Gorakhnath prophecy Nepal: गोरखनाथ की भविष्यवाणी और नेपाल का जलता सच- क्यों गूंज रहा है "राजा आउनुपर्छ" का नारा
Gorakhnath prophecy Nepal: नेपाल इन दिनों आग और आक्रोश से गुज़र रहा है। काठमांडू की सड़कों पर उग्र भीड़, टूटती सरकारी इमारतें और जलती गाड़ियाँ यह बता रही हैं कि देश का युवा अब और चुप बैठने को तैयार नहीं है। इस बार आंदोलन का चेहरा है Gen Z—यानी वह पीढ़ी जो मोबाइल, टिकटॉक और सोशल मीडिया के ज़माने में पली-बढ़ी है।
लेकिन इस हिंसा और विरोध के बीच अचानक एक पुरानी भविष्यवाणी फिर चर्चा में आ गई है—गुरु गोरखनाथ की भविष्यवाणी।
कौन थे गुरु गोरखनाथ?
पुराणों के अनुसार, गुरु गोरखनाथ भगवान शिव के ही अवतार माने जाते हैं। उनका नाम न सिर्फ़ भारत, बल्कि नेपाल की पहचान से भी जुड़ा है। नेपाल के गोरखा लोग और “गोरखा” जिला, दोनों का नाम गुरु गोरखनाथ से ही निकला है। माना जाता है कि गोरखनाथ जी सबसे पहले यहीं प्रकट हुए थे।
18वीं सदी में जब नेपाल को एकजुट करने वाले राजा पृथ्वीनारायण शाह अपनी शक्ति बढ़ा रहे थे, तब उन्हें गोरखनाथ का आशीर्वाद मिला था। ऐसा कहा जाता है कि गोरखनाथ ने आशीर्वाद देते हुए कहा था—“शाह वंश की राजशाही ग्यारह पीढ़ियों तक चलेगी।”
भविष्यवाणी और राजशाही का अंत
नेपाल के राजशाही समर्थक मानते हैं कि यह भविष्यवाणी सच साबित हुई। 2001 में हुए राजमहल हत्याकांड में राजा दीपेंद्र शाह कोमा में रहते हुए कुछ समय के लिए सिंहासन पर बैठे। उस छोटी-सी अवधि को राजशाही की ग्यारहवीं पीढ़ी माना गया।
इसके बाद 2008 में नेपाल ने औपचारिक रूप से राजशाही खत्म कर दी और खुद को गणतंत्र घोषित कर दिया। उस समय बहुतों ने माना कि गोरखनाथ की कही भविष्यवाणी पूरी हो चुकी है और शाह वंश का युग समाप्त हो गया।
लेकिन आज, जब नेपाल की सड़कों पर फिर से “राजा आउनुपर्छ” (राजा वापस आना चाहिए) का नारा गूंज रहा है, तो लोग पूछ रहे हैं—क्या इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है?
Gen Z का गुस्सा क्यों?
नेपाल के युवा इस समय बेहद नाराज़ हैं।
- लगातार सरकारें गिरती-बनती रहीं।
- भ्रष्टाचार के आरोपों ने व्यवस्था को खोखला कर दिया।
- बेरोज़गारी इतनी बढ़ी कि वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार हर दिन करीब 2,000 युवा विदेशों में काम खोजने निकल जाते हैं।
- सोशल मीडिया पर बैन लगाकर सरकार ने मानो युवाओं की आवाज़ दबाने की कोशिश की।
यही वजह रही कि जब फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म बंद किए गए, तो गुस्सा फूट पड़ा। संसद भवन तक जला डाला गया, प्रधानमंत्री केपी ओली को इस्तीफ़ा देना पड़ा और कर्फ्यू तक लगाना पड़ा।
“राजा आउनुपर्छ” का नारा
आंदोलन की सबसे दिलचस्प बात यह रही कि युवा सिर्फ़ भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं, बल्कि राजशाही की वापसी की मांग भी कर रहे हैं।
काठमांडू की सड़कों पर जगह-जगह से यह आवाज़ सुनाई दी—
“राजा आउनुपर्छ।”
यानी लोग कह रहे हैं कि अब देश को फिर से एक राजा चाहिए, जो सबको साथ लेकर चल सके।
राज परिवार कहां है?
जब सड़कों पर यह नारे गूंज रहे हैं, तब लोगों की निगाहें स्वाभाविक रूप से पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह और उनके परिवार पर टिक गई हैं।
ज्ञानेंद्र शाह 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से सार्वजनिक जीवन से लगभग दूर हैं। वे कभी-कभी ही काठमांडू या नागर्जुन स्थित अपने घर से बाहर निकलते हैं।
हाल ही में उनकी बहू हिमानी शाह और पोते हृदयेन्द्र शाह को जनता के बीच देखा गया। लोग उन्हें देख कर अब भी जय-जयकार करते हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अब तक न तो ज्ञानेंद्र और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने सत्ता में वापसी की औपचारिक इच्छा जताई है।
पुरानी भविष्यवाणी, नया सवाल
अब सवाल यह उठ रहा है—क्या गोरखनाथ की भविष्यवाणी सच में पूरी हो चुकी थी, या अभी शाह वंश की एक और पीढ़ी राज करेगी?
राजशाही समर्थक कहते हैं कि दीपेंद्र शाह का छोटा-सा शासन अधूरा था, और यह ग्यारहवीं पीढ़ी नहीं मानी जानी चाहिए। इसलिए वंश का हक़दार अभी बाकी है।
दूसरी ओर, लोकतंत्र समर्थक पार्टियां राजशाही की किसी भी वापसी को पूरी तरह खारिज करती हैं। उनका कहना है कि नेपाल को अब गणतंत्र के रास्ते पर ही आगे बढ़ना होगा।
नेपाल का भविष्य
आज नेपाल एक बड़े मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ़ गुस्साए युवा हैं, जो बदलाव चाहते हैं। दूसरी तरफ़ राजनीतिक दल हैं, जो अपने-अपने फायदे के लिए सत्ता की खींचतान में लगे हैं।
गुरु गोरखनाथ की भविष्यवाणी सच हुई या नहीं, यह एक धार्मिक और ऐतिहासिक बहस हो सकती है। लेकिन यह साफ़ है कि नेपाल के युवाओं का गुस्सा, उनकी उम्मीदें और उनकी मांगें अब अनदेखी नहीं की जा सकतीं।
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