संभल की जामा मस्जिद, जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के संभल जिले में स्थित है, लंबे समय से एक विवाद का केंद्र बनी हुई है। यह मस्जिद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक विवाद का कारण रही है। हाल ही में इस मस्जिद का सर्वे किया गया, जिसके बाद इलाके में हिंसा भड़क उठी और प्रशासन को शांति बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने पड़े। इस विवाद के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए हमें जामा मस्जिद के इतिहास, कोर्ट के आदेश, और दोनों पक्षों के दावों पर विस्तार से विचार करना होगा।
कोर्ट का आदेश और हाल की घटनाएं
संभल की सिविल कोर्ट ने जामा मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश दिया था। इस आदेश के तहत मस्जिद के वीडियो और फोटो खींचकर रिपोर्ट तैयार की जानी थी। हिंदू पक्ष का आरोप है कि यह मस्जिद पहले एक हिंदू मंदिर थी, जिसे बाबर ने तोड़कर मस्जिद में बदल दिया। इस दावे के बाद “संभल मस्जिद विवाद” एक बार फिर विवादों में आ गया है।
जब सर्वे टीम मस्जिद पहुंची, तो वहां विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी वाहनों पर हमला किया और पत्थरबाजी की। हिंसा को देखते हुए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और कई लोगों को हिरासत में लिया। इस हिंसा ने “संभल मस्जिद विवाद” को और जटिल बना दिया और इलाके में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रशासन ने शांति बनाए रखने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की और विवादित इलाके में पुलिस बल तैनात किया।
संभल मस्जिद का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विवाद
संभल की जामा मस्जिद के निर्माण को लेकर विभिन्न दावे किए जा रहे हैं। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मस्जिद 14वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में बनाई गई थी, जिसे बाद में बाबर ने फिर से निर्माण करवाया। मुस्लिम पक्ष इस मस्जिद को अपनी ऐतिहासिक धरोहर मानता है और इसे मुस्लिम धर्म के एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में देखता है।
वहीं, हिंदू पक्ष का दावा है कि जामा मस्जिद पहले हरिहर मंदिर था, जो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार से जुड़ा हुआ था। उनका कहना है कि बाबर ने 1529 में इस मंदिर को नष्ट कर मस्जिद का निर्माण करवाया। इस दावे के आधार पर हिंदू पक्ष यह चाहते हैं कि मस्जिद की असलियत सामने आकर सही इतिहास का पता चले।
पुरानी रिपोर्ट और शिलालेख विवाद
1874-75 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट में जामा मस्जिद में हिंदू वास्तुकला के निशान पाए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार, मस्जिद की दीवारों और स्तंभों पर हिंदू शैली की नक्काशी देखी गई है। एक शिलालेख में बाबर का नाम भी लिखा गया है, जो इसे बाबर से जोड़ता है।
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह शिलालेख मस्जिद का असली प्रमाण है, जबकि हिंदू पक्ष इसे नकली मानता है और आरोप लगाता है कि यह शिलालेख जानबूझकर जोड़ा गया है। इस शिलालेख को लेकर दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। “संभल मस्जिद विवाद” में यह शिलालेख अहम बिंदु बन चुका है, जो इस विवाद को और गंभीर बना रहा है।
दोनों पक्षों के तर्क और कानूनी पहलू
हिंदू पक्ष के तर्क:
- जामा मस्जिद पहले हरिहर मंदिर थी।
- बाबर ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई।
- एएसआई रिपोर्ट में हिंदू वास्तुकला के निशान मिले हैं, जो इस विवाद को और गहरा करते हैं।
मुस्लिम पक्ष के तर्क:
- मस्जिद मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई।
- 1947 के बाद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को न बदलने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश उनके पक्ष में है।
- मस्जिद का शिलालेख असली है, जो मुस्लिम पक्ष के दावे को सही ठहराता है।
अदालत और प्रशासन की कार्रवाई
कोर्ट ने मस्जिद का सर्वे कर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। इलाके में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है, ताकि शांति बनाए रखी जा सके। कई लोग जिनके ऊपर हिंसा और विवाद में शामिल होने का आरोप था, उन्हें प्रशासन ने हिरासत में लिया। प्रशासन ने साफ किया है कि शांति बनाए रखने के लिए कोई भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
संभल मस्जिद विवाद क्यों खास है?
- सांप्रदायिक सौहार्द: यह विवाद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच भाईचारे को प्रभावित कर सकता है। “संभल मस्जिद विवाद” से सांप्रदायिक सौहार्द पर भी असर पड़ सकता है, जिससे समाज में तनाव फैल सकता है।
- ऐतिहासिक सच: यह विवाद भारतीय इतिहास से जुड़ी सच्चाई को सामने लाने का अवसर प्रदान करता है। “संभल मस्जिद विवाद” के पीछे छुपे ऐतिहासिक तथ्यों की जांच से देश के इतिहास को फिर से समझने की जरूरत है।
- कानूनी पहलू: सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 1947 के बाद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को न बदला जाए, और यह आदेश “संभल मस्जिद विवाद” को महत्वपूर्ण बनाता है। यह कानून का उल्लंघन करने की स्थिति में विवाद को और बढ़ा सकता है।
संभल की जामा मस्जिद विवाद एक ऐतिहासिक और सांप्रदायिक मुद्दा है, जो धार्मिक आस्था और इतिहास के बीच उलझा हुआ है। यह मामला न केवल इतिहास और पुरातत्व से जुड़े तथ्यों को सामने लाने का है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की भी बड़ी चुनौती है। अदालत का फैसला और प्रशासन की सख्ती इस विवाद को हल करने में अहम भूमिका निभाएगी। “संभल मस्जिद विवाद” का समाधान न केवल इस स्थान के इतिहास को सही रूप में प्रस्तुत करेगा, बल्कि यह भारतीय समाज में सांप्रदायिक एकता को मजबूत करने की दिशा में भी एक कदम हो सकता है।
नोट: सभी से अपील है कि वे शांति बनाए रखें, कानून का पालन करें, और इस मुद्दे का समाधान समाज की भलाई और सौहार्द के साथ निकाला जाए।
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