खासकर बड़े शहरों में जहाँ स्पेस की कमी के कारण सब्जियां उगाने के लिए जगह नहीं है नतीजन अलग अलग केमिकल्स से कृत्रिम तरीके से उगाई गयी सब्जियों को खाना उनकी मजबूरी है ये पता होने के बावजूद की इस सब्जी के अंदर पोषक तत्त्व उतने नहीं हैं जितने प्लांट ग्रोथ होर्मोनेस हैं। निस्सहायता की यह स्थति सरकार की Food Adulteration को रोक पाने में सम्पूर्ण नाकामी के कारण और भी हृदय विदारक हो जाती है।

अदालत का कड़ा रुख

अभी हाल ही में जुलाई 2, 2024 को राजस्थान हाई कोर्ट में भी इस मामले की गूँज सुनाई दी। कोर्ट ने खाने पीने की चीज़ो में कैंसर पैदा करने वाले केमिकल्स के होने पर स्वतः संज्ञान लिया और सुनवाई की। कोर्ट ने Food Adulteration से होने वाले जानलेवा असर पर काफी चिंता जताई और केंद्र और राज्य सरकार से इस सम्बन्ध में कड़े कानून बना कर Food Adulteration को जड़ से ख़त्म करने के लिए कहा है।

Food Adulteration रोकने के लिए कानून

ऐसा नहीं है कि देश में Food Adulteration के विरुद्ध कानून ही नहीं है। आज़ादी के बाद से भारत में Food adulteration रोकने के लिए कानून रहे हैं। 1954 से पहले अलग अलग राज्यों में अलग अलग कानून थे। लेकिन कानूनों की इन विविधता के कारण एक स्टेट के लोगो को दूसरे स्टेट में व्यापार करने में दिक्कते पेश आयी।

इसलिए Food Adulteration पर कानून बनाने को संविद्धान की Concurrent लिस्ट में डाला गया। इस लिस्ट में होने की वजह से स्टेट और सेण्टर दोनों इस पर कानून बना सकते हैं। अमूमन हुआ ये है कि कानून सेण्टर ने बनाया और स्टेट अपने यहाँ के मामलो को देखते हुए उस कानून में अपने अनुसार बदलाव करते हैं।

2006 में आये फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड एक्ट ने इस से पहले के फ़ूड सेफ्टी से सम्बंधित सारे कानूनों को खत्म कर दिया है। अब फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड एक्ट ही Food Adulteration से निबटने का कानून है। इस कानून के तहत बनी फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (FSSAI) फ़ूड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स को नियंत्रित करती है और सुपरवाइज़ करती है।

अप्रभावी FSSAI:

लेकिन 2 जुलाई 2024 को राजस्थान हाई कोर्ट ने साफ़ साफ़ कहा कि ये कानून Food Adulteration की समस्या को रोकने के लिए काफी नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण तो ये ही है के यह कानून हॉकर्स और दूसरे असंगठित क्षेत्र के खाना व्यापारियों पर लागू न होकर सिर्फ प्रोसेसिंग यूनिट पर लागु होता है।

इस तकनीकी कमी के अलावा बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर की भी कमी है। वे लैब्स जहाँ पर सैम्पल्स टेस्ट होंगे और मिलावट का पता चलेगा उनकी संख्या ही बेहद कम है। साथ ही मिंट की 24 जनवरी 2023 की रिपोर्ट्स के अनुसार इस नियामक संस्था के पास स्टाफ की भी कमी है। 4029 फ़ूड सिक्योरिटी ऑफिसर्स संस्था को अपना काम सुचारु रूप से करने के लिए चाहिए लेकिन सिर्फ 2537 फ़ूड सिक्योरिटी ऑफिसर्स संस्था के पास हैं।

यह सोचने वाली बात है कि बिना बुनियादी ढाँचे और जरुरी स्टाफ के कोई भी संस्था किस प्रकार अपने दायित्व का वहन करेगी। फ़ूड सिक्योरिटी जैसे जरुरी मुद्दे पर जो सीधे देश के नागरिको के हितो से जुड़ा है सरकार कि अनदेखी वाक़ई शोचनीय है।

इस एक्ट को और भी ज्यादा मजबूत बनाने कि बात वर्षो से चली आ रही है। 2018 में इसके संशोधन के बारे में खबरें भी आयी जिसमे फ़ूड अडल्ट्रेशन के मामलो में आजीवन कारावास का प्रावधान था। लेकिन फिलहाल यह बदलाव भी ठंडे बस्ते में है।

फ़ूड अडल्ट्रेशन कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के उद्देश्य से किया जाता है। लेकिन इस मुनाफा कमाने की अंधी दौड़ में शामिल ये व्यापारी अक्सर मानवता को ताक पर रख रहे हैं। हालाँकि मीडिया के जरिये इस मामले में काफी जागरूकता लोगो के बीच आयी है लेकिन सबसे बड़ी रुकावट फ़ूड अडल्ट्रेशन से निपटने में नागरिको का खाने में मिलावट का समय पर पता न कर पाना है।

समय की जरुरत है कि इस तरह कि तकनीक विकसित की जाए कि Food Adulteration का पता कम समय पर चल सके और साथ ही कानून बेहद कड़े किये जाएँ। वरना हम अपने देश की एक पूरी पीढ़ी को कुपोषण और भयानक बीमारियों के गर्त में धकेल देंगे।

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