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भारत-चीन संबंध: पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात का असली कारण आया सामने

भारत-चीन संबंध

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भारत और चीन के संबंध हमेशा से चर्चा का विषय रहे हैं। हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की, तो विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाए। विपक्ष का कहना था कि चीन लगातार भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है, फिर भी प्रधानमंत्री मोदी उससे दोस्ती कर रहे हैं। लेकिन अब इस पूरे घटनाक्रम में नया मोड़ आया है, जिससे पता चलता है कि असली खेल चीन नहीं, बल्कि कोई और खेल रहा था।

भारत के पड़ोस में उथल-पुथल का असली कारण

पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता देखी गई। पहले माना जा रहा था कि चीन इन देशों में निवेश कर भारत के प्रभाव को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन अब सामने आया है कि असली भूमिका अमेरिका के डीप स्टेट एक्टर्स की थी, जिन्होंने इन देशों को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता भेजी।

अमेरिका की भूमिका

जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने विदेशी सहायता की जांच शुरू करवाई। एलन मस्क की टीम को इस मामले की जांच सौंपी गई। रिपोर्ट में सामने आया कि बाइडन प्रशासन के दौरान पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका को भारी वित्तीय सहायता दी गई, लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों में किया गया। इसके बाद मस्क ने इन फंडिंग्स को रोकने की सिफारिश की।

भारत विरोधी फंडिंग का खुलासा

बांग्लादेश: अमेरिका की सरकारी एजेंसी यूएसएआईडी (USAID) के जरिए बांग्लादेश को लगभग 3821 करोड़ रुपये की मदद दी गई। हर साल करीब 29 मिलियन डॉलर (लगभग 2 अरब रुपये) भेजे जाते थे, जिसका उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता और रोहिंग्या शरणार्थियों की सहायता बताई गई थी। लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों में किया गया, जिससे भारत समर्थक शेख हसीना की सरकार के खिलाफ साजिशें तेज हो गईं।

पाकिस्तान: पाकिस्तान को यूएसएआईडी के तहत 231 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दी गई। इस फंडिंग का उद्देश्य नौकरियों के अवसर बढ़ाना और सामाजिक कल्याण योजनाओं को आगे बढ़ाना था। लेकिन जांच में पता चला कि इन पैसों का बड़ा हिस्सा भारत के खिलाफ षड्यंत्रों में लगाया गया।

नेपाल: नेपाल को बीते कुछ वर्षों में 118 मिलियन डॉलर की सहायता मिली। दावा किया गया कि यह संघीय व्यवस्था और जैव विविधता परियोजनाओं के लिए था। लेकिन बाद में यह स्पष्ट हुआ कि इस फंडिंग का उद्देश्य नेपाल की सरकार को प्रभावित करना था। भारत की खुफिया एजेंसियां लगातार इस गतिविधि पर नजर रख रही थीं, और अब यह आर्थिक सहायता रोक दी गई है।

श्रीलंका: श्रीलंका को अमेरिका द्वारा 123 मिलियन डॉलर की मदद दी गई। हालांकि, वहां की सरकार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहती थी, जिससे अमेरिकी डीप स्टेट की रणनीति पूरी तरह सफल नहीं हो पाई।

अब यह स्पष्ट हो गया है कि भारत के पड़ोसी देशों में जो राजनीतिक बदलाव देखे जा रहे थे, उनके पीछे केवल चीन ही नहीं, बल्कि अमेरिका के डीप स्टेट एक्टर्स भी जिम्मेदार थे। यह घटनाएं दिखाती हैं कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आर्थिक मदद का इस्तेमाल सिर्फ विकास कार्यों के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। भारत को अब अपनी कूटनीतिक रणनीतियों को और अधिक मजबूत बनाकर इस प्रकार के हस्तक्षेप से बचना होगा।

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