Ladakh Defence Projects: लद्दाख में भारत की रक्षा तैयारियों को बड़ी मजबूती ,राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने दिए 12 प्रोजेक्ट्स को मंजूरी
Ladakh Defence Projects: लद्दाख जैसे संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में भारत अब अपनी सैन्य तैयारियों को और मजबूत करने जा रहा है। चीन की ओर से लगातार बढ़ रही गतिविधियों और आक्रामक रवैये को देखते हुए, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife – NBWL) की स्थायी समिति ने रक्षा मंत्रालय के 12 अहम प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दे दी है।
इन प्रोजेक्ट्स का मकसद है – भारत की सीमाओं को और सुरक्षित बनाना, खासकर उन इलाकों में जहां मौसम कठिन है और दुश्मन की निगरानी लगातार बनी रहती है।
कहाँ होंगे ये प्रोजेक्ट?
इन प्रोजेक्ट्स को चांगथांग कोल्ड डेजर्ट सेंचुरी और काराकोरम वाइल्डलाइफ सेंचुरी जैसे इलाकों में मंजूरी मिली है। ये दोनों क्षेत्र बेहद ऊंचाई पर बसे हैं और चीन की सीमा के नजदीक हैं। यहां के मौसम और भौगोलिक स्थिति के कारण सेना को विशेष प्रशिक्षण और ठोस बुनियादी ढांचे की जरूरत रहती है।
इन मंजूर प्रोजेक्ट्स में शामिल हैं –
- तारा में एक ट्रेनिंग नोड की स्थापना
- लेह में एक आर्टिलरी बैटरी (तोपखाना यूनिट)
- दो फॉर्मेशन एम्युनिशन स्टोरेज फैसिलिटीज (FASF)
- चुशुल में ब्रिगेड मुख्यालय
- काजी लंगर के पास इंडो-तिब्बतन बॉर्डर आउटपोस्ट (ITBP पोस्ट)
इसके अलावा, लेह में एक नया आर्मी कैंप और अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ सेंचुरी में बालीपारा-चारदुआर-तवांग रोड पर 158 मीटर लंबे पिनजोली पुल का निर्माण भी इस मंजूरी में शामिल है।
क्यों जरूरी हैं ये प्रोजेक्ट?
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, लद्दाख के सुपर हाई एल्टीट्यूड एरिया (लगभग 15,000 फीट की ऊंचाई) में तैनात सैनिकों को बेहतर प्रशिक्षण और सुविधाओं की सख्त जरूरत है।
यहां PLA यानी चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की हरकतें लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में भारत को हर स्थिति के लिए तैयार रहना जरूरी है।
मंत्रालय ने बताया कि तारा में प्रस्तावित ट्रेनिंग नोड इसलिए अहम है क्योंकि यह इलाका प्योंगयांग त्सो से माउंट ग्या तक फैला हुआ है, जो काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स के संचालन का क्षेत्र है। यहां सैनिकों को हर मौसम और इलाके की स्थिति के मुताबिक ट्रेनिंग मिल सकेगी।
गलवान झड़प के बाद तेज हुआ बुनियादी ढांचा विकास
साल 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से ही भारत ने LAC (Line of Actual Control) के आसपास सड़कें, पुल, हेलीपैड और कैंप जैसी सुविधाओं को तेज़ी से विकसित करना शुरू किया।
उस घटना में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे, जिसके बाद देशभर में ये समझ बन गई कि सीमावर्ती इलाकों में मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहद जरूरी है।
पर्यावरण और वन्यजीवों की चिंता भी
इन इलाकों में कई दुर्लभ वन्यजीव पाए जाते हैं, जैसे –
- हिम तेंदुआ (Snow Leopard)
- जंगली याक (Wild Yak)
- तिब्बती भेड़िया (Tibetan Wolf)
- भारल (नीली भेड़)
- भूरा भालू
- मार्मोट
इसी वजह से इन प्रोजेक्ट्स को मंजूरी देते समय पर्यावरण मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वन्यजीव संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं तैयार की जाएंगी, ताकि बुनियादी ढांचे के निर्माण से स्थानीय पारिस्थितिकी को नुकसान न पहुंचे।
कितनी जमीन का इस्तेमाल होगा?
- चांगथांग सेंचुरी में दो FASF के लिए करीब 24.2 हेक्टेयर भूमि ली जाएगी।
- काराकोरम सेंचुरी में 47.1 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी।
- चुशुल में ब्रिगेड मुख्यालय के लिए 40 हेक्टेयर भूमि दी जाएगी।
ये सभी क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सेना का मानना है कि अगर ब्रिगेड मुख्यालय एलएसी के नजदीक होगा तो कमांड और नियंत्रण (Command & Control) और बेहतर तरीके से हो सकेगा।
अरुणाचल प्रदेश में भी मजबूती
लद्दाख के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश में भी रक्षा मंत्रालय बुनियादी ढांचे को और मजबूत कर रहा है।
ईगलनेस्ट वाइल्डलाइफ सेंचुरी में बनने वाला पिनजोली पुल इसी दिशा में एक अहम कदम है। यह पुल तवांग रोड से जुड़ा है, जो चीन सीमा के बेहद करीब है।
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