Saphala Ekadashi क्या है।
हर साल saphala Ekadashi दिसम्बर या जनवरी के महीने में आती है , इस बार सफला एकादशी साल के आखरी महीने पॉश मॉस में 26 दिसंबर गुरुवार को मनाया जा रहा है। इस बार की saphala ekadashi बहुत खास और लाभदायक होने वाली है क्युकी ये साल की आखरी एकादशी है और साथ ही ये गुरुवार के दिन मनाई जानी है , गुरुवार हरी का दिन माना जाता है और 26 दिसंबर 2024 को जो भी विष्णु जी की पूजा अराधना करता है। उसपर भगवान् विष्णु की अति कृपा होती है।
saphala ekadashi कथा
सफला एकादशी को हिन्दू धर्म में काफी महत्त्व दिया है। इस दिन भगवान् विष्णु की पूजा करने की और व्रत करने की मान्यता है। इस व्रत के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचप्स है। सफला एकादशी की कथा के अनुसार चम्पावती नगरी में महिष्मत नामक राजा के पांच पुत्र थ। इनमें से सबसे बड़ा पुत्र चरित्रहीन था और देवताओं का अपमान करता था साथ ही वो मॉस मदिरा का सेवन करता था सिर्फ यही नहीं हसमे ऐसे कई दोस थे । उसके ऐसे आचरण के कारण राजा ने उसका नाम लुम्भक रख दिया।
इसके बाद, उसके भाइयों ने उसे राज्य से निष्कासित कर दिय। फिर भी, वह नहीं माना और अपने ही नगर को लूटने लग। एक दिन, उसे चोरी करते हुए सिपाहियों ने पकड़ लिया, लेकिन राजा का पुत्र जानकर उसे छोड़ दिया गया. इसके बाद, वह वन में एक पीपल के नीचे रहने लगा। पौष मास की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन, वह सर्दी के कारण अत्यंत कमजोर हो गया और उसे भोजन लाने की भी शक्ति नहीं रही. उसने कुछ फल तोड़े, लेकिन रात होने के कारण उन्हें खा नहीं सका और भगवान से कहा कि अब आप ही इसे खा ले। इस प्रकार, उसने रातभर जागकर बिताई. इस रात्रि जागरण और दिनभर भूखे रहने के कारण, उसका सफला एकादशी का व्रत हो गय। इस तरह जाने अनजाने में उस पापी ने समस्त पपो को धोने वाला व्रत किया।
उसे सफला एकादशी के प्रभाव से राज्य और पुत्र का आशीर्वाद प्राप्त हुआ. इस आशीर्वाद से लुम्भक का मन सकारात्मक दिशा में अग्रसर हुआ और उसके पिता ने उसे राज्य का अधिकार सौंपा. उसे मनोज्ञ नामक पुत्र प्राप्त हुआ, जिसे बाद में राज्य की जिम्मेदारी देकर लुम्भक स्वयं विष्णु की भक्ति में लीन होकर मोक्ष प्राप्त करने में सफल रहा.
सफला एकादशी पूजा-विधि।
सुबह भ्रम महूरत में उठकर स्नान आदि करे।
पंचामृत और गंगाजल से घर और मंदिर का शुद्दिकरण करे।
भगवान् को भी पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराए।
भगवान् को पीला चन्दन और पीले फूल चढ़ाये।
इसके बाद भगवान् के सामने घी का दीप जलाये।
संभव हो तो व्रत रखे , व्रत रखने से पहले संकल्प करे।
सफला एकादशी की व्रत कथा का पाठ करे।
भगवन को तुलसी दल के साथ भोग चढ़ाये।
अंत में भगवान् से शमा याचना करे।
भोग
saphala ekadashi में भगवान् को पीले फल जैसे केले अर्पित करे। उनको पीली मिठाई के साथ खीर ला भोग चढ़ाये।
सुबह से लेकर शाम तक इन मुहूर्त में करें पूजा।
शुभ – उत्तम 07:12 ए एम से 08:30 ए एम
चर – सामान्य 11:04 ए एम से 12:22 पी एम
लाभ – उन्नति 12:22 पी एम से 01:39 पी एम
अमृत – सर्वोत्तम 01:39 पी एम से 02:57 पी एम
शुभ – उत्तम 04:14 पी एम से 05:32 पी एम वार वेला
अमृत – सर्वोत्तम 05:32 पी एम से 07:14 पी एम
चर – सामान्य 07:14 पी एम से 08:57 पी एम
लाभ – उन्नति 12:22 ए एम से 02:05 ए एम, दिसम्बर 27 काल रात्रि
शुभ – उत्तम 03:47 ए एम से 05:30 ए एम, दिसम्बर 27
अमृत – सर्वोत्तम 05:30 ए एम से 07:12 ए एम, दिसम्बर 27