
Janmashtami 2025: भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग क्यों लगाया जाता है? जानिए कथा, महत्व और पूजा सामग्री
Janmashtami 2025: हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जाता है। इस साल जन्माष्टमी 15 अगस्त 2025 को है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है, जब पूरा देश भक्ति, प्रेम और उल्लास में डूब जाता है। मंदिरों में विशेष सजावट होती है, भजन-कीर्तन गाए जाते हैं और मध्यरात्रि को लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा है, जिसे ‘छप्पन भोग’ कहा जाता है। यह परंपरा सिर्फ स्वाद और व्यंजन का मामला नहीं, बल्कि गहरी भक्ति, प्रेम और पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई, इसका क्या महत्व है और जन्माष्टमी पर किन चीजों से पूजा करनी चाहिए।
जन्माष्टमी 2025 कब है?
- भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी 15 अगस्त 2025 रात 11:49 बजे शुरू होगी और 16 अगस्त 2025 रात 9:34 बजे खत्म होगी।
- उदया तिथि के अनुसार, मुख्य जन्माष्टमी 16 अगस्त को होगी।
- 15 अगस्त को स्मार्त संप्रदाय के लोग पूजा करेंगे।
- 16 अगस्त को वैष्णव संप्रदाय और ब्रजवासी जन्माष्टमी मनाएंगे।
जन्माष्टमी पूजा विधि
- सुबह स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- व्रत रखने का संकल्प लें।
- भगवान कृष्ण का झूला सजाएं – फूल और लाइट से सुंदर सजावट करें।
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से श्रीकृष्ण का अभिषेक करें।
- मक्खन, मिश्री और तुलसी पत्ते का भोग लगाएं।
- दिनभर भजन-कीर्तन और कृष्ण लीलाओं का स्मरण करें।
- रात 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएं – शंख और घंटी बजाकर आरती करें।
- पूजा के बाद प्रसाद बांटें और सभी को भोग खिलाएं।
छप्पन भोग क्या है?
छप्पन भोग यानी भगवान को अर्पित किए जाने वाले 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग। इसमें मिठाइयाँ, फल, पेय पदार्थ, नमकीन और विभिन्न व्यंजन शामिल होते हैं। यह भोग इस बात का प्रतीक है कि भक्त अपने जीवन के हर स्वाद, हर सुख और हर आनंद को भगवान के चरणों में अर्पित करता है।
भक्तों का विश्वास है कि छप्पन भोग अर्पित करने से भगवान विशेष प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद देते हैं।
छप्पन भोग की कथा – कैसे हुई शुरुआत?
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रजवासी पहले स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा करते थे ताकि समय पर वर्षा हो और फसलें अच्छी हों। एक बार नन्हें कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि यह पूजा क्यों की जा रही है। नंद बाबा ने बताया कि इंद्र वर्षा करते हैं, इसलिए उन्हें प्रसन्न करना जरूरी है।
तब बाल कृष्ण ने कहा कि वर्षा तो इंद्र का कर्तव्य है, लेकिन असली धन्यवाद हमें गोवर्धन पर्वत को करना चाहिए, क्योंकि वही हमें फल, फूल, अनाज और पशुओं के लिए चारा देता है। ब्रजवासियों को यह बात पसंद आई और उन्होंने इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की।
यह देखकर इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने भारी वर्षा शुरू कर दी। ब्रजवासी भयभीत होकर कृष्ण की शरण में गए। तब श्रीकृष्ण ने अपने बाएं हाथ की छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी को उसके नीचे आश्रय दिया। यह स्थिति सात दिनों तक चली और इस दौरान कृष्ण ने कुछ भी नहीं खाया।
जब वर्षा रुकी, तब ब्रजवासियों ने देखा कि कृष्ण ने सात दिन से कुछ नहीं खाया है। माता यशोदा ने बताया कि वे कृष्ण को दिन में आठ बार भोजन कराती हैं। सात दिन × आठ बार = 56 बार का भोजन। इस प्रकार, ब्रजवासियों ने भगवान के प्रति प्रेम और आभार व्यक्त करने के लिए 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए। तभी से जन्माष्टमी पर छप्पन भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई।
छप्पन भोग में क्या-क्या होता है?
छप्पन भोग में मिठाइयों से लेकर फल, पेय पदार्थ, नमकीन और सात्विक व्यंजन शामिल होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं –
- मिठाइयाँ: पंजीरी, माखन-मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू-बर्फी, तिल की चिक्की।
- पेय पदार्थ: पंचामृत, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी।
- फल और सूखे मेवे: आम, केला, अंगूर, सेब, किशमिश, बादाम, पिस्ता।
- नमकीन: मठरी, कचौरी, पकौड़े, भुजिया, चटनी।
- अन्य व्यंजन: चावल, खिचड़ी, कढ़ी, पूड़ी, दलिया, रोटी, देसी घी, शहद, ताजी मलाई।
जन्माष्टमी 2025 पूजा सामग्री
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा में कुछ विशेष वस्तुएं अर्पित करने का महत्व है –
- पंचामृत – दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण, जिससे भगवान का अभिषेक किया जाता है।
- तुलसी दल – श्रीकृष्ण को तुलसी अत्यंत प्रिय है, इसलिए हर भोग में तुलसी का पत्ता रखना जरूरी है।
- माखन-मिश्री – कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रिय भोग।
- ताजे पुष्प – गेंदा, गुलाब, कमल, मोगरा आदि फूल पूजा में शुभ माने जाते हैं।
- पीले या रेशमी वस्त्र – पीला रंग भगवान को विशेष प्रिय है, यह आनंद और पवित्रता का प्रतीक है।
- फल – केले, अंगूर, अनार, अमरूद आदि सात्विक फल अर्पित करें।
- मिष्ठान – लड्डू, पेड़ा, बर्फी, मालपुआ आदि।
- धूप, दीप और अगरबत्ती – पूजा में पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा के लिए।
- चंदन और रोली – भगवान के तिलक के लिए।
- बांसुरी – कृष्ण के प्रिय वाद्य का प्रतीक।
जन्माष्टमी पूजा विधि
- पूजा स्थल की तैयारी – स्वच्छ स्थान पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान की मूर्ति स्थापित करें और फूलों से सजाएँ।
- अभिषेक – पंचामृत से स्नान कराकर स्वच्छ जल से धोएं और कपड़े से पोंछें।
- श्रृंगार – भगवान को पीले वस्त्र, मुकुट, मोरपंख और बांसुरी से सजाएँ।
- भोग लगाना – माखन-मिश्री और छप्पन भोग अर्पित करें, हर भोग में तुलसी डालें।
- आरती और भजन – धूप, दीप और शंख-घंटी के साथ आरती करें, भजन-कीर्तन गाएँ।
- मध्यरात्रि जन्मोत्सव – ठीक 12 बजे जन्म कथा का पाठ करें और जयकारे लगाएँ।
- प्रसाद वितरण – भोग को प्रसाद रूप में भक्तों में बाँटें।
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