Ganesh Chaturthi 2024: गणेश चतुर्थी का इतिहास और महत्व, क्यों मनाते हैं ये त्योहार

Ganesh Chaturthi 2024: गणेश चतुर्थी एक धार्मिक त्योहार है, जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. वैसे तो यह पूरे भारत में थोड़ा-बहुत मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र का गणेशोत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी (चार तारीख से चौदह तारीख तक) तक यह त्योहार दस दिनों तक चलता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी कहते हैं. इस साल गणेश चतुर्थी 6 सितंबर को मनाई जाएगी.

Ganesh Chaturthi 2024
Ganesh Chaturthi 2024

महाराष्ट्र में कई दिनों पहले से भगवान गणेश (बप्पा) के आगमन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. जगह-जगह अलग-अलग तरह के पंडाल तैयार किए जाते हैं. बप्पा की छोटी बड़ी हर तरह की मूर्तियां तैयार की जाती हैं. गणेश उत्सव के दौरान लोग इन मूर्तियों को देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं. भगवान गणेश के जन्मोत्सव पर 10 दिनों का उत्सव मनाते हैं जो गणेश चतुर्थी से शुरू होता है. गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा को स्थापित करते हैं और 10 दिनों तक पूजा के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन कर दिया जाता है.

Ganesh Chaturthi 2024 का इतिहास

गणेशोत्सव को पेशवाओं ने बढ़ावा दिया था. माना जाता है कि पुणे में एक कस्बा ‘गणपति’ नाम से प्रसिद्ध है जिसकी स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी. लेकिन बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को जो सम्मान दिया उससे गणेश जी राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए. बाल गंगाधर तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ घर-परिवार तक ही सीमित होती थी. इस पूजा को सार्वजनिक बनाते समय केवल धर्म तक ही नहीं रखा, बल्कि स्वतंत्रता की लड़ाई, छुआछूत और समाज को एकत्रित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया बनाया और इसे एक आंदोलन का रूप दिया. इसके बाद 1892 में भाऊ साहब जावले द्वारा पहली गणेश मूर्ति की स्थापना की गई थी.

गणपति विर्सजन का इतिहास

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना की जाती है और उसके 10 दिन बाद बप्पा का विसर्जन कर दिया जाता है. कई लोग यह नही जानते कि भगवान गणेश को इतनी श्रृद्धा के साथ स्थापित करने और पूजने के बाद उन्हें विसर्जित क्यों किया जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कथा है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश जी से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना की थी. गणेश चतुर्थी के ही दिन व्यास जी श्लोक बोल रहे थे और गणेश जी उसे लिखते गए. लगातार 10 दिनों तक लिखने के बाद भगवान गणेश पर धूल-मिट्टी की परतें चढ़ गई. तब गणेश जी ने इस धूल-मिट्टी को साफ करने के लिए 10 वें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी में स्नान किया था तभी से गणेश जी को विधि-विधान से विसर्जित करने की परंपरा है.

गणपति पंडाल और उनका महत्व

गणपति पंडाल अस्थायी संरचनाएँ हैं जो विशेष रूप से शुभ गणपति उत्सव के दौरान भगवान गणेश की मूर्तियों को रखने के लिए बनाई जाती हैं, जिसे गणेश चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है. ये पंडाल कला और रचनात्मकता के चमत्कार हैं, जिनमें प्रत्येक मंडल गणेश मूर्ति के लिए अद्वितीय और विस्मयकारी थीम बनाने में दूसरों से आगे निकलने का प्रयास करता है. ये पंडाल गणपति उत्सव के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे न केवल पूजा स्थल हैं बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों के जीवंत केंद्र भी हैं. वे पूरे त्यौहार के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत प्रदर्शन, नृत्य शो और थिएटर प्रस्तुतियाँ आयोजित करते हैं.

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