
Ganesh Chaturthi 2025: जापान से थाईलैंड तक, अलग-अलग नामों में पूजे जाते हैं गणेश जी
Ganesh Chaturthi 2025: भारत में गणेश चतुर्थी आते ही हर तरफ गणपति बप्पा मोरया के जयकारे सुनाई देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे प्रिय गणपति बप्पा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में पूजे जाते हैं? अलग-अलग नाम, अलग-अलग भाषाएं, लेकिन स्वरूप लगभग एक ही। यही तो सनातन धर्म की खूबसूरती है – इसकी जड़ें सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फैली हैं।
गणपति बप्पा के अलग-अलग नाम और स्वरूप
जापान – कांगितेन
जापान में भगवान गणेश को कांगितेन, शोटेन या बिनायकातेन कहा जाता है। वहां के मंदिरों में गणपति बप्पा का एक अनोखा रूप देखने को मिलता है, जिसमें उन्हें खुशियों और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। जापान में बुद्ध धर्म के साथ-साथ सनातन परंपरा का असर साफ दिखता है।
थाईलैंड – फिकानेट या फ्रा फिकानेट
थाईलैंड में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं। यहां उन्हें फिकानेट या फ्रा फिकानेट कहा जाता है। वहां के लोग गणेश जी को सफलता और नई शुरुआत के देवता मानते हैं। यहां तक कि शादियों और नए बिज़नेस की शुरुआत से पहले गणेश पूजन किया जाता है।
श्रीलंका – पिल्लयार
श्रीलंका के तमिल बहुल इलाकों में गणेश जी को पिल्लयार नाम से पूजा जाता है। यहां गणेश मंदिरों की संख्या भी कम नहीं है। लोग संकटों से बचने और सफलता के लिए गणपति बप्पा का आशीर्वाद लेते हैं।
तिब्बत – महारक्त गणपति और वज्र विनायक
तिब्बत में भारतीय बौद्ध भिक्षुओं द्वारा गणेश जी की पूजा को बढ़ावा दिया गया। यहां गणपति को महारक्त गणपति और वज्र विनायक के नाम से पूजा जाता है। माना जाता है कि वे नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं।
इंडोनेशिया – ज्ञान के देवता
इंडोनेशिया में गणेश जी की छवि इतनी लोकप्रिय है कि वहां के 20,000 के नोट पर भी गणेश जी की तस्वीर है। यहां गणपति को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। शिव मंदिरों में भी गणपति की मूर्तियां देखने को मिलती हैं।
नेपाल – सिद्धदाता और संकटमोचन
नेपाल में गणेश जी की पूजा सिद्धदाता और संकटमोचन के रूप में होती है। वहां कई प्राचीन गणेश मंदिर हैं। कठिन परिस्थितियों में लोग गणपति बप्पा का आशीर्वाद लेकर साहस और समाधान की प्रार्थना करते हैं।
भारत – गणपति, विनायक, गजानन और सैकड़ों नाम
भारत में तो गणेश जी के अनगिनत नाम और रूप हैं – गणपति, विनायक, गजानन, विघ्नहर्ता, सिद्धिविनायक। हर राज्य, हर भाषा में उनका नाम बदल जाता है, लेकिन भाव एक ही है – ज्ञान, बुद्धि और नई शुरुआत का आशीर्वाद।
सनातन धर्म की सीमाओं के पार
भगवान गणेश की मूर्तियां और उनका पूजन सिर्फ एशिया तक सीमित नहीं है। अफगानिस्तान, ईरान, म्यांमार, चीन, मंगोलिया, मैक्सिको और कई लैटिन अमेरिकी देशों में भी गणेश जी की प्रतिमाएं मिली हैं। यह बताता है कि सनातन धर्म और इसकी मान्यताएं कितनी गहरी और व्यापक हैं।
एक ही स्वरूप, अलग-अलग नाम
चाहे जापान हो या थाईलैंड, श्रीलंका हो या नेपाल – हर जगह गणपति जी की पूजा अलग नाम से होती है, लेकिन उनका स्वरूप एक जैसा है – हाथी का सिर, मानव शरीर, ज्ञान और सफलता का प्रतीक। यह एकता और विविधता का अद्भुत उदाहरण है।
क्यों है गणपति जी का इतना महत्व?
गणपति जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, यानी सभी बाधाओं को दूर करने वाले। नई शुरुआत, नई उम्मीद और सफलता के देवता माने जाते हैं। शायद यही कारण है कि हर देश में, हर संस्कृति में, लोग उन्हें अपने तरीके से पूजते हैं।
आज की दुनिया में जब हम ग्लोबल कनेक्टिविटी की बात करते हैं, तब हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे देवता और हमारी परंपराएं भी दुनिया में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। गणपति बप्पा का आशीर्वाद सिर्फ भारत नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों तक पहुंच रहा है। और यही संदेश है – सनातन धर्म सिर्फ भारत तक सीमित नहीं, बल्कि इसकी जड़ें दुनिया के हर कोने में फैली हुई हैं।
यह भी पढ़े
Ganesh Chaturthi 2025: बप्पा के स्वागत की तैयारी शुरू करें, इस बार बने हैं दुर्लभ संयोग