Lohri उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल 13 जनवरी को बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। इसे सर्दियों के खत्म होने और फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
Lohri का अर्थ
1. ‘लोह’ : ‘लोह’ का मतलब है चूल्हा या आग। चूल्हे का महत्व कृषि समाज में हमेशा से रहा है, और इस त्योहार में अग्नि को पूजा का प्रमुख हिस्सा माना जाता है।
2. ‘तिलोड़ी’ से लोहड़ी: एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह शब्द ‘तिलोड़ी’ से बना है, जो तिल (तिल) और रोड़ी (गुड़) का मिश्रण है। समय के साथ यह शब्द ‘लोहड़ी’ बन गया। लोहड़ी को प्रकृति, सूर्य और आग की पूजा का पर्व भी माना जाता है।
Lohri से जुड़ी कथाएं
1. दुल्ला भट्टी की कहानी
यह गीत इस बात का प्रतीक है कि दुल्ला भट्टी ने लोगों की भलाई के लिए काम किया।
2. सती और अग्नि पूजा की कहानी
लोहड़ी को सती देवी और भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है। सती ने अपने पिता दक्ष के अपमान से दुखी होकर हवन की अग्नि में खुद को समर्पित कर दिया था। इस घटना के बाद, अग्नि पूजा को विशेष महत्व दिया जाने लगा।
Lohri की परंपराएं
1. अग्नि पूजा और गीत
2. लोक गीत और नृत्य
3. मूंगफली, तिल और गुड़ का सेवन
4. शिशु जन्म और विवाह का उत्सव
Lohriका खेती से संबंध
Lohri का सीधा संबंध कृषि परिवर्तन से है जनवरी में रवि और फसल पककर तैयार हो जाते हैं खासकर गाने की फसल किसान इस अवसर पर अपनी मेहनत का जश्न मनाते हैं। वही इस त्योहार से पता चलता है कि सर्दी का अंत आ गया है और बसंत ऋतु की शुरुआत होने वाली है।
Lohri के गीतों का महत्व
Lohri के गीत इस त्योहार का अभिन्न हिस्सा हैं। इन गीतों में दुल्ला भट्टी के साथ-साथ फसल कटाई, नई फसल और समृद्धि का जिक्र होता है। ये गीत गांव के जीवन और उनकी संस्कृति को दर्शाते हैं।
Lohri का पर्व बेहद शुभ माना जाता है।
आज के समय में Lohri का उत्सव शहरों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इसे मनाते हैं। हालांकि, पारंपरिक तरीकों में बदलाव आया है, लेकिन इसकी मूल भावना आज भी जीवित है।लोहड़ी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह प्रकृति, कृषि और समाज के प्रति आभार व्यक्त करने का माध्यम है।
“लोहड़ी की वधाईयां!”
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