महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों गहमागहमी बढ़ गई है। जहां महायुति में मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं हो पा रहा है, वहीं समाजसेवी बाबा आढाव की भूख हड़ताल ने सियासी तापमान और बढ़ा दिया है। बाबा आढाव ने ईवीएम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका आरोप है कि महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे ईवीएम में गड़बड़ी के कारण प्रभावित हुए हैं।
कौन हैं बाबा आढाव?
95 वर्षीय बाबा आढाव पुणे के एक प्रख्यात समाजसेवी हैं। उनका जीवन सामाजिक आंदोलनों से भरा रहा है। 1950 के दशक से महंगाई, साक्षरता, और श्रमिक अधिकारों जैसे मुद्दों पर काम करने वाले बाबा आढाव ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के लिए झोपड़ी संघ की स्थापना की। 1984 के भिवंडी दंगे और मराठवाड़ा भूकंप के दौरान उनकी भूमिका सराहनीय रही। उन्होंने रिक्शा पंचायत बनाकर 50,000 ऑटो ड्राइवरों को संगठित किया, जिससे संसद को एक बिल पास करना पड़ा।
ईवीएम के खिलाफ आंदोलन
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर बाबा आढाव का गुस्सा सातवें आसमान पर है। उनका दावा है कि ईवीएम में गड़बड़ी के कारण चुनाव परिणाम लोकतंत्र के खिलाफ हैं। तीन दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे बाबा ने स्पष्ट कहा है कि जब तक ईवीएम का इस्तेमाल बंद नहीं होगा, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
नेताओं की पहल
बाबा आढाव को मनाने के लिए शरद पवार, उद्धव ठाकरे और अजित पवार ने उनसे मुलाकात की। शरद पवार ने कहा, “ईवीएम के कारण लोकतंत्र खतरे में है। इसे लेकर जन आंदोलन जरूरी है।” उद्धव ठाकरे ने भी बाबा के मुद्दे का समर्थन करते हुए इसे पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण बताया।
भविष्य की राह
बाबा आढाव के आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया है। ईवीएम की विश्वसनीयता और चुनाव प्रक्रिया पर उठ रहे सवाल आने वाले समय में सियासी समीकरण बदल सकते हैं। उनके आंदोलन को समर्थन मिलता है या नहीं, यह देखना बाकी है।
इस घटना ने ईवीएम पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है और लोकतंत्र की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।