कर्नाटक के Chief Minister Siddaramaiah ने शुक्रवार को कर वितरण में हो रहे अन्याय पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि कर्नाटक जैसे प्रगतिशील राज्य से बड़ी मात्रा में कर वसूली की जाती है, लेकिन इसके बदले में राज्य को केंद्र सरकार से बेहद कम धनराशि प्राप्त होती है। उनके इस बयान ने न केवल कर्नाटक बल्कि पूरे देश में कर व्यवस्था और इसके वितरण पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है।
Chief Minister Siddaramaiah का बयान
मुख्यमंत्री ने कहा, “कर्नाटक हर साल ₹4,00,000 करोड़ से अधिक का कर योगदान करता है, लेकिन हमें इसके बदले केवल ₹55,000 करोड़ से ₹60,000 करोड़ की राशि मिलती है। यह कर योगदान के केवल 14-15% के बराबर है। क्या यह न्यायसंगत है?” उन्होंने सवाल किया कि कर्नाटक जैसे राज्य, जो देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं, को क्यों उनके योगदान के अनुरूप हिस्सा नहीं मिलता।
कर्नाटक का योगदान
कर्नाटक भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक है। यह आईटी उद्योग का गढ़ है और देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- आईटी और सेवा क्षेत्र: बेंगलुरु को ‘भारत की सिलिकॉन वैली’ कहा जाता है, और यहां से देश को बड़ी मात्रा में कर राजस्व प्राप्त होता है।
- औद्योगिक उत्पादन: कर्नाटक में ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग भी देश को मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करते हैं।
- कृषि और संसाधन: कर्नाटक का कॉफी और मसालों का उत्पादन देश और दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
इन सभी क्षेत्रों से केंद्र सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के रूप में बड़ा योगदान मिलता है।
वितरण प्रणाली में असमानता
केंद्र और राज्यों के बीच कर वितरण का ढांचा संविधान के तहत तय किया गया है। इसके अनुसार, राज्यों को केंद्रीय करों का हिस्सा एक फार्मूले के आधार पर मिलता है, जिसे वित्त आयोग निर्धारित करता है। हालांकि, सिद्धारमैया ने इस प्रणाली की खामियों को उजागर किया।
- फार्मूला आधारित वितरण: केंद्र सरकार का दावा है कि वितरण फार्मूले के अनुसार ही होता है, लेकिन मुख्यमंत्री का तर्क है कि यह फार्मूला प्रगतिशील राज्यों के साथ अन्याय करता है।
- पिछड़े राज्यों को प्राथमिकता: अक्सर, कम विकसित राज्यों को अधिक संसाधन दिए जाते हैं ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें। लेकिन इसका परिणाम यह होता है कि प्रगतिशील राज्यों को उनके योगदान के अनुपात में हिस्सा नहीं मिलता।
मुख्यमंत्री की मांग
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मांग की है कि:
- वितरण का पुनर्मूल्यांकन: कर वितरण के लिए नया और न्यायसंगत फार्मूला बनाया जाए, जिसमें योगदान करने वाले राज्यों को अधिक लाभ मिले।
- राज्य के अधिकार: राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता दी जाए ताकि वे अपनी जरूरतों के अनुसार विकास कर सकें।
- विशेष सहायता: प्रगतिशील राज्यों को उनकी बड़ी आर्थिक गतिविधियों और अधोसंरचना के लिए विशेष सहायता दी जाए।
विपक्ष का मत
मुख्यमंत्री के बयान पर विपक्षी दलों ने भी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया और कहा कि कांग्रेस सरकार इस मुद्दे को भटकाने के लिए उठा रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों के साथ समानता से व्यवहार किया जा रहा है और सिद्धारमैया का आरोप बेबुनियाद है।
हालांकि, जेडीएस (जनता दल सेक्युलर) जैसे क्षेत्रीय दलों ने मुख्यमंत्री का समर्थन किया और कहा कि कर्नाटक जैसे राज्यों के साथ वित्तीय असमानता को खत्म करना आवश्यक है।
राज्य की योजनाओं पर प्रभाव
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र से कम धनराशि मिलने के कारण राज्य की कई योजनाएं प्रभावित होती हैं।
- शिक्षा और स्वास्थ्य: कर्नाटक ने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन अपर्याप्त धनराशि के कारण उनकी प्रगति धीमी है।
- बुनियादी ढांचा: सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं भी बजट की कमी के कारण प्रभावित होती हैं।
- ग्रामीण विकास: ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और विकास योजनाओं को भी पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल पा रही है।
देशव्यापी प्रभाव
सिद्धारमैया द्वारा उठाया गया यह मुद्दा केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है। कई अन्य प्रगतिशील राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, और तमिलनाडु ने भी समय-समय पर ऐसी ही शिकायतें की हैं।
- फेडरल स्ट्रक्चर का सवाल: यह मुद्दा केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन और वित्तीय अधिकारों को लेकर बड़ी बहस खड़ा करता है।
- विकासशील राज्यों पर बोझ: प्रगतिशील राज्यों का तर्क है कि उनके कर योगदान से पिछड़े राज्यों को लाभ पहुंचाया जाता है, लेकिन इसका बोझ वे अकेले क्यों उठाएं।
सिद्धारमैया की पहल और आगे की राह
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस विषय पर केंद्र सरकार से बातचीत करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि वे वित्त आयोग के समक्ष भी इस मुद्दे को उठाएंगे और इसे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा के लिए लाएंगे।
इसके अलावा, उन्होंने कर्नाटक के लोगों से भी आह्वान किया कि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के नागरिकों को यह समझना होगा कि उनके करों का बड़ा हिस्सा केंद्र को जाता है, लेकिन उन्हें इसके बदले में कम सुविधाएं मिलती हैं।
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