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Delhi High Court का अहम फैसला: वकील को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया, चार महीने की सजा

Delhi High Court

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Delhi High Court ने हाल ही में एक वकील को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए उसे चार महीने की सजा सुनाई है। अदालत ने पाया कि इस वकील ने न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से जजों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं। यह मामला एक वर्चुअल सुनवाई के दौरान हुआ था, जब वकील ने अदालत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। अदालत ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए वकील को सजा दी और संदेश दिया कि इस तरह के व्यवहार को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

Delhi High Court का अवमानना मामला: शुरुआत और पृष्ठभूमि

यह मामला मई माह का है, जब एक न्यायाधीश ने एक वकील के आचरण पर आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की। आरोप था कि वकील ने दिल्ली हाई कोर्ट की वर्चुअल कार्यवाही के दौरान जजों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं। उन्होंने न केवल व्यक्तिगत टिप्पणी की, बल्कि चैट बॉक्स में भी अवमाननापूर्ण संदेश पोस्ट किए थे। इसके बाद, अदालत ने इस मामले का संज्ञान लिया और वकील के खिलाफ कार्यवाही शुरू की।

गंभीर और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल

दिल्ली हाई कोर्ट की खंडपीठ ने वकील के आचरण को ‘स्पष्ट अवमाननात्मक’ बताया और कहा कि वकील ने जजों के खिलाफ “नीच” और “अपमानजनक” भाषा का इस्तेमाल किया। अदालत ने कहा, “इस तरह का आचरण, खासकर एक वकील के लिए जो कानून का प्रतिनिधित्व करता है, अस्वीकार्य है और इसे दंडित किए बिना नहीं छोड़ा जा सकता।” खंडपीठ ने इस बात को भी रेखांकित किया कि वकील ने न तो अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगी, न ही अपने आचरण पर पछतावा जताया।

न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश

खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि वकील ने अपने आचरण से न केवल अदालत की गरिमा को कम करने का प्रयास किया, बल्कि न्यायपालिका को बदनाम करने की भी कोशिश की। अदालत ने कहा, “वकील का यह आचरण न्यायपालिका को अस्थिर करने और उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का प्रयास था।” इसके साथ ही, यह भी उल्लेख किया गया कि वकील ने 30 से 40 शिकायतें दायर की थीं, जिनमें उसने न केवल जजों, बल्कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी शिकायतें की थीं। अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि इन शिकायतों का उद्देश्य केवल न्यायपालिका के खिलाफ अविश्वास पैदा करना था।

वकील की निरंतर अवमाननापूर्ण गतिविधियां

वकील का व्यवहार न केवल एक बार का था, बल्कि उसने यह आचरण लगातार जारी रखा। अदालत ने कहा कि वकील ने अपनी व्यक्तिगत समस्याओं और शिकायतों को न्यायपालिका के सामने रखा और अदालत के खिलाफ एक प्रकार का “अमाननात्मक अभियान” चलाया। खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के आचरण को अस्वीकार्य और अवांछनीय माना गया और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता थी। इस प्रकार की घटनाएं न्यायपालिका और समाज के विश्वास को कमजोर करती हैं, और इस पर अदालत ने कड़ी टिप्पणी की।

सजा और जुर्माना: वकील को चार महीने की सजा

दिल्ली हाई कोर्ट ने वकील को चार महीने की सजा सुनाई और उन पर 2,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वकील को हिरासत में लेकर जेल भेजा जाए। अदालत ने वकील द्वारा सजा स्थगित करने के किसी भी अनुरोध को खारिज करते हुए कहा, “वकील का आचरण न्यायपालिका के प्रति सम्मान का अभाव दर्शाता है और यह सजा के लायक है।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को न्यायपालिका के खिलाफ इस तरह के अवमाननात्मक आचरण की अनुमति नहीं दी जाएगी।

वकील का माफी न मांगने का रवैया

दिल्ली हाई कोर्ट ने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि वकील ने अपने अपमानजनक आचरण के लिए कोई माफी नहीं मांगी। अदालत ने कहा कि यह रवैया अदालत और न्यायिक व्यवस्था के प्रति उसके असम्मान को स्पष्ट करता है। खंडपीठ ने कहा, “अदालत और न्याय प्रणाली के प्रति सम्मानहीन रवैया रखने वाला कोई भी व्यक्ति, खासकर जो एक वकील के रूप में योग्य हो, उसे बिना दंड के नहीं छोड़ा जा सकता।”

सुनवाई के दौरान अवमानना: एक गंभीर आरोप

खंडपीठ ने इस मामले में वकील के द्वारा सुनवाई के दौरान अपमानजनक टिप्पणी करने को विशेष रूप से अवमाननापूर्ण आचरण माना। अदालत ने यह माना कि वकील का यह रवैया केवल अपने व्यक्तिगत हितों को पूरा करने का प्रयास था और न्यायपालिका के खिलाफ प्रतिशोध लेने की भावना से प्रेरित था। अदालत ने कहा, “इस प्रकार के आचरण को किसी भी रूप में माफ नहीं किया जा सकता और इसे गंभीरता से लिया जाएगा।”

न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखना

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में यह साफ संदेश दिया कि न्यायपालिका की गरिमा और प्रतिष्ठा को किसी भी सूरत में ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती। अदालत ने कहा, “न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखना हम सभी का कर्तव्य है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह वकील हो या आम नागरिक, इस गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास नहीं कर सकता।” इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि अदालतों के खिलाफ अवमानना के आरोपों पर सख्ती से कार्रवाई की जाएगी, ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।

अवमानना मामलों में सख्त रुख

इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अवमानना के मामलों में अपने सख्त रुख को दोहराया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि न्यायपालिका के खिलाफ किसी भी प्रकार का अपमान या अवमानना न केवल कानूनी दृष्टिकोण से गलत है, बल्कि यह समाज के लिए भी खतरनाक है। अदालत ने यह निर्णय लिया कि इस प्रकार के आचरण के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे ताकि न्यायपालिका के प्रति सम्मान बनाए रखा जा सके।

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