
केरल कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया
केरल में एक अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद की सहायक कंपनी दिव्य फार्मेसी द्वारा किए गए कथित भ्रामक विज्ञापनों के मामले में योग गुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है। अदालत ने यह कदम उनके अदालत में पेश नहीं होने के कारण उठाया है।
मामले का विवरण
यह मामला दिव्य फार्मेसी द्वारा जारी किए गए ऐसे विज्ञापनों से जुड़ा है जो कथित रूप से ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का उल्लंघन करते हैं। इन विज्ञापनों में बीमारियों को ठीक करने और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली, विशेष रूप से एलोपैथी, को नकारात्मक रूप में दिखाने के आरोप लगे हैं।
पलक्कड़ के न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट-II ने 16 जनवरी, 2025 को यह वारंट जारी किया। यह वारंट तब जारी किया गया जब बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, और दिव्य फार्मेसी ने अदालत के समन के बावजूद व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में विफल रहे।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “शिकायतकर्ता अनुपस्थित। सभी आरोपी अनुपस्थित। सभी आरोपियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया जाए।”
भ्रामक विज्ञापनों का मामला
दिव्य फार्मेसी के विज्ञापनों पर आरोप है कि उन्होंने बिना वैज्ञानिक आधार के बीमारियों को ठीक करने के झूठे दावे किए और एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली को बदनाम किया। इसके चलते, पतंजलि और इसके संस्थापक पहले भी कानूनी मामलों में उलझे हैं।
कोझिकोड में लंबित मामला
भ्रामक विज्ञापनों के इसी तरह के एक अन्य मामले की सुनवाई कोझिकोड के न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट में लंबित है। इस मामले की अगली सुनवाई 1 फरवरी 2025 को निर्धारित की गई है।
IMA और सुप्रीम कोर्ट का रुख
पिछले दो वर्षों में पतंजलि और इसके संस्थापकों के खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज हुए हैं। इन मामलों को उस समय राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान मिला जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ याचिका दायर की।
IMA की याचिका के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया और उनके खिलाफ अदालत की अवमानना के नोटिस भी जारी किए। बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर माफी मांगी, जिसके बाद अदालत ने पतंजलि को अखबारों में माफीनामा प्रकाशित करने का आदेश दिया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की भी आलोचना की कि उन्होंने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स नियम, 1945 के तहत कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
अगस्त 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ अवमानना मामले को बंद कर दिया था, लेकिन भ्रामक विज्ञापनों को लेकर कानूनी लड़ाई जारी है।
भ्रामक विज्ञापन: उपभोक्ता के साथ धोखा?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के भ्रामक विज्ञापन न केवल उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं, बल्कि चिकित्सा पद्धति के प्रति अविश्वास भी पैदा करते हैं। एलोपैथी को बदनाम करने वाले इन दावों की वैधता को बार-बार सवालों के घेरे में लाया गया है।
सरकार की भूमिका और जिम्मेदारी
इस पूरे प्रकरण में केंद्र सरकार की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। उपभोक्ता अधिकार समूहों का कहना है कि सरकार को इस तरह के भ्रामक विज्ञापनों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करनी चाहिए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज अधिनियम का उल्लंघन गंभीर अपराध है और इस पर कार्रवाई होना जरूरी है। यह उपभोक्ताओं के अधिकारों और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
आगे की सुनवाई और प्रभाव
पलक्कड़ कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 1 फरवरी 2025 को निर्धारित की है। इस दौरान अदालत यह तय करेगी कि बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण अदालत में पेश होते हैं या नहीं।
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